अजगर की बजाय GAJAB समीकरण पर सपा गठबंधन का फोकस, भाजपा के चलते मजबूर

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अजगर की बजाय GAJAB समीकरण पर सपा गठबंधन का फोकस, भाजपा के चलते मजबूर

उत्तर प्रदेश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन करने का श्रेय चौधरी चरण सिंह को जाता है, जिन्होंने 1969 में ‘अजगर’ समीकरण के जरिए यह कर दिखाया था। कांग्रेस के बारे में माना जाता था कि वह ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम की सियासत कर सत्ता में बनी रहती है। इसकी काट के लिए चौधरी चरण सिंह ने गैर-ब्राह्मण और गैर-दलित बिरादरियों का एक गठजोड़ तैयार किया था, जिसे अजगर नाम दिया गया। इसमें 4 जातियां प्रमुख रूप से आती थीं, जिनका वेस्ट यूपी से लेकर प्रदेश के बड़े हिस्से में असर था। ये जातियां हैं- अहिर, जाट, गुर्जर और राजपूत। इन चारों को मिलाकर ही अजगर बनता था। इनमें यादव बिरादरी ऐसी थी, जिसकी संख्या पूरे उत्तर प्रदेश में अच्छी खासी पाई जाती है। 

यह समीकरण करीब 10 साल तक यूपी की सियासत में ऐसे ही चला, लेकिन मंडल पॉलिटिक्स के बाद सपा अस्तित्व में आई तो यादव अलग हो गए और रालोद की पहचान जाटों की पार्टी के तौर पर हो गई। राजपूतों का एक बड़ा तबका मुलायम सिंह यादव के साथ रहा। ऐसे में जब भी रालोद और सपा का साथ होता तो यह कहा जाता रहा कि अब अजगर समीकरण फिर से बनाने की कोशिश होगी। इस बार भी सपा और रालोद गठबंधन को लेकर ऐसे ही कयास लगाए गए, लेकिन यह इस बार गलत साबित हो रहा है। दरअसल इसके पीछे की वजह भाजपा है, जो फिलहाल सत्ता में हैं और मुख्यमंत्री के तौर पर योगी आदित्यनाथ हैं, जो खुद राजपूत हैं।

आखिर क्यों सपा को अजगर समीकरण से हटना पड़ा

उनके आकर्षण के चलते राजपूत बिरादरी पूरी तरह भाजपा के खेमे में नजर आ रही है, जिसे अजगर पॉलिटिक्स का हिस्सा माना जाता था। ऐसे में सपा और रालोद ने अजगर की बजाय GAJAB समीकरण पर फोकस करना शुरू कर दिया है। इसका अर्थ गुर्जर, अहीर यानी यादव, जाट और ब्राह्मण से है। दरअसल सपा राजपूतों के छिटकने की भरपाई ब्राह्मण वोटों से करना चाहती है। यही वजह है कि पूरे सूबे में सपा ने प्रबुद्ध सम्मेलन करवाए और टिकट बंटवारे में भी भागीदारी दी। यही नहीं पूर्वांचल के उन इलाकों में वह ब्राह्मणों पर खास जोर दे रहे हैं, जहां की राजनीति में माना जाता है कि ब्राह्मण बनाम राजपूत चलता है। इसी समीकरण में यदि अति पिछड़ों और मुस्लिमों को भी जोड़ लें तो समाजवादी पार्टी एक बड़े वोट बैंक पर फोकस करती दिखती है।

सपा का GAJAB समीकरण तो बसपा BDM के भरोसे

हरिशंकर तिवारी के परिवार को साधना हो या फिर रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज पांडेय को प्रचार में अहमियत देना। अखिलेश की रणनीति से साफ है कि वह गजब समीकरण पर फोकस कर रहे हैं। इसके अलावा माता प्रसाद पांडेय, अभिषेक मिश्रा जैसे लोगों को भी सपा ने आगे रखा है। बसपा की बात करें तो वह भी ब्राह्मणों पर फोकस कर रही है, लेकिन उसका जोर BDM समीकरण पर दिखता है यानी ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम। कभी कांग्रेस यूपी समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में इसी की सियासत करती थी।



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