Sadhguru Speak: क्या हम इस दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं, जिसे आने वाले कल की कोई परवाह नहीं | Are we the last generation in this world who don’t care about tomorrow | Patrika News
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सवाल – जीवन और सॉइल एक साथ आगे बढ़ते हैं, दोनों को कैसे देखा जाना चाहिए?
सदगुरू – जीवन ही नहीं, मृत्यु में भी हम मिट्टी में मिल जाते हैं। तो हम जीते हैं या मरते हैं, यह मिट्टी है क्योंकि हम जो भी शरीर धारण करते हैं वह मिट्टी है। वह सब कुछ जिसे आप जीवन के रूप में देखते हैं, चाहे वह कीड़ा हो या कीट, पक्षी, पेड़, जानवर या इंसान। यह सब मिट्टी है। दुर्भाग्य से हम इसे भूल जाते हैं। इसलिए इस संस्कृति में जीवन की बहुत गहरी समझ के साथ हम मिट्टी को मां कहते हैं। जब हम माँ कहते हैं तो हम स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि मिट्टी हमारे जीवन का स्रोत है। लेकिन दुर्भाग्य से यह माँ केवल एक सांस्कृतिक शब्द बन गई है, लोगों के जीवन के अनुभव में नहीं। यदि हम लंबे समय तक जीवन में रुचि रखते हैं तो इसे बाहर लाना होगा। अन्यथा, हम ऐसे जी रहे हैं जैसे हम आखिरी पीढ़ी हैं, जिसे आने वाले कल की परवाह नहीं है।
सवाल – तो क्या खेती से मशीनों को बाहर कर देना चाहिए?
सदगुरू – यह बात मशीनों को खत्म करने के बारे में नहीं है। यह विकसित हो रही मशीनों के बारे में है। अभी हमारे पास जो मशीनें हैं, वे बहुत क्रूर हैं, जो केवल मिट्टी को चीर रही हैं। जिससे मिट्टी में सूक्ष्म जीवों को नुकसान हो रहा है। यह गर्मी के महीने हैं, आप देश भर में कहीं भी यात्रा करें और हर जगह देखें, इस गर्मी में मिट्टी की जुताई की गई है और गर्मियों के दौरान खुली छोड़ दी गई है। यह मिट्टी की हत्या है। हम मानसून के आने का इंतजार कर रहे हैं, दो-तीन महीने पहले से। हम बस इसे खोदते हैं और खुला छोड़ देते हैं। अभी 50 साल पहले तक हर किसान जानता था गर्मी के महीनों में हमें कौन सी फसलें डालनी चाहिए, लेकिन अब कोई फसल नहीं है।
सवाल – सॉइल को सुरक्षित बनाने के लिए किन प्रयासों की जरूरत है?
सदगुरू – सरकारों को सबसे पहले यह अभियान चलाना चाहिए, जिसके तहत वह किसानों को आवश्यक बीज की फलियां, दालें और कई अन्य बीजों का मिश्रण दे। जिससे न केवल मिट्टी को मजबूती मिले। संभव है कि इनसे आपको फसल नहीं मिले, लेकिन अगर इसे वापस मिट्टी में पलट दिया जाए तो हर साल आप कम से कम 1.5 से 2 इंच ह्यूमस वापस जोड़ देंगे। जिसका मतलब होगा कि अगर आपकी मिट्टी में एक फीसदी जैविक सामग्री है तो वह चार से आठ सालों में तीन फीसदी के पार होगी। लेकिन इसके लिए प्रोत्साहन की जरूरत होगी। निश्चित राशि के इंसेंटिव प्रोग्राम से जोड़ना होगा। प्रोत्साहन अच्छा होने पर अधिकांश किसान इसके लिए आएंगे। देश की 47.6 फीसदी भूमि छोटे और मध्यम किसानों के अधीन