Sampoorn Kranti: विपक्षी एकता की बात कर रहे अधिकांश नेता कभी इंदिरा हटाओ मुहिम थे शामिल, अब कांग्रेस से तालमेल की कोशिश

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Sampoorn Kranti: विपक्षी एकता की बात कर रहे अधिकांश नेता कभी इंदिरा हटाओ मुहिम थे शामिल, अब कांग्रेस से तालमेल की कोशिश

Sampoorn Kranti: विपक्षी एकता की बात कर रहे अधिकांश नेता कभी इंदिरा हटाओ मुहिम थे शामिल, अब कांग्रेस से तालमेल की कोशिश

Jay Prakash Narayan: अब से करीब पांच दशक पहले जेपी ने 5 जून 1974 को संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। तब संपूर्ण क्रांति के उद्देश्यों में पहला और बड़ा मकसद था केंद्र की सत्ता से इंदिरा गांधी को हटाना। आज बीजेपी को केंद्र से हटाने के लिए जिस तरह विपक्षी एकता की बात हो रही है, तब अभी के अधिकतर नेता इंदिरा हटाओ मुहिम में लगे थे।

 

हाइलाइट्स

  • जेपी ने 5 जून 1974 को दिया था संपूर्ण क्रांति का नारा
  • जेपी आंदोलन से ही इंदिरा 1977 में सत्ता से बेदखल हुईं
  • आज जो नेता कांग्रेस के साथ हैं, तब वे उसके खिलाफ थे
  • देश में 5 जून को मनाया जाता रहा है संपूर्ण क्रांति दिवस
पटना: जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने पटना के गांधी मैदान में 5 जून 1974 को जब संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। संपूर्ण क्रांति के दो शब्दों करीब ढाई साल बाद देश की सियासत में भूचाल ला दिया। इधर जेपी की संपूर्ण क्रांति के लिए चल रहा आंदोलन और उधर 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला। घबराहट में इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात इमरजेंसी की घोषणा कर दी। विरोधी विचारधारा वाले छोटे-बड़े नेताओं की गिरफ्तारी उसी रात से शुरू हो गई। इंदिरा ने विपक्ष की आवाज को कुचलने की भरसक कोशिश की। इसके बावजूद आजादी के बाद से सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के पांव उखड़ ही गये। साल 1977 में विपक्षी दलों के गंठजोड़ से बनी जनता पार्टी ने उत्तर और मध्य भारत में कांग्रेस का सफाया कर दिया। कांग्रेस की थोड़ी इज्जत दक्षिण के राज्यों ने बचाई। संपूर्ण क्रांति की इस बड़ी सफलता को याद करने के लिए गैर कांग्रेसी दल हर साल 5 जून को संपूर्ण क्रांति दिवस मनाते हैं। इसी तरह 25 जून को इमरजेंसी की त्रासदी को याद करते हैं। पटना में जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था, इसलिए वहां राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव के लिए समय-समय पर इसका राजनीतिक इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी बदली दिख रही है। कांग्रेस की इमर्जेंसी में हलकान रहने वाले नेता और राजनीतिक दल भी कांग्रेस के साथ खड़े होने को तैयार हो गए हैं।

संपूर्ण क्रांति की जरूरत क्यों पड़ी

बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करने का यूद्ध वर्ष 1971 में हुआ था। भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश का साथ दिया। बांग्लादेश बनाने का श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मिला। उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में जनता ने भारी बहुमत से उन्हें सत्ता सौंपी थी। महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से पहले से ही तबाह जनता ने पाकिस्तान को तोड़ कर बांग्लादेश बनाने की इंदिरा की कूटनीतिक चाल की कामयाबी पर सत्ता का तोहफा तो उन्हें दे दिया। हालांकि जनता की समस्याएं जस की तस खड़ी रहीं। जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा था, इंदिरा गांधी के शासन के प्रति जनता में आक्रोश बढ़ता जा रहा था। जनता का आक्रोश पहली बार तब मुखर हुआ, जब फीस वृद्धि और बढ़ती महंगाई के मुद्दे पर गुजरात में छात्रों ने आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन की गूंज देश के दूसरे राज्यों में भी सुनाई पड़ने लगी। बिहार में गुजरात से भी बड़ा आंदोलन कुलबुला रहा था।

