Shiv sena crisis : एकनाथ शिंदे क्यों नहीं हथिया सकते शिवसेना? क्या कहता है पार्टी का संविधान, जानें सबकुछ

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Shiv sena crisis : एकनाथ शिंदे क्यों नहीं हथिया सकते शिवसेना? क्या कहता है पार्टी का संविधान, जानें सबकुछ

मुंबई : शिवसेना से बगावत करने वाले नेता एकनाथ शिंदे दावा कर रहे हैं कि वही असली शिवसेना है, लेकिन क्या वह शिवसेना हथिया सकते हैं? यह सवाल मौजूदा दौर में बहुत महत्वपूर्ण है और इस सवाल का जवाब शिवसेना के संविधान में छुपा है? वह संविधान जो शिवसेना ने चुनाव आयोग में कई साल पहले जमा कराया है। शिवसेना का यह संविधान जिन लोगों ने पढ़ा है, उनका दावा है कि एकनाथ शिंदे कभी भी शिवसेना नहीं हथिया सकते, क्योंकि इस संविधान में ‘शिवसेनाप्रमुख’ पद पर बैठे व्यक्ति का फैसला ही अंतिम है और सभी को उसे मानना बंधनकारी है। शिवसेना प्रमुख का पद ही सर्वोच्च है और उसे किसी को भी पार्टी से निकालने का अधिकार है। किसी को भी पार्टी से निकालने का फैसला राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सलाह से शिवसेना प्रमुख पद पर बैठा व्यक्ति ले सकता है। इसीलिए उद्धव ठाकरे ने शनिवार को शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई।

क्या शिंदे शिवसेनाप्रमुख बन सकते हैं?

शिवसेना का संविधान कहता है कि शिवसेनाप्रमुख का चुनाव पार्टी की ‘प्रतिनिधि सभा’ करती है। प्रतिनिधि सभा में सिर्फ विधायक और सांसद ही नहीं, बल्कि जिला प्रमुख जिला संपर्क प्रमुख और मुंबई के विभाग प्रमुख भी शामिल होते हैं। 2018 में जब उद्धव ठाकरे को ‘शिवसेनाप्रमुख’ चुना गया था, उस वक्त शिवसेना की प्रतिनिधि सभा में 282 प्रतिनिधि थे, जिन्होंने उद्धव ठाकरे को पार्टी का प्रमुख चुना था। इतना ही नहीं, शिवसेना की नीति नियामक इकाई जिसे ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी’ कहते हैं, उसका चुनाव भी प्रतिनिधि सभा ही करती है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 14 सदस्य होते हैं। इनमें से शिवसेनाप्रमुख पद पर बैठा व्यक्ति अधिकतम 5 सदस्यों की नियुक्ति कर सकता है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अवधि 5 वर्ष की होती है। इस समय जो राष्ट्रीय कार्यकारिणी कार्य कर रही है, उसकी अवधि 23 जनवरी, 2023 तक बरकरार है।

आदित्य निर्वाचित शिंदे नियुक्त
2018 में शिवसेना की प्रतिनिधि सभा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए 9 सदस्यों को निर्वाचित किया था। जिनमें आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, सुधीर जोशी, लीलाधर डाके, दिवाकर रावते, सुभाष देसाई, रामदास कदम, संजय राउत और गजानन कीर्तिकर चुने गए थे। इनमें से सुधीर जोशी दिवंगत हो चुके हैं। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बाद में 4 और सदस्यों को नियुक्त किया, जिनमें अनंत गीते, चंद्रकांत खैरे, आनंदराव अडसूल और एकनाथ शिंदे की नियुक्ति राष्ट्रीय कार्यकारिणी में की गई थी। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल लोगों को ही अपने नाम के साथ ‘शिवसेना नेता’ लिखने का अधिकार है।

शिंदे को निकाल सकते हैं उद्धव
पार्टी का संविधान कहता है कि शिवसेना प्रमुख पद पर बैठे व्यक्ति को संगठन में से किसी को भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सलाह से निकालने का अधिकार है। उल्लेखनीय है कि एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के विधायक भले ही टूट कर चले गए हैं, परंतु राष्ट्रीय कार्यकारिणी का कोई सदस्य नहीं गया है। यानी राष्ट्रीय कार्यकारिणी पर अब भी उद्धव ठाकरे का ही वर्चस्व है।

संविधान बदलने का कोई चांस नहीं
शिवसेना का संविधान कहता है कि संविधान में किसी भी संशोधन का अधिकार सिर्फ राष्ट्रीय कार्यकारिणी को है। पार्टी के संविधान में यह भी लिखा गया है कि यदि किसी मुद्दे पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मतभेद होते हैं, तो ऐसी स्थिति में शिवसेनाप्रमुख पद पर बैठे व्यक्ति का निर्णय ही अंतिम, सर्वमान्य और बंधनकारी होगा। ऐसे में, अब बागी शिंदे गुट के पास किसी दूसरी पार्टी में विलय करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

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