Sri Lanka: भारत को ‘रिश्तेदार’ और चीन को ‘दोस्त’ कहने वाले महिंदा राजपक्षे की कुर्सी गई, ‘ड्रैगन’ की दोस्ती ने लगा दी श्रीलंका की ‘लंका’
कोलंबो/बीजिंग : कहानी की शुरुआत थोड़ा पीछे से करते हैं, ‘बीजिंग और कोलंबो के बीच ‘मैत्रीपूर्ण संबंधों’ में किसी ‘तीसरे पक्ष’ को दखल नहीं देना चाहिए’, ये शब्द थे जनवरी में श्रीलंका के दौरे पर आए चीनी विदेश मंत्री वांग यी के। राजपक्षे ब्रदर्स को छोड़कर यह सभी को पता था कि चीन के ये ‘मीठे शब्द’ श्रीलंका के भविष्य के लिए कितने घातक साबित होंगे। जब यह खबर लिखी जा रही है तब श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे इस्तीफा दे चुके हैं, कोलंबो की हिंसक झड़प में करीब 23 लोग घायल हो चुके हैं और पूरा देश कर्फ्यू के सन्नाटे में कैद है। चीन समर्थक महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका को चीन के उपनिवेश के रूप में बदल दिया है। ‘ड्रैगन’ की दोस्ती ने न सिर्फ ‘लंका में आग लगाई’ बल्कि महिंदा राजपक्षे की भी ‘लंका लगा दी’।
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन और भारत की रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के इतिहास और श्रीलंका में भू-राजनीतिक प्रभाव के लिए दोनों की रेस को अगर संदर्भ में रखें तो यह समझना आसान है कि चीनी विदेश मंत्री ने ‘तीसरा पक्ष’ किस देश के लिए इस्तेमाल किया। 2005 से 2015 तक महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे। उनके दूसरे कार्यकाल में चीन ने श्रीलंका में अपने पैर पसारे। इससे भारत की टेंशन तो बढ़ी लेकिन राजपक्षे एक अच्छे पड़ोसी साबित नहीं हुए।
चीनी कर्ज की बलि चढ़ा हंबनटोटा बंदरगाह
श्रीलंका ने न सिर्फ भारत के सुरक्षा हितों को नजरअंदाज किया बल्कि चीन को बड़े पैमाने पर रणनीतिक अड्डे विकसित करने की खुली छूट दी। श्रीलंका में चीन की कर्ज-जाल कूटनीति सफल साबित हुई जिसका उदाहरण हंबनटोटा बंदरगाह है जिसे कर्ज न चुका पाने के चलते राजपक्षे को 99 साल की लीज पर चीन को देना पड़ा। यह बंदरगाह भारत के बेहद पास में स्थित है। 2019 में गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने और महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे, जिसके बाद वह खुलकर चीन के इशारों पर काम करने लगे।
राजपक्षे सरकार ने भारत को ECT प्रोजेक्ट से बाहर किया
राजपक्षे सरकार ने कोलंबो पोर्ट पर बनने वाले ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) प्रोजेक्ट से भारत को बाहर कर दिया। कहा गया कि सरकार ने देशभर के ट्रेड यूनियनों के कड़े विरोध के बाद यह फैसला लिया। साल 2019 में श्रीलंका सरकार ने भारत और जापान के साथ मिलकर इस पोर्ट पर कंटेनर टर्मिनल बनाने के लिए समझौता किया था। भारत के इस प्रोजक्ट को हंबनटोटा पोर्ट पर चीन की मौजूदगी की काट के रूप में देखा जा रहा था।
श्रीलंका में चीन बना सकता है कॉलोनी
इतना ही नहीं, श्रीलंकाई संसद में कोलंबो पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल पास किया गया जिससे कथित तौर पर चीन को श्रीलंका में एक उपनिवेश स्थापित करने की अनुमति मिल गई। चीन को लेकर राजपक्षे के फैसले लगातार देश की संप्रभुता को कमजोर करते रहे। भारत CHEC पोर्ट सिटी कोलंबो को लेकर चिंतित है जो धीरे-धीरे चीन की एक कॉलोनी बन सकता है। यह भारत के दक्षिणी छोर से सिर्फ 300 किमी की दूरी पर स्थित है।
तमिल बहुसंख्यक प्रांतों में प्रभाव बढ़ा रहा चीन
चीन अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रातों में भी अपने अधिपत्य को बढ़ा रहा है जहां तमिल बहुसंख्यक हैं। चीन की सरकारी कंपनियों ने अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को लेकर काम शुरू कर दिया है। राजपक्षे ने भारत को रिश्तेदार और चीन को दोस्त कहा था और कोरोना महामारी, तेल की कमी और आर्थिक संकट जैसी मुश्किलों में भारत ने अपनी भूमिका को अच्छी तरह से अदा किया है।
इस्तीफे से क्या लोगों के लिए क्या बदलेगा?
महिंदा राजपक्षे के जीत पर विदेशी मामलों के जानकार डॉक्टर रहीस सिंह ने कहा था कि आने वाले समय में पुराने चीन समर्थक राजपक्षे की नीतियों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। आज न सिर्फ उनकी बात सच साबित हुई है बल्कि उसके नतीजे भी दुनिया के सामने हैं। पूरी तस्वीर को आसानी से ऐसे समझा जा सकता है कि चीन ने श्रीलंका की तरफ अपना कर्ज जाल फेंका और राजपक्षे आगे बढ़कर उसमें सिर्फ ‘फंसे’ नहीं बल्कि ‘लिपट’ गए।
इस ‘षड़यंत्र भरी दोस्ती’ ने भारत और पश्चिमी देशों के लिए टेंशन पैदा कर दी है। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे और तमिल विद्रोहियों का क्रूरता से दमन करने वाले महिंदा राजपक्षे ने अपना इस्तीफा अपने भाई और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को सौंप दिया है। आज की रात आपातकाल में बंद श्रीलंका बिना किसी प्रधानमंत्री के सोएगा लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगली सुबह आम लोगों की जिंदगी में क्या बदलाव लेकर आएगी?
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन और भारत की रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के इतिहास और श्रीलंका में भू-राजनीतिक प्रभाव के लिए दोनों की रेस को अगर संदर्भ में रखें तो यह समझना आसान है कि चीनी विदेश मंत्री ने ‘तीसरा पक्ष’ किस देश के लिए इस्तेमाल किया। 2005 से 2015 तक महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे। उनके दूसरे कार्यकाल में चीन ने श्रीलंका में अपने पैर पसारे। इससे भारत की टेंशन तो बढ़ी लेकिन राजपक्षे एक अच्छे पड़ोसी साबित नहीं हुए।
चीनी कर्ज की बलि चढ़ा हंबनटोटा बंदरगाह
श्रीलंका ने न सिर्फ भारत के सुरक्षा हितों को नजरअंदाज किया बल्कि चीन को बड़े पैमाने पर रणनीतिक अड्डे विकसित करने की खुली छूट दी। श्रीलंका में चीन की कर्ज-जाल कूटनीति सफल साबित हुई जिसका उदाहरण हंबनटोटा बंदरगाह है जिसे कर्ज न चुका पाने के चलते राजपक्षे को 99 साल की लीज पर चीन को देना पड़ा। यह बंदरगाह भारत के बेहद पास में स्थित है। 2019 में गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने और महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे, जिसके बाद वह खुलकर चीन के इशारों पर काम करने लगे।
राजपक्षे सरकार ने भारत को ECT प्रोजेक्ट से बाहर किया
राजपक्षे सरकार ने कोलंबो पोर्ट पर बनने वाले ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) प्रोजेक्ट से भारत को बाहर कर दिया। कहा गया कि सरकार ने देशभर के ट्रेड यूनियनों के कड़े विरोध के बाद यह फैसला लिया। साल 2019 में श्रीलंका सरकार ने भारत और जापान के साथ मिलकर इस पोर्ट पर कंटेनर टर्मिनल बनाने के लिए समझौता किया था। भारत के इस प्रोजक्ट को हंबनटोटा पोर्ट पर चीन की मौजूदगी की काट के रूप में देखा जा रहा था।
श्रीलंका में चीन बना सकता है कॉलोनी
इतना ही नहीं, श्रीलंकाई संसद में कोलंबो पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल पास किया गया जिससे कथित तौर पर चीन को श्रीलंका में एक उपनिवेश स्थापित करने की अनुमति मिल गई। चीन को लेकर राजपक्षे के फैसले लगातार देश की संप्रभुता को कमजोर करते रहे। भारत CHEC पोर्ट सिटी कोलंबो को लेकर चिंतित है जो धीरे-धीरे चीन की एक कॉलोनी बन सकता है। यह भारत के दक्षिणी छोर से सिर्फ 300 किमी की दूरी पर स्थित है।
तमिल बहुसंख्यक प्रांतों में प्रभाव बढ़ा रहा चीन
चीन अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रातों में भी अपने अधिपत्य को बढ़ा रहा है जहां तमिल बहुसंख्यक हैं। चीन की सरकारी कंपनियों ने अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को लेकर काम शुरू कर दिया है। राजपक्षे ने भारत को रिश्तेदार और चीन को दोस्त कहा था और कोरोना महामारी, तेल की कमी और आर्थिक संकट जैसी मुश्किलों में भारत ने अपनी भूमिका को अच्छी तरह से अदा किया है।
इस्तीफे से क्या लोगों के लिए क्या बदलेगा?
महिंदा राजपक्षे के जीत पर विदेशी मामलों के जानकार डॉक्टर रहीस सिंह ने कहा था कि आने वाले समय में पुराने चीन समर्थक राजपक्षे की नीतियों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। आज न सिर्फ उनकी बात सच साबित हुई है बल्कि उसके नतीजे भी दुनिया के सामने हैं। पूरी तस्वीर को आसानी से ऐसे समझा जा सकता है कि चीन ने श्रीलंका की तरफ अपना कर्ज जाल फेंका और राजपक्षे आगे बढ़कर उसमें सिर्फ ‘फंसे’ नहीं बल्कि ‘लिपट’ गए।
इस ‘षड़यंत्र भरी दोस्ती’ ने भारत और पश्चिमी देशों के लिए टेंशन पैदा कर दी है। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे और तमिल विद्रोहियों का क्रूरता से दमन करने वाले महिंदा राजपक्षे ने अपना इस्तीफा अपने भाई और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को सौंप दिया है। आज की रात आपातकाल में बंद श्रीलंका बिना किसी प्रधानमंत्री के सोएगा लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगली सुबह आम लोगों की जिंदगी में क्या बदलाव लेकर आएगी?