बिहार में जेपी ने किया था नेतृत्व

छात्र वाहिनी बना कर बिहार के छात्रों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। दिक्कत यह थी कि आंदोलन का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं था। सर्वस्वीकार्य नेतृत्व का अभाव खटकने लगा। तब छात्रों के एक समूह ने जेपी यानी जयप्रकाश नारायण से संपर्क साधा। उन दिनों जेपी सक्रिय राजनीति से अलग होकर सामाजिक कार्यों में समय गुजार रहे थे। छात्रों की बात सुन कर वे नेतृत्व के लिए वे तैयार हो गए। 5 जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में विशाल रैली का आयोजन किया गया। लोग बताते हैं कि उतनी भीड़ उसके बाद कभी भी गांधी मैदान में नहीं जुटी। उसी रैली में जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। उन्होंने इसके चार उद्देश्य गिनाए थे। पहला यह कि राजनीतिक क्रांति हो, जिससे सत्ता बदल जाए। दूसरा- सामाजिक क्रांति हो, जिससे जात-पात का भेद खत्म हो। तीसरा- सांस्कृतिक क्रांति हो और चौथा- वैचारिक क्रांति हो। राम मनोहर लोहिया की सप्त क्रांति के तर्ज पर ही जेपी ने संपूर्ण क्रांति में उनकी सात क्रांतियों को समाहित कर दिया।

लोहिया की सप्त क्रांति बनी आधार

जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा ही नहीं दिया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया था कि इसके दायरे में कौन-कौन बातें आएंगी। उन्होंने लोहिया की सात क्रांतियों को ही संपूर्ण क्रांति के रूप में व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा कि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति ही संपूर्ण क्रांति का लक्ष्य होगा। इन सभी क्रांतियों से ही संपूर्ण क्रांति संपूर्ण होगी। उन्होंने बताया-‘संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है।’ जेपी के इस आह्वान के बाद जातिगत भेदभाव मिटाने का अभियान चला। बताते हैं कि रैली में ही जेपी का भाषण सुन कर कई लोगों ने अपने नाम से जाति सूचक उपाधियां हटा ली थीं। जनेऊ तोड़ दिए थे। उपाधि हटाने वालों में लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, शिवानंद तिवारी जैसे लोग थे। आंदोलन कर रहे छात्र वाहिनी के लोगों ने जाति तोड़ कर तिलक-दहेज रहित शादियां भी बाद में कीं। लालू, नीतीश, सुशील कुमार मोदी, शिवानंद तिवारी, रामविलास पासवान उसी छात्र वाहिनी से निकले हुए नेता रहे, जो जेपी की संपूर्ण क्रांति को सफल बनाने के लिए घर-घर अलख जगाने के काम में उस वक्त जुटे थे।

और विपक्षी गोलबंदी शुरू हो गयी

संपूर्ण क्रांति के आह्वान के साथ ही विपक्षी दल गोलबंद होने लगे। भाजपा (तत्कालीन जनसंघ) के साथ समाजवादी पार्टियां एक मंच पर आ गईं। चार पार्टियों को लेकर बाद में जनता पार्टी बनी थी। गुजरात से शुरू हुए छात्र आंदोलन की आग बिहार होते हुए देश भर में फैल गई। महंगाई, बेरोजागारी और भ्रष्टाचार से तो तबाह जनता पहले से ही बदलाव के लिए बेचौन थी। इसी बीच इंदिरा गांधी के चुनाव को चुनौती देने वाली समाजवादी नेता राजनारायण की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को फैसला सुना दिया। फैसला आते ही इंदिरा की लोकसभा की सदस्यता खत्म हो गयी। बौखलाहट में उन्होंने 25 जून 1975 की आधी रात से देश में इमरजेंसी लगा दी। विपक्ष के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में ठूंसा जाने लगा। जेपी को भी उसी रात जेल में डाल दिया गया। पहले से ही नाराज जनता का गुस्सा इस पर भड़क उठा और 1977 के आम चुनाव में न सिर्फ इंदिरा गांधी हारीं, बल्कि कांग्रेस का भी सूपड़ा जनता ने साफ कर दिया।

चंद्रशेखर ने आशंका जताई थी

भूत पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने आंदोलन के दिनों में ही जयप्रकाश नारायण को एक चिट्ठी लिखी थी। आंदोलन में लगातार विपक्षी नेताओं और युवाओं का साथ मिल रहा था। इससे जयप्रकाश आंदोलन के सेनानी उत्साहित थे, लेकिन चंद्रशेखर सशंकित हो रहे थे। उन्होंने इस बाबत जेपी को चिट्ठी लिखी। उसमें लिखा था, ‘आप सोचते हैं कि ये लोग व्यवस्था परिवर्तन के लिए आ रहे हैं तो आप गलत हैं। दरअसल ये लोग सत्ता की चाह में आ रहे हैं। ये लोग व्यवस्था में बदलाव नहीं करेंगे, बल्कि आने वाले दिनों में अपनी-अपनी जातियों के नेता साबित होंगे।’ चंद्रशेखर कितनी दूरदृष्टि वाले थे, इसका उदाहरण लालू, मुलायम, नीतीश, चौधरी चरण सिंह या उस दौर में उभरे वैसे तमाम नेता हैं, जो समाज बदलने का सपना दिखाते-दिखाते बाद में अपनी-अपनी जातियों के नेता बन गये।
रिपोर्ट-ओमप्रकाश अश्क

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