Stray Dogs Issues: गलतियां सुधारें हम तो स्ट्रीट डॉग नहीं होंगे हमलावर, जानें एक्सपर्ट की क्या है राय
नई दिल्ली: कुत्तों पर इंसानी जुल्म और डॉग बाइट के मामले हाल के दिनों में काफी बढ़े हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि इसकी वजह सिविक एजेंसियों के खराब मैनेजमेंट के साथ लोगों में बढ़ती असहिष्णुता भी बड़ी वजह है। हालांकि प्रशासन और पब्लिक के स्तर पर कुछ सुधार किए जाएं तो इस तरह की घटनाओं में भारी कमी आ सकती है। दूसरी ओर, जहां जागरूकता बढ़ रही है उन जगहों पर बदलाव दिख रहा है।
नसबंदी कम, बढ़ रहे स्ट्रीट डॉग
स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती आबादी पर कंट्रोल का सबसे कारगर तरीका नसबंदी करना है। यह जिम्मेदारी एमसीडी की है। हालांकि जानवरों पर काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि नसबंदी बहुत ही कम होती है और कुत्तों की आबादी बढ़ती जाती है। दिल्ली में पहले ही हम घनी आबादी में रहते हैं। वेटनरी सांइस की कई स्टडीज में साबित हो चुका है कि सामान्य हालात में जानवर डरे रहते हैं। वे गाड़ियों से टकराते हैं। लोग उन्हें पत्थर मारते हैं। ऐसे में वे सेफ रहने के लिए हमलावर हो जाते हैं। यह भी साबित हो चुका है कि नसबंदी से कुत्तों में अग्रेशन भी कम होता है। पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (पीटा) के वाइल्डलाइफ कंजरवेटर दीपक चौधरी का कहना है कि आंकड़ों से पता चला कि डॉग बाइट के लिए स्ट्रीट डॉग जिम्मेदार नहीं होते। एर्नाकुलम अस्पताल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुत्तों के काटने के 75.6 प्रतिशत केस पालतू कुत्तों से जुड़े थे।
वेस्ट डिस्पोजल में खराबी
मर्सी फॉर एनिमल्स इंडिया फाउंडेशन के सीईओ निकुंज शर्मा का कहना है कि शहरों में कचरे को निपटाने के बेहतर तरीके नहीं हैं। कूड़ा खुले में पड़ा रहता है और जानवर वहां मंडराते रहते हैं। लोग बाजार में या रेस्टोरेंट्स के बाहर गाड़ियों में खाना खाते हैं। उनके बचे हुए खाने को स्ट्रीट डॉग्स खाते हैं और इसके कई बार वे हिंसक हो जाते हैं। अगर टाउन प्लानिंग में वेस्ट डिस्पोजल के बेहतर तरीके अपनाए जाएं तो समस्या कम होगी। इसके अलावा तेज गर्मी में कुत्ते ज्यादा अग्रेसिव हो जाते हैं। सोसायटी के स्तर पर उनके लिए शेड और पानी का भी इंतजाम करना चाहिए।
कहीं भी न खिलाएं खाना
अक्सर लोग कॉलोनियों या सड़कों पर स्ट्रीट डॉग्स को खाना खिलाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि उन्हें खाना खिलाने से किसी को रोका नहीं जा सकता। अदालत और एक्सपर्ट दोनों मानते हैं कि गलियों में रहने वाले जानवरों को कहीं भी खाना नहीं देना चाहिए। सोसायटी में कॉलोनी में एक खास जगह पर फीडिंग एरिया बनाने चाहिए और वहां पर खाना देने का वक्त भी तय कर देना चाहिए। ऐसे में जानवर समझ जाएंगे कि उन्हें कब खाना मिलेगा और वे हर वक्त नहीं मंडराएंगे। अलग फीडिंग एरिया होने से वहां से कोई शख्स या बाइकर भी नहीं गुजरेगा, जिससे डॉग्स को ऐसा नहीं लगेगा कि उनके खाने पर हमला हो रहा है।
