SDM पर पिस्तौल तानी, माफी बचा सकती है विधायकी?: राज्यपाल के पास है पावर, एक्सपर्ट से जानिए- बीजेपी MLA कंवरलाल केस में क्या हैं नियम – Rajasthan News h3>
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बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की अयोग्यता के मुद्दे पर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस का आरोप है कि स्पीकर की भूमिका संदेह के घेरे में है। वे विधायक को बचाने के लिए राज्यपाल से सजा माफ करवाने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
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उधर, कंवरलाल मीणा के पास भी वक्त लगभग खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद अब मीणा को जल्द ही कोर्ट में सरेंडर करना होगा। लेकिन इन सबके बीच राज्यपाल की शक्तियों को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।
क्या राज्यपाल किसी की सजा माफ कर सकते हैं? सजा कम या माफ करने पर क्या विधायक की विधानसभा से सदस्यता नहीं जाएगी? इन सब सवालों को जानने के लिए पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट….
सबसे पहले जानिए क्या है मामला?
बारां की अंता विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा को 20 साल पुराने मामले में दोषी मानते हुए तीन साल की सजा सुनाई गई थी।
7 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कंवरलाल मीणा की विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए दो सप्ताह में सरेंडर करने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कंवरलाल मीणा के पास सरेंडर करने के लिए दो सप्ताह का वक्त था, जो लगभग खत्म हो चुका है।
कंवरलाल मीणा अंता सीट से बीजेपी के विधायक हैं। सरेंडर नहीं करने पर पुलिस के पास उनकी गिरफ्तारी का अधिकार होगा।
7 मई के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद भी अब तक स्पीकर ने विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा से अयोग्यता पर फैसला नहीं लिया है।
चूंकि 2 साल से अधिक सजा होने पर विधायक की विधायकी समाप्त कर दी जाती है। यही कारण है कि कांग्रेस ने राज्यपाल से सजा माफ करवाने का षड्यंत्र रचने तक का आरोप लगाया है।
राज्यपाल द्वारा किसी मामले में सजा माफ करने या कम करने की शक्तियों को लेकर हमने बात की हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रतीक कासलिवाल से बात की…
सवाल : सजा माफ करने या कम करने की राज्यपाल के पास कौन सी शक्तियां होती हैं।
जवाब : संविधान का अनुच्छेद-161 राज्यपाल को ये अधिकार देता है कि वो किसी की भी सजा को माफ करने, सस्पेंड करने या रेमिट (सजा से बचाना) कर सकते हैं।
किसी भी अदालत से दोषी व्यक्ति राज्यपाल के पास सजा माफी या कम करने के लिए अर्जी लगा सकते हैं। जिसके बाद राज्यपाल गुण-अवगुण के आधार पर फैसला ले सकते हैं।
मान लीजिए किसी को दो साल की सजा हुई है तो राज्यपाल संविधान में मिली अपनी शक्तियों के आधार पर या तो सजा को पूरी तरह माफ कर सकते हैं या फिर एक साल, छ महीने कम कर सकते हैं।
कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार के दिन राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा था कि विधायक कंवरलाल मीणा को संविधान के अनुच्छेद -161 का लाभ दिया जाना न्यायोचित नहीं है।
सवाल : संविधान का अनुच्छेद-161 क्या कहता है?
जवाब : अनुच्छेद-161 (क्षमा, दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राज्यपाल की शक्ति) राज्यपाल की शक्तियों से जुड़ा है। इसके अनुसार किसी राज्य के राज्यपाल को उस विषय संबंधी, जिस विषय पर उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।
किसी विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गये किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी।
सवाल : क्या राज्यपाल को सजा माफी के लिए कैबिनेट की सलाह लेनी पड़ती है?
जवाब : संविधान में राज्यपाल को अलग से शक्तियां प्रदान की गई हैं। राज्यपाल को ऐसे मामलों में कैबिनेट से सलाह लेने की जरूरत नहीं होती है।
राज्यपाल स्वयं निर्णय ले सकते हैं। हालांकि किसी मामले में अगर किसी कोर्ट ने किसी व्यक्ति को दोषी करार दिया है और उसकी अपील किसी बड़ी कोर्ट में कर रखी हैं तो ऐसे मामलों में राज्यपाल फैसला नहीं ले सकते हैं।
सवाल : विधायकी जाने के साथ-साथ अगले 6 साल चुनाव नहीं लड़ने का प्रावधान होता है, सजा माफ पर यह नियम लागू होगा या नहीं?
जवाब : अगर राज्यपाल किसी विधायक-सांसद की सजा माफ कर देते हैं तो अगले 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ने का प्रावधान स्वतः: ही खत्म हो जाएगा।
सवाल : अब तक किसी विधायक की सजा माफी का कोई केस सामने आया है?