है। अभी, कार्बन क्रेडिट योजना मुख्य रूप से औद्योगिक घरानों के लिए तैयार की गई है। हम पिछले सात साल से कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह किसान को मिल जाए। हम इसे नहीं कर पाए हैं। यदि किसी किसान की भूमि 1 फीसदी से 3 फीसदी जैविक क्षमता युक्त हो जाती है, तो उसे स्वाभाविक रूप से इतना कार्बन क्रेडिट मिल सकता है। यदि आप सब्जी और फल 1 फीसदी जैविक सामग्री वाली मिट्टी में उगातें हैं तो उसमें क्या सूक्ष्म पोषक तत्व होंगे, जबकि वही अगर 6 फीसदी में उगाते हैं तो क्या होंगे। यह विज्ञान बता चुका है, तय है कि 6 फीसदी में ज्यादा होंगे। इससे सोसाइटी को फायदा होगा। उन्हें सूक्ष्म पोषक तत्व ज्यादा मिलेंगे जो बीमारियों से बचाएंगे और शरीर को ज्यादा एनर्जी देंगे। अगर इसको बाजार से जोड़े तो स्पष्ट होना चाहिए कि जिस मिट्टी से जो उपज आ रही है, उसके भाव भी उसी हिसाब से होंगे। यानि 6 फीसदी वाली मिट्टी के भाव ज्यादा होंगे। हमें सॉइल की समस्या को हल करने के लिए मिट्टी को अन्य पर्यावरणीय चिंताओं से अलग किया जाना चाहिए क्योंकि अन्य पर्यावरणीय चिंताओं में आर्थिक मुद्दे शामिल हैं जो अंतहीन बहसों और तर्कों और सम्मेलनों में चलेंगे।
सवाल— पैदावर की होड़ के इस दौर में उर्वरक का अंधाधुंध उपयोग किस तरह से देखते हैं?
सदगुरू — देखिए, मैंने कहा कि हमें इसे इन मुद्दों से अलग करना चाहिए। उर्वरक का उपयोग होता है, कीटनाशकों का उपयोग होता है क्या यह सब ठीक उसी तरह से उपयोग किया जा रहा है जिस तरह से होना चाहिए? नहीं, क्योंकि जमीन पर कई मुद्दे हैं। उर्वरक का प्रयोग वैज्ञानिक आधार पर होना चाहिए। मसलन, आप स्वस्थ्य हैं तब भी डॉक्टर आपको विटामिन की गोली जरूरत के हिसाब से देता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप 300 गोलियां खा लें। ठीक उसी तरह से हमें इसके उपयोग को तय करना चाहिए। अगर हम मिट्टी के संवर्धन, मिट्टी के उत्थान के बारे में बात करते हैं तो जैसे-जैसे मिट्टी में जैविक सामग्री बढ़ती जाएगी, उर्वरक की आवश्यकता कम होने लगेगी। उर्वरक कंपनियां दुनिया में पहले से ही खुद को जैव उर्वरक मोड में बदलने की कोशिश कर रही हैं।
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सवाल – अभी कितने देश सेव सॉइल पर आपके अभियान के साथ हैं?
सदगुरू – अभी, 74 राष्ट्र चर्चा के दौर में हैं, या यह कहें कि वह साथ हैं। उन्होंने कुछ घोषणाएं की हैं कि वे निश्चित रूप से इसके साथ जाएंगे। मैं सीओपी—15 को भी संबोधित कर चुका हूं, जहां 197 देशों ने हिस्सेदारी की थी। मिट्टी का महत्व और मिट्टी को अन्य पर्यावरणीय मुद्दों से अलग करने की आवश्यकता पर सभी सहमत हैं। प्रत्येक देश किस गति से जाएगा, यह एक सवाल अभी बाकी है। मुझे अब पूरा यकीन है कि दुनिया किसी भी तरह से मिट्टी के उत्थान की ओर बढ़ेगी। अब सवाल सिर्फ गति का है, वे किस गति से आगे बढ़ेगे?
