Shiv Sena Dispute: क्या है सादिक अली मामला, जिसका शिंदे और उद्धव ‘सेना’ के झगड़े में हुआ जिक्र, क्यों दी गई दलील?

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Shiv Sena Dispute: क्या है सादिक अली मामला, जिसका शिंदे और उद्धव ‘सेना’ के झगड़े में हुआ जिक्र, क्यों दी गई दलील?

Shiv Sena Dispute: क्या है सादिक अली मामला, जिसका शिंदे और उद्धव ‘सेना’ के झगड़े में हुआ जिक्र, क्यों दी गई दलील?

मुंबई: महाराष्ट्र के सियासी संकट से उपजे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट पहले उस अंतरिम अर्जी पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग को शिंदे ग्रुप की अर्जी पर सुनवाई से रोका जाए। इसमें उन्होंने खुद को असली शिवसेना बताते हुए मान्यता देने की गुहार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच इस मामले की सुनवाई कर रहा है। उद्धव ठाकरे कैंप की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल बहस कर रहे हैं। वहीं शिंदे गुट के वकील नीरज कौल हैं।

नीरल कौल ने सुनवाई के दौरान कोर्ट में कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने एकनाथ शिंदे गुट विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता दी है। क्योंकि ठाकरे कैंप के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष को विधायक को अपात्र ठहराने का अधिकार है। कौल ने सादिक अली मामले के फैसले का हवाला अदालत में दिया। परिशिष्ट 25 और 26 के अनुसार चुनाव आयोग को पार्टी सिंबल पर फैसला लेने का अधिकार है।

सादिक अली मामला क्या है?

एकनाथ शिंदे गुट के वकील नीरज कौल की तरफ से अदालत में सादिक अली मामले का हवाला दिया गया। यह प्रकरण कांग्रेस के अंदर हुई फूट से जुड़ा हुआ है। उस दौरान चुनाव आयोग के दिए गए फैसले के खिलाफ एक गुट सुप्रीम कोर्ट गया था। जिसके बाद 1969 में कांग्रेस में दो गुट हो गए थे। इंदिरा गांधी के खिलाफ कांग्रेस आर्गेनाईजेशन गुट की स्थापना हुई थी। तब इंदिरा गांधी के समर्थकों ने कांग्रेस रिक्विजिशन गुट की स्थापना की थी।

उस समय इंदिरा गांधी के गुट को असली कांग्रेस कहा गया था। इसी फैसले के खिलाफ दूसरा गुट सुप्रीम कोर्ट गया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने दो अहम बातों का जिक्र किया था एक बहुमत और दूसरा लक्ष्य और उद्देश्यों की जानकारी। बहुमत के जोर पर फैसला इंदिरा गांधी के हक में गया था। जिसके बाद इंदिरा गांधी के गुट को इंडियन कांग्रेस का नाम दिया गया।

दो गुटों में बंटी थी कांग्रेस

मामला साल 1969 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान तब आया था जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। कांग्रेस सिंडिकेट की तरफ से नीलम संजीव रेड्डी आधिकारिक प्रत्याशी थे। उस चुनाव में वीवी गिरी निर्दलीय प्रत्याशी थे। माना जा रहा था कि इंदिरा गांधी का उनको समर्थन था। इंदिरा गांधी ने अंतरआत्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की थी। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष निंजलिगप्पा ने पार्टी प्रत्याशी को वोट देने के लिए व्हिप जारी किया।

हालांकि, बड़े पैमाने पर कांग्रेस के नेताओं ने वीवी गिरी को वोट दिया। गिरी चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बन गए। इसके बाद सिंडिकेट ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया। हालांकि, बहुमत होने के कारण इंदिरा ने अपनी सरकार बचा ली थी। इसके बाद मामला चुनाव आयोग पहुंचा। उस समय आयोग ने कांग्रेस सिंडिकेट को ही असली कांग्रेस माना था। उस समय अधिकतर पदाधिकारी सिंडिकेट के साथ थे। ऐसे में पार्टी सिंबल दो बैलों को जोड़ा भी सिंडिकेट को ही मिला था। बाद में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (ई) पार्टी बनाई। आयोग की ओर से उन्हें बछड़ा पार्टी सिंबल मिला।

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