जवाब : राजस्थान में अब तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं है।
सवाल : दोषी विधायक का मौजूदा स्टेटस क्या है?
जवाब : नियमानुसार सजा होने के दिन से ही दोषी विधायक या सांसद अपने पद से हटा हुआ माना जाता है। स्पीकर के पास विधायक की अयोग्यता को लेकर सिर्फ औपचारिकता ही रह जाती है।
सवाल : स्पीकर कब तक ले सकते हैं फैसला?
जवाब : स्पीकर फैसला लेने को लेकर पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं। या तो वे एक दिन में ही फैसला ले सकते हैं या फिर पूरा समय लेकर निर्णय ले सकते हैं। स्पीकर के सामने कोई समय सीमा नहीं होती।
एसडीएम पर तान दी थी पिस्तौल, सबूत तक मिटा डाले
3 फरवरी 2005 को झालावाड़ के मनोहर थाने से दो किमी दूर दांगीपुरा-राजगढ़ मोड़ पर गांव के लोगों ने खाता खेड़ी के उपसरपंच के चुनाव के संबंध में फिर से मतदान करवाने के लिए रास्ता रोक रखा था।
जिसकी सूचना पर तत्कालीन एसडीएम रामनिवास मेहता, प्रोबेशनर आईएएस डॉक्टर प्रीतम बी यशवंत और तहसीलदार रामकुमार के साथ मौके पर पहुंचे। वे लोगों को समझा रहे थे।
करीब आधे घंटे बाद कंवरलाल मीणा अपने कुछ साथियों के साथ मौके पर आया। उसने एसडीएम मेहता की कनपटी पर पिस्टल तान कर कहा कि दो मिनट में वोटों की गिनती फिर से कराने की घोषणा नहीं की तो जान से मार दूंगा।
मेहता ने उससे कहा- इस तरह से जान जा सकती है, लेकिन दोबारा वोटों की गिनती की घोषणा नहीं हो सकती है। गांव के लोगों ने कंवरलाल को समझाया।
आईएएस का कैमरा छीना लिया था
इसके बाद उसने विभाग के फोटोग्राफर के कैमरे से कैसेट निकालकर तोड़ दिया और फिर जला दिया। कंवरलाल ने डॉक्टर प्रीतम का डिजिटल कैमरा भी छीन लिया। करीब 20 मिनट बाद कैमरा लौटाया।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने कंवरलाल मीणा को 2 अप्रैल 2018 को दोषमुक्त किया था। अपील कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटते हुए उसे दोषी करार दिया था। जिसके खिलाफ कंवरलाल मीणा ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
इस केस से भी पहले 15 केस में नाम
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था- घटना के समय याचिकाकर्ता ने स्वयं को एक राजनीतिक व्यक्ति होना बताया। उस स्थिति में उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह कानून व्यवस्था को चुनौती देने की बजाय उसे बनाए रखने में सहयोग करेंगे।
लेकिन, उन्होंने रिपोल की मांग करते हुए एसडीएम की कनपटी पर पिस्टल तान दी। उन्हें जान से मारने की धमकी दी। वीडियोग्राफर की कैसेट निकालकर उसे तोड़ दिया।
इस घटना से पहले याचिकाकर्ता के खिलाफ 15 आपराधिक केस दर्ज हो चुके थे। अधिकांश में उसका दोष मुक्त होना बताया गया है। फिर भी उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि को यहां पर नजरअंदाज किया जाना उचित नहीं है।
एक मई को हाईकोर्ट ने विधायक की अपील को खारिज करते हुए अपीलेंट कोर्ट (एडीजे, अकलेरा, झालावाड़) के फैसले को बरकरार रखा था। इसके बात सुप्रीम कोर्ट ने भी मीणा की एसएलपी खारिज कर दी थी।
कांग्रेस ने राज्यपाल से की लाभ नहीं देने की मांग
कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार के दिन राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा था। ज्ञापन में कहा गया था कि विधायक कंवरलाल मीणा को संविधान के अनुच्छेद -161 का लाभ दिया जाना न्यायोचित नहीं है।
कानूनी तथ्यों को संज्ञान में लाते हुए का था कि लिलि थॉमस के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यदि किसी विधायक-सांसद को 2 साल या उससे अधिक की सजा किसी आपराधिक मामले में हो जाती है तो वह तुरंत विधायक-सांसद पद से अयोग्य हो जाएगा।
राज्यपाल को दिए ज्ञापन के अंत में कहा गया था कि न्यायहित में आपसे अनुरोध है कि संविधान के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत विधिक प्रावधानों का अनुचित लाभ लेने के उद्देश्य से सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर विराम लगाते हुए कंवरलाल मीणा के सजा माफी के प्रयासों को अस्वीकृत करते हुए राज्य का गौरवशाली इतिहास बनाए रखेंगे।
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