सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत से जुड़े सभी केस अपने हाथ में लिए

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भारतीय उच्च न्यायालय ने सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई कर रहे जज लोया की मौत से जुड़े सभी मामलों से खुद निपटने का फैसला लिया है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा है किसी भी हाईकोर्ट में अब जज लोया से जुड़े मामले की सुनवाई नहीं होगी. इसके अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट में जो दो याचिकाएं पेंडिंग हैं, उन्हें भी सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए. कोर्ट ने कहा है कि यह एक बेहद गंभीर मामला है इसलिए इस मामले से जुड़े सभी कागज़ातों की जांच की जाएगी.

मीडिया के दखल से पेचीदा हुआ केस

सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि मामले में सरकार ने मीडिया में खबर आने के बाद निष्पक्ष जांच कराई है. राज्य सरकार ने दलील दी है कि जांच के दौरान पूछताछ में चार साथी जजों ने जज लोया की मौत को संदेहास्पद नहीं माना है.

बता दें कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने घटना की पूरी जानकारी दी. वहीं याचिकाकर्ता की ओर से दुष्यंत दवे ने साल्वे का विरोध किया. उन्होंने कहा कि साल्वे अमित शाह के बचाव में पेश हुए थे, अब वे महाराष्ट्र सरकार की ओर से हैं. इससे संस्थान की छवि धूमिल हो रही है, कोर्ट को इसे रोकना चाहिए.

इन याचिकाओं की सुनवाई में दिया आदेश

उच्च न्यायालय का यह निर्देश उन दो याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आया है जिसे कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बी एस लोन ने दायर किया है. इन याचिकाओं में उन्होंने जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस मामले की सुनवाई के लिए 2 फरवरी की तारीख मुकर्रर की है. सोमवार (22 जनवरी) को सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने उन चार साथी जजों का बयान अदालत को सौंपा जिन्होंने जज लोया को हार्ट अटैक के बाद अस्पताल में भर्ती कराया था.

सुनवाई के दौरान ये थी राय

सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा अभी तक की रिपोर्ट को देखते हुए यह एक प्राकृतिक मौत है. वहीँ जज हरीश साल्वे ने कहा जब पेपर्स के अनुसार ये एक प्राकृतिक मौत है, तो फिर अमित शाह का नाम इसमें क्यों आ रहा है. हमें याचिकाकर्ता से किसी तरह की सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है. वहीँ इन दोनों जजों से इतर जज दुष्यंत दवे ने कहा इस मामले पर सरकार का जो रुख रहा है, वह सही नहीं है. हो सकता है कि ये एक प्राकृतिक मौत हो, लेकिन परिस्थिति को देखते हुए शक की गुंजाइश है. लिहाजा जांच लाजिमी है.

Loya case -

गौरतलब है कि राज्य सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया गया कि राज्य के डीजीपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश पर एक गुप्त जांच भी कराई है. बता दें कि 16 जनवरी को जज लोया की मौत की जांच कराने से संबंधित याचिका जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस मोहन एम शांतानागौदार की पीठ के पास आया था लेकिन इस खंठपीठ ने सात दिनों के अंदर मामले से जुड़े सभी कागजात जमा करने का आदेश दिया था साथ ही केस को ऊपरी खंडपीठ भेज दिया था.

चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस में उठा था ये मुद्दा

आपको बता दें कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायमूर्तियों ने मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ बगावत करते हुए पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. इस दौरान इन न्यायमूर्तियों ने खुले तौर पर जज लोया के केस की सुनवाई को लेकर आपत्ति उठाई थी. इन न्यायमूर्तियों की ये भी शिकायत है कि मुख्य न्यायमूर्ति सभी अहम मुकदमें खुद ही सुन लेते हैं यानी मास्टर ऑफ रोस्टर होने का फायदा उठाते हैं.

ये है पूरा मामला

गौरतलब है कि दिसंबर 2014 में जज लोया की मौत एक शादी समारोह में हो गई थी. जज लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ केस की सुनवाई कर रहे थे. इस केस में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी रह चुके हैं. जस्टिस लोया की मौत के बाद जिन जज ने इस मामले की सुनवाई की, उन्होंने अमित शाह को मामले में बरी कर दिया था.

हाल ही में कुछ समय पहले एक मैग्जीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि जस्टिस लोया की मौत साधारण नहीं थी बल्कि संदिग्ध थी. जिसके बाद से ही यह मामला दोबारा चर्चा में आया.