एनिमल एक्सपर्ट की राय- सख्त होना चाहिए कानून
जानवरों पर जुल्म करने वालों को लगता है कि वे कुछ भी कर दें, आसानी से छूट जाएंगे। ऐसे में उनकी हिम्मत बढ़ती है। प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी टु एनिमल एक्ट 1960 में बना था, जिसमें क्रूरता करने पर सिर्फ 50 रुपये का जुर्माना होता है। हालांकि आईपीसी 428 और 429 में कुछ कड़े प्रावधान हैं। फिर भी अगर 60 साल में लोग रिटायर हो सकते हैं तो कानून क्यों नहीं? – निकुंज शर्मा, सीईओ, मर्सी फॉर एनिमल्स इंडिया फाउंडेशन
ब्रीडिंग कराने पर लगे बैन
जो लोग स्ट्रीट एनिमल्स को खाना खिलाते हैं, वे जरूरी सेवा के हिस्सा हैं। कॉलोनियों में कुत्तों की सफल नसबंदी करने के लिए उनकी मदद ली जानी चाहिए। इससे से कुत्तों की आबादी कम होगी। अगर एक फीमेल डॉगी की नसबंदी हो जाए तो 6 साल में 67 हजार कुत्तों के जन्म को रोका जा सकता है। पैसे कमाने के लिए ब्रीडिंग कराने पर भी बैन लगाना चाहिए। – दीपक चौधरी, मैनेजर, पीआरटी, PETA इंडिया
डॉगी को बाहर घुमाने से पहले उसे मास्क पहनाना है जरूरी
दिल्ली में डॉग पालने को लेकर किसी तरह की कोई मनाही नहीं है। डॉग पालने वाले शख्स को दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट की धारा 399 में दिए गए नियम, शर्तों का सख्ती के साथ पालन करना होता है। जिसमें पालतू डॉग का वैक्सीनेशन से लेकर उसे बाहर घुमाने सहित कई तरह के नियमों को डिटेल में बताया गया है। सबसे जरूरी नियम तो यह है कि अगर कोई शख्स अपने पालतू डॉग को घर से बाहर घुमाने के लिए लेकर जा रहा है तो डॉग को मजल (मास्क) पहनना जरूरी है। अगर डॉग ने यह मास्क पहना हुआ है तो वह किसी को काट नहीं पाएगा।
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नसबंदी कम, बढ़ रहे स्ट्रीट डॉग
स्ट्रीट डॉग्स की बढ़ती आबादी पर कंट्रोल का सबसे कारगर तरीका नसबंदी करना है। यह जिम्मेदारी एमसीडी की है। हालांकि जानवरों पर काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि नसबंदी बहुत ही कम होती है और कुत्तों की आबादी बढ़ती जाती है। दिल्ली में पहले ही हम घनी आबादी में रहते हैं। वेटनरी सांइस की कई स्टडीज में साबित हो चुका है कि सामान्य हालात में जानवर डरे रहते हैं। वे गाड़ियों से टकराते हैं। लोग उन्हें पत्थर मारते हैं। ऐसे में वे सेफ रहने के लिए हमलावर हो जाते हैं। यह भी साबित हो चुका है कि नसबंदी से कुत्तों में अग्रेशन भी कम होता है। पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (पीटा) के वाइल्डलाइफ कंजरवेटर दीपक चौधरी का कहना है कि आंकड़ों से पता चला कि डॉग बाइट के लिए स्ट्रीट डॉग जिम्मेदार नहीं होते। एर्नाकुलम अस्पताल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुत्तों के काटने के 75.6 प्रतिशत केस पालतू कुत्तों से जुड़े थे।
वेस्ट डिस्पोजल में खराबी