मन की शांति, अवसाद और ऊर्जा पर बोले, इसको शांत रखने के लिए पहले इसका इस्तेमाल करना तो सीखे सदगुरू जग्गी वासुदेव का कहना है कि इंसानी दिमाग एक जटिल मशीन जैसा है और अभी हम जिस तरह से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे यह काम नहीं करेगा। रिवॉल्यूशनरी स्केल पर तो हम अपने दिमाग के इस्तेमाल के आधार पर इंसान भी नहीं कहे जा सकते हैं। इंसान होने का मतलब है होता है कि आप इसका इस्तेमाल करना सीखें। इंसान हमेशा जटिलता में ही संभावनाएं देखता है।
सदगुरू ने कहा, आप मन की शांति की शिकायत कर रहे हैं। शिकायत करने वाला हमेशा कहता है कि मैं इंसान क्यों हूं? अगर मैं एक केंचुआ होता, तो मैं शांत और पर्यावरण के अनुकूल भी होता। इसका मतलब है कि आप अपने दिमाग के बारे में शिकायत कर रहे हैं। ऐसे में अगर आप अपने दिमाग का आधा इस्तेमाल बंद कर दें तो आप और दूसरे लोग ज्यादा शांत हो जाएंगे। लेकिन आपको समझना होगा कि आपने इस जटिल दिमाग के इस्तेमाल को सीखने का प्रयास ही नहीं किया। एजुकेशन सिस्टम, सामाजिक मंच और दूसरी जगहों पर क्या आपने इसे समझने का प्रयास किया कि यह किस तरह से काम करता है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे आप उपयोगकर्ता के मैनुअल को पढ़े बिना भी मशीन को संभालने की कोशिश करें। ऐसे में आप गड़बड़ जरूर करेंगे। इस वक्त में आपको इनर इंजीनियरिंग की सबसे ज्यादा जरूरत है।
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अवसाद पर बोले
जिंदगी हमेशा आपके हिसाब से तय नहीं होती है। आप इसको कैसा बनाना चाहते हैं, सिर्फ यह आपके हाथ में है। खिलाड़ी अगर हर गेंद को खेलने की कोशिश करेगा तो वह खराब खिलाड़ी होगा। कुछ गेंद छोड़नी भी पड़ती हैं। यही अवसाद से दूर जाने का रास्ता है।
ऊर्जा पर बोले
हम अपने शरीर को कंक्रीट की चारदिवारी के अंदर रखे हुए हैं, हमें इससे बाहर निकलना होगा। नेचर अलग—अलग ऊर्जाओं से भरा हुआ है, इसे पाने के लिए आपको कोई कीमत नहीं चुकानी है। अपने शरीर को नेचर के पास छोड़िए, ऊर्जा मिलती रहेगी। जब आप सांस लेते हैं तो आप नेचर से मिलन कर रहे होते हैं, जब आप नाश्ता कर रहे होते हैं तो आप मिट्टी से मिलन कर रहे होते हैं, इस तरह से आप हर समय अनजाने में ही सही लेकिन योगा कर रहे होते हैं। अभी आप नेचर में रहने के लिए अपने नाक के छिद्रों को खुला छोड़ रहे हैं और सांस ले रहे हैं…यह भी योगा है। बस पूरे शरीर को खोल दीजिए, फिर देखिए ऊर्जा किस तेजी से आपको अपने साथ लेती है।
सवाल – जीवन और सॉइल एक साथ आगे बढ़ते हैं, दोनों को कैसे देखा जाना चाहिए?
सदगुरू – जीवन ही नहीं, मृत्यु में भी हम मिट्टी में मिल जाते हैं। तो हम जीते हैं या मरते हैं, यह मिट्टी है क्योंकि हम जो भी शरीर धारण करते हैं वह मिट्टी है। वह सब कुछ जिसे आप जीवन के रूप में देखते हैं, चाहे वह कीड़ा हो या कीट, पक्षी, पेड़, जानवर या इंसान। यह सब मिट्टी है। दुर्भाग्य से हम इसे भूल जाते हैं। इसलिए इस संस्कृति में जीवन की बहुत गहरी समझ के साथ हम मिट्टी को मां कहते हैं। जब हम माँ कहते हैं तो हम स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि मिट्टी हमारे जीवन का स्रोत है। लेकिन दुर्भाग्य से यह माँ केवल एक सांस्कृतिक शब्द बन गई है, लोगों के जीवन के अनुभव में नहीं। यदि हम लंबे समय तक जीवन में रुचि रखते हैं तो इसे बाहर लाना होगा। अन्यथा, हम ऐसे जी रहे हैं जैसे हम आखिरी पीढ़ी हैं, जिसे आने वाले कल की परवाह नहीं है।
सदगुरू – यह बात मशीनों को खत्म करने के बारे में नहीं है। यह विकसित हो रही मशीनों के बारे में है। अभी हमारे पास जो मशीनें हैं, वे बहुत क्रूर हैं, जो केवल मिट्टी को चीर रही हैं। जिससे मिट्टी में सूक्ष्म जीवों को नुकसान हो रहा है। यह गर्मी के महीने हैं, आप देश भर में कहीं भी यात्रा करें और हर जगह देखें, इस गर्मी में मिट्टी की जुताई की गई है और गर्मियों के दौरान खुली छोड़ दी गई है। यह मिट्टी की हत्या है। हम मानसून के आने का इंतजार कर रहे हैं, दो-तीन महीने पहले से। हम बस इसे खोदते हैं और खुला छोड़ देते हैं। अभी 50 साल पहले तक हर किसान जानता था गर्मी के महीनों में हमें कौन सी फसलें डालनी चाहिए, लेकिन अब कोई फसल नहीं है।
सवाल – सॉइल को सुरक्षित बनाने के लिए किन प्रयासों की जरूरत है?
सदगुरू – सरकारों को सबसे पहले यह अभियान चलाना चाहिए, जिसके तहत वह किसानों को आवश्यक बीज की फलियां, दालें और कई अन्य बीजों का मिश्रण दे। जिससे न केवल मिट्टी को मजबूती मिले। संभव है कि इनसे आपको फसल नहीं मिले, लेकिन अगर इसे वापस मिट्टी में पलट दिया जाए तो हर साल आप कम से कम 1.5 से 2 इंच ह्यूमस वापस जोड़ देंगे। जिसका मतलब होगा कि अगर आपकी मिट्टी में एक फीसदी जैविक सामग्री है तो वह चार से आठ सालों में तीन फीसदी के पार होगी। लेकिन इसके लिए प्रोत्साहन की जरूरत होगी। निश्चित राशि के इंसेंटिव प्रोग्राम से जोड़ना होगा। प्रोत्साहन अच्छा होने पर अधिकांश किसान इसके लिए आएंगे। देश की 47.6 फीसदी भूमि छोटे और मध्यम किसानों के अधीन है। अभी, कार्बन क्रेडिट योजना मुख्य रूप से औद्योगिक घरानों के लिए तैयार की गई है। हम पिछले सात साल से कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह किसान को मिल जाए। हम इसे नहीं कर पाए हैं। यदि किसी किसान की भूमि 1 फीसदी से 3 फीसदी जैविक क्षमता युक्त हो जाती है, तो उसे स्वाभाविक रूप से इतना कार्बन क्रेडिट मिल सकता है। यदि आप सब्जी और फल 1 फीसदी जैविक सामग्री वाली मिट्टी में उगातें हैं तो उसमें क्या सूक्ष्म पोषक तत्व होंगे, जबकि वही अगर 6 फीसदी में उगाते हैं तो क्या होंगे। यह विज्ञान बता चुका है, तय है कि 6 फीसदी में ज्यादा होंगे। इससे सोसाइटी को फायदा होगा। उन्हें सूक्ष्म पोषक तत्व ज्यादा मिलेंगे जो बीमारियों से बचाएंगे और शरीर को ज्यादा एनर्जी देंगे। अगर इसको बाजार से जोड़े तो स्पष्ट होना चाहिए कि जिस मिट