सुप्रीम कोर्ट ने दी उम्मीद, मरने के बाद जज लोया को मिलेगा इंसाफ

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पिछली दिनों चर्चा में रहे जज लोया की मौत की खबर फिर से आजकल सुर्ख़ियों में है. सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर केस की सुनवाई करने वाले सीबीआई के स्पशेल जज बीएच लोया की मौत का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को इस मुद्दे से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करेगा.

एक अखबार की रिपोर्ट के बाद उनकी मौत सवालों के घेरे में आ गई थी. इस याचिका को महाराष्ट्र के पत्रकार बीआर लोन ने किया था.

आखिर क्या था मामला

दरअसल जज लोया 30 नवम्बर 2014 को अपने कुछ दोस्तों के साथ जज सपना जोशी की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए नागपुर गए थे. समारोह में पहुँचने पर जज लोया ने अपनी पत्नी से सही–सलामत कॉल पर बात भी की थी. मानो ये उन्की आखिरी कॉल थी. इस कॉल के बाद ठीक अगली सुबह होते ही उनके परिवार को उनकी मौत की खबर मिली. परिवार को बताया गया था की लोया की मौत कार्डियक अरेस्ट से हुई है.

लेकिन जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो उसमे सामने आया कि उनके शरीर पर कुछ घाव थे और उनकी शर्ट के कॉलर पर खून के निशान भी थे. इतना ही नही उनके सर पर गहरी चोट थी और गर्दन के पास भी खून के धब्बे थे.

परिवार वालों के संदेह का एक और कारण था जस्टिस लोया का मोबाइल फ़ोन. दरअसल जब उनकी बड़ी बहन डॉ बियाणी ने उनका मोबाइल फ़ोन माँगा तो वो मोबाइल भी उन्हें तीन-चार दिन बाद मिला. बता दें कि परिवार को जज लोया का मोबाइल देने वाला व्यक्ति आरएसएस का एक शख्स था. उनके फ़ोन की सारी कॉल डिटेल्स साफ़ कर दी गयी थी. इन घटनाओं से उनकी मौत में किसी बड़ी सजिश की बू अती है.

 

घरवालों की प्रतिक्रिया

जज लोया की मौत को लेकर उनके परिवार वालों के मन में कई सवाल हैं. जैसे कि उनकी मौत की खबर उन्हें तुरंत क्यों नहीं मिली? और पोस्टमार्टम करवाने में इतना टाइम क्यों लगा?

मीडिया से बातचीत के दौरान जस्टिस लोया के पिता हरिकिशन ने उनसे जुड़े कई खुलासे किये. हरिकिशन ने बताया कि उनके बेटे को रिश्वत में पैसों की पेश्काश की गयी थी. जब उन्होंने पैसा लेने से मना कर दिया तो उन्हें मकान और ज़मीन का ऑफर भी दिया गया. लेकिन जस्टिस लोया ने कोई भी रिश्वत लेने से मना कर दिया और वो किसी दबाव में नही आये.

मौत के वक़्त कौनसा केस

अपनी मौत से पहले जज लोया केवल सोहराबुद्दीन हत्याकांड के मुक़दमे की सुनवाई कर रहे थे. इस केस पर सारे देश की निगाह थी क्योंकि इसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह भी शामिल थे. ये मुकदमा 2012 से चल रहा था.

जस्टिस लोया की मौत के बाद एमबी गोसावी को सोहराबुद्दीन केस का जज बना दिया गया था. उन्होंने 14 दिसम्बर 2014 को इस केस की सुनवाई शुरू की और कुछ दिन बाद ही सबूतों के अभाव में केस को बंद कर दिया.

और जब जज लोया की मौत का केस खुल रहा है तो सोहराबुद्दीन के केस को भी दुबारा से जांचने ने के लिए सामने लाया गया, उम्मीद है की जज लोया को जल्द ही इंसाफ  मिलेगा.imgpsh fullsize 1 -