T20 World Cup Opinion: क्या सिर्फ क्रिकेट फैंस को ही समझाएंगे सचिन तेंडुलकर और युवराज सिंह?

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T20 World Cup Opinion: क्या सिर्फ क्रिकेट फैंस को ही समझाएंगे सचिन तेंडुलकर और युवराज सिंह?


T20 World Cup Opinion: क्या सिर्फ क्रिकेट फैंस को ही समझाएंगे सचिन तेंडुलकर और युवराज सिंह?

टी20 क्रिकेट विश्वकप के सेमीफाइनल में भारत की बुरी हार के बाद पूरे देश में गुस्सा काफी ज्यादा है। इस बीच मैं यहां दो बयानों का जिक्र करना चाहूंगा। पहला बयान क्रिकेट के महान खिलाड़ी सचिन तेंडुलकर का आया है। उन्होंने अपने ट्वीट में बताया है कि एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। ऐसा ही जिंदगी के साथ है। अगर हम टीम की जीत को अपनी जीत की तरह सेलिब्रेट करते हैं तो हमें टीम की हार में भी ऐसा ही करना चाहिए। वहीं, युवराज सिंह कह रहे हैं कि जब भी हमारी टीम मैदान में उतरती है तो हम हर बार अपनी टीम को जीतते हुए देखना चाहते हैं। हालांकि, यह बात स्वीकार करनी होगी कि कुछ दिन ऐसे भी होंगे जब हमें हमारे मुताबिक परिणाम नहीं मिलेगा।

लेकिन फैंस गुस्सा क्यों है? ये समझने की कोशिश कौन करेगा? क्या सवाल हार और जीत का है? तो जवाब ये है कि जी नहीं।

भारतीय फैंस को समझाने के लिए सचिन तेंदुलकर और युवराज सिंह को मैं 2003 का विश्वकप याद दिलाना चाहता हूं। दोनों महान खिलाड़ी उस समय भारतीय टीम का चेहरा थे। उन्हें याद होगा, भारतीय टीम किस तरह जूझते हुए फाइनल तक पहुंच गई थी। इस उपलब्धि में उनका भी पसीना शामिल था। लेकिन आखिरी मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया से भारतीय टीम बुरी तरह हार गई। मुकाबले में पहले एडम गिलक्रिस्ट, रिकी पोंटिंग और डेमियन मार्टिन ने भारतीय गेंदबाजों की बखिया उधेड़ते हुए 359 रन ठोक दिये। फिर पूरी भारतीय टीम 234 पर सिमट गई। हम हार गए। लेकिन भारतीय टीम की इस हार से ज्यादा चर्चा सौरव गांगुली की कप्तानी और टीम इंडिया के उस सफर की हुई जो उसने विश्वकप में तय किया था। आज 19 साल बाद भी लोग उस विश्वकप को सौरव गांगुली का विश्वकप ही मानते हैं। उस विश्वकप में भारतीय टीम ने जो शानदार प्रदर्शन किया, उसके बाद गांगुली देश के सबसे सफल कप्तानों में शुमार हो गए।

तो जाहिर है लोगों को उस हार से कोई शिकवा नहीं है क्योंकि पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम लड़ रही थी। और जुझारू खिलाड़ी का सम्मान पूरी दुनिया करती है।

लेकिन इस बार टी-20 विश्वकप में कहीं ऐसा दिखा क्या? दरअसल बात सिर्फ ये है कि आप मुकाबले में खेले कैसे? सोचिए क्या भारतीय टीम में किसी भी मुकाबले में जीत की भूख दिखी?

पाकिस्तान के खिलाफ जब भारतीय किक्रेट टीम ने आखिरी गेंद में मुकाबला अपने नाम किया तो पूरी दुनिया कोहली-कोहली करने लगी थी। निश्चित तौर पर ये कोहली के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में से एक था। लेकिन पूरी टीम का प्रदर्शन क्या? क्या लगा कि हम विश्वकप जैसे बड़े टूर्नामेंट में किसी तैयारी के साथ उतरे हैं?

क्या टीम मैनेजमेंट ने मंथन किया कि अगर पाकिस्तान जैसी एशिया की टीम से ऑस्ट्रेलिया की पिच पर मुकाबला इस कदर फंस सकता है तो गैर एशियाई टीम के साथ क्या होगा? भारतीय टीम तो ऑस्ट्रेलिया भी पाकिस्तान टीम से पहले पहुंच गई थी। बदली परिस्थितियों, मैदान और पिच का प्रदर्शन पर क्या असर होता है, ये टीम मैनेजमेंट को क्या सिखाना पड़ेगा?

लेकिन फैंस के शोर में शायद टीम मैनेजमेंट भी मगन हो गया होगा। वहीं पूरी टीम की तैयारी कितनी थी? दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मुकाबले में उजागर भी हो गया। मैदान में टीम की कमजोरी साफ उजागर हुई। लेकिन टीम मैनेजमेंट प्रदर्शन के बारे में क्यों सोचता? यहां भारतीय फैंस टीम के साथ खड़े थे। पाकिस्तान विरोध के चलते कहानी कुछ ऐसी बनी कि इस हार को जान-बूझकर करार दे दिया गया और टीम मैनेजमेंट ने भी सोचा चलो बला टली।

वैसे बांग्लादेश ने भारतीय टीम टीम मैनेजमेंट को एक बार जगाने का प्रयास किया भी, जब लिटन दास ने अकेले ही भारतीय गेंदबाजी की बखिया उधेड़ दी और बता दिया कि आप कितना तैयार हैं? लेकिन लिटन दास के आउट होते ही मुकाबला भारत के पक्ष आ चुका था और टीम मैनेजमेंट जश्न में मशगूल था।

जाहिर है हम खेल रहे थे लेकिन लड़ नही रहते थे। इक्का दुक्का खिलाड़ियों को छोड़ दें तो टीम में जीत की भूख नहीं दिख रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे आईपीएल चल रहा है, जिसमें हार और जीत से ज्यादा पैसा महत्वपूर्ण होता है।

जाहिर है फैंस कैसे सचिन तेंडुलकर और युवराज सिंह की बात समझ पाएंगे? उनको ही कोई नहीं समझना चाहता। क्या ये दोनों महान खिलाड़ी क्रिकेट फैन्स की तरह प्रबंधन को भी कुछ सलाह देंगे?

और हां, आखिर में मेरे मन की बात। ‘खेल में हार और जीत मायने नहीं रखती’ ये बात पहली बार तभी कही होगी, जब वह शख्स मुकाबला हार गया होगा। क्योंकि सच ये ही है कि मुकाबला जीतने के लिए ही खेला जाता है।

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