मर्सी फॉर एनिमल्स इंडिया फाउंडेशन के सीईओ निकुंज शर्मा का कहना है कि शहरों में कचरे को निपटाने के बेहतर तरीके नहीं हैं। कूड़ा खुले में पड़ा रहता है और जानवर वहां मंडराते रहते हैं। लोग बाजार में या रेस्टोरेंट्स के बाहर गाड़ियों में खाना खाते हैं। उनके बचे हुए खाने को स्ट्रीट डॉग्स खाते हैं और इसके कई बार वे हिंसक हो जाते हैं। अगर टाउन प्लानिंग में वेस्ट डिस्पोजल के बेहतर तरीके अपनाए जाएं तो समस्या कम होगी। इसके अलावा तेज गर्मी में कुत्ते ज्यादा अग्रेसिव हो जाते हैं। सोसायटी के स्तर पर उनके लिए शेड और पानी का भी इंतजाम करना चाहिए।
कहीं भी न खिलाएं खाना
अक्सर लोग कॉलोनियों या सड़कों पर स्ट्रीट डॉग्स को खाना खिलाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि उन्हें खाना खिलाने से किसी को रोका नहीं जा सकता। अदालत और एक्सपर्ट दोनों मानते हैं कि गलियों में रहने वाले जानवरों को कहीं भी खाना नहीं देना चाहिए। सोसायटी में कॉलोनी में एक खास जगह पर फीडिंग एरिया बनाने चाहिए और वहां पर खाना देने का वक्त भी तय कर देना चाहिए। ऐसे में जानवर समझ जाएंगे कि उन्हें कब खाना मिलेगा और वे हर वक्त नहीं मंडराएंगे। अलग फीडिंग एरिया होने से वहां से कोई शख्स या बाइकर भी नहीं गुजरेगा, जिससे डॉग्स को ऐसा नहीं लगेगा कि उनके खाने पर हमला हो रहा है।
एनिमल एक्सपर्ट की राय- सख्त होना चाहिए कानून
जानवरों पर जुल्म करने वालों को लगता है कि वे कुछ भी कर दें, आसानी से छूट जाएंगे। ऐसे में उनकी हिम्मत बढ़ती है। प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी टु एनिमल एक्ट 1960 में बना था, जिसमें क्रूरता करने पर सिर्फ 50 रुपये का जुर्माना होता है। हालांकि आईपीसी 428 और 429 में कुछ कड़े प्रावधान हैं। फिर भी अगर 60 साल में लोग रिटायर हो सकते हैं तो कानून क्यों नहीं? – निकुंज शर्मा, सीईओ, मर्सी फॉर एनिमल्स इंडिया फाउंडेशन
ब्रीडिंग कराने पर लगे बैन
जो लोग स्ट्रीट एनिमल्स को खाना खिलाते हैं, वे जरूरी सेवा के हिस्सा हैं। कॉलोनियों में कुत्तों की सफल नसबंदी करने के लिए उनकी मदद ली जानी चाहिए। इससे से कुत्तों की आबादी कम होगी। अगर एक फीमेल डॉगी की नसबंदी हो जाए तो 6 साल में 67 हजार कुत्तों के जन्म को रोका जा सकता है। पैसे कमाने के लिए ब्रीडिंग कराने पर भी बैन लगाना चाहिए। – दीपक चौधरी, मैनेजर, पीआरटी, PETA इंडिया
डॉगी को बाहर घुमाने से पहले उसे मास्क पहनाना है जरूरी
दिल्ली में डॉग पालने को लेकर किसी तरह की कोई मनाही नहीं है। डॉग पालने वाले शख्स को दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन एक्ट की धारा 399 में दिए गए नियम, शर्तों का सख्ती के साथ पालन करना होता है। जिसमें पालतू डॉग का वैक्सीनेशन से लेकर उसे बाहर घुमाने सहित कई तरह के नियमों को डिटेल में बताया गया है। सबसे जरूरी नियम तो यह है कि अगर कोई शख्स अपने पालतू डॉग को घर से बाहर घुमाने के लिए लेकर जा रहा है तो डॉग को मजल (मास्क) पहनना जरूरी है। अगर डॉग ने यह मास्क पहना हुआ है तो वह किसी को काट नहीं पाएगा।