Singrauli Pollution: इस शहर में हर शख्स परेशान सा है, यहां मौत के साये में जीने को मजबूर हैं लोग, राख में मिलकर स्याह हो रही जिंदगी

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Singrauli Pollution: इस शहर में हर शख्स परेशान सा है, यहां मौत के साये में जीने को मजबूर हैं लोग, राख में मिलकर स्याह हो रही जिंदगी

Singrauli Pollution: इस शहर में हर शख्स परेशान सा है, यहां मौत के साये में जीने को मजबूर हैं लोग, राख में मिलकर स्याह हो रही जिंदगी


सीने में जलन, आंखों में तूफ़ान सा क्यों है,
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यों है…?
साल 1978 में आई फिल्म ‘गमन’ का ये गाना आज मध्य प्रदेश की उर्जाधानी सिंगरौली में रहने वाल लोगों के हालात को बखूबी बयां करता है। यहां हवा में जहर घुला हुआ है, हर सांस सिंगरौली वालों पर भारी है। काचन नदी के पानी में बर्फ जैसा सफेद लेकिन जहरीला फोम भरा हुआ है। बारूद की ढेर पर शहर बसा है, जिससे लोगों में आज भी खौफ है। 5 जुलाई 2009 की वो काली रात हर किसी के जहन में याद है। इस दिन बारूद कंपनी में एक तेज धमाके के साथ विस्फोट हुआ था, जिसमें 30 लोगों की मौत और 100 लोग घायल हो गए थे। दूसरी ओर यहां के लोग कोयला खाते हैं, पीते हैं और इसी में जीते हैं। इस वजह से यहां के लोग कई गंभीर बीमारियों की चपेट में हैं। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियां जिंदगी की मुश्किलें बढ़ाती जा रही हैं, लेकिन दमघोंटू हवा इस शहर के लोगों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है।

सबसे ज्यादा बिजली और कोयले का उत्पादन

ऋषि श्रृंगी मुनि की तपोभूमि सिंगरौली प्रदेश का वह जिला है जहां देश में सबसे अधिक मात्रा में बिजली और कोयले का उत्पादन किया जाता है। काले हीरे के साथ यहां की जमीन सोना भी उगलती है। यहां सोने का उत्पादन भी किया जा रहा है। प्रदेश को सबसे अधिक राजस्व भी इसी जिले से मिलता है, लेकिन बिडम्बना यह है कि यहां के लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। यहां की फिजाओं में जहर घुल गया है, जिससे लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत है। हवा ,पानी सब जहरीली हो गई है। यहां के लोगों की जिंदगी कोयले की काली राख से काली हो गई है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि हम तो कोयला खाते हैं, कोयला पीते हैं और कोयले में जीते हैं। विकास के इस चकाचौंध में हम लोगों की जिंदगी में आज भी अंधेरा है।

सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार

सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार

वैसे तो सिंगरौली का नाम बिजली व कोयले उत्पादन के लिए देश विदेश में जाना जाता है, लेकिन प्रदूषण के मामले में भी सिंगरौली देश के टॉप टेन शहरों में शामिल है। यहां की सड़कों पर कोयले की काली धूल दिखाई देती है। लोगों के घरों में कोयले की परत जम जाती है। सड़कों पर कोयले से लदे वाहन दौड़ते हैं। कोयले की काली धूल का गुबार हवा में घुल कर प्राणवायु को जहरीला बना रहा है। यहां के लोग जब सांस लेते हैं तो उनके नाक से भी कोयले के कण दिखाई देते हैं। यानी सांसों में भी कोयले के कण हवा के साथ मिल गए हैं। इस इलाके के लोग प्रदूषण का दंश झेलने को मजबूर हैं।

राख से काली हो रही जिंदगी

राख से काली हो रही जिंदगी

विश्व भर के प्रदूषित क्षेत्रों का डाटा तैयार करने वाली अमेरिका की संस्था ब्लैक स्मिथ ने सिंगरौली को दुनिया के 10 सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में शुमार किया। वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण एजेंसी ने भी इसे देश के 22 अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों की सूची में रखा है। धरती के छह सर्वाधिक प्रदूषण चिंताओं में शुमार पारा यहां की हवाओं में घुल गया है और घुल रहा है। इसके लिए भी उड़ती हुई राख को जिम्मेदार बताया गया है। सिंगरौली की सड़कों पर आपको हमेशा धुंध जैसी दिखाई देगी। आंखों में जलन और शाम जल्दी ढल जाती है। पेड़ों के पत्ते काले दिखते हैं। उन पर जमा राख आपको आसानी से दिख जाएगी। स्थानीय लोगों के मुताबिक इस राख से उनकी जिंदगी तो काली हुई है, बागों में फल आना और फसल उत्पादन तक गिर गया है।

हर रोज होता है तेज धमाका, सहम जाते हैं लोग

हर रोज होता है तेज धमाका, सहम जाते हैं लोग

सिंगरौली शहर में प्रवेश करते ही आपका स्वागत तेज आवाज और कंपन के साथ होगा। आप ऐसा महसूस करेंगे कि कहीं बड़ा ब्लास्ट हुआ है। धमाके की तेज आवाज सुनाई देगी। यदि आप पहली बार यहां आए हुए हैं तो यह तेज आवाज सुनकर डर जाएंगे, लेकिन सिंगरौली में रहने वाले लोगों को इसकी आदत पड़ गई है। वे प्रतिदिन इन धमाकों को झेल रहे हैं। हैवी ब्लास्टिंग की तेज आवाज पूरे शहर में गूंजती है। कोल माइंस कंपनियां मानकों को दरकिनार कर अनियंत्रित हैवी ब्लास्टिंग करती हैं जिससे विस्थापित व आसपास के रहवासी आहत हैं। ब्लास्टिंग अमलोरी , मुहेर के साथ ही अन्य खदानों में की जाती है जिसकी धमक कई किलोमीटर दूर तक होती है। लोगों के घरों में दरारें पड़ जाती हैं। वे अक्सर प्रशासन से इसकी शिकायत करते हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

बच्चों पर पॉल्यूशन का सबसे अधिक असर

बच्चों पर पॉल्यूशन का सबसे अधिक असर

सिंगरौली जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. ओपी झा के मुताबिक पानी में टीडीएस और फ्लोराइड के चलते दांतों और हडि्डयों पर असर पड़ता है। दांत बदरंग हो जाते हैं। हडि्डयां टूटने लगती हैं। शरीर में हवा, पानी या खाद्य के माध्यम से यदि पारा जा रहा है, तो ये एक तरह से स्लो पॉइजन है। ये लंग्स को डैमेज करता है। न्यूरोमस्कुलर संबंधी समस्याएं आती हैं। एयर पॉल्यूशन की वजह से सांस संबंधी बीमारी, स्किन डिसीस और टीबी आदि का खतरा बढ़ जाता है। महिलाओं में बांझपन हो सकता है।

डेंजर जोन में है यह इलाका

डेंजर जोन में है यह इलाका

सिंगरौली में ऐसे 12 रोड और चौराहे हैं, जहां पूरे समय धूल और धुएं से कोहरा छाया रहता है। यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 900 से 1200 के बीच रहता है जो मानक स्तर से 20 से 25 गुना ज्यादा है। एनसीएल के सूर्य किरण गेट पर ये औसतन 500 के ऊपर रहता है। यह भी लाइव अपडेट नहीं होता। यहां प्रदूषण के आंकड़े छिपाने के लिए एक दिन बाद मैन्युअल डाटा अपडेट किया जाता है। जबकि दिल्ली में जब पराली जलाने का समय होता है, तब AQI अधिकतम 400 तक पहुंचता है। इसका कारण कोयला, उसकी राख और कोयला ढोने वाले हजारों वाहनों का धुआं है। डीजल से चलने वाले रोज दो हजार वाहन लगभग एक लाख चक्कर लगाते हैं। ओवरलोडिंग के चलते ईंधन की खपत बढ़ती है, जो धुएं में बदल जाती है। कोयले में जहरीला पारा होता है। पावर प्लांटों में कोयला जलाने से वातावरण में मिलकर लोगों के शरीर में प्रवेश करता है। 11 थर्मल पावर प्लांटों से बड़ी मात्रा में पारा निकलता है।

यहां की जमीन भी दूषित

यहां की जमीन भी दूषित

NGT कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक सिंगरौली की जमीन भी दूषित हो चुकी है। मिट्‌टी की जांच में पारे की मात्रा अधिक मिली है। यहां प्रति किलो मिट्‌टी में 10.009 मिलीग्राम पारा मिला है, जबकि मानक 6.6 होना है। खाद्यान्न के सैंपल की जांच में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है। इसी जमीन से पैदा होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर लोग बीमारियों की चपेट में रहे हैं। रिहंद सहित उसकी सहायक नदियों और नालों का पानी पारायुक्त होने से मछलियां भी जहरीली हो रही हैं। प्रति किलो मछली में 0.505 मिलीग्राम पारा मिला है, जो 0.25 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।

प्रदूषण रोकने के उपाय नाकाफी

प्रदूषण रोकने के उपाय नाकाफी

सिंगरौली में प्रदूषण रोकने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के दिए गए आदेशों का पालन न होने के संबंध में कलेक्टर अरुण परमार ने बताया कि कुछ सप्ताह पहले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कोल, ताप सहित अन्य कंपनियों के अधिकारियों की एक बैठक ली थी। इसमें NGT की ओर से जारी निर्देशों के पालन करने के लिए आदेश दिए हैं। मॉनीटरिंग सिस्टम बढ़ाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को कहा है। सिंगरौली में प्रदूषण कंट्रोल करना हमारे लिए भी एक चुनौती का काम है। फिर भी हम लगातार इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। पुलिस और खनिज विभाग कार्रवाई भी कर रही है। धूल रोकने के लिए रोड पर पानी का छिड़काव भी कराया जा रहा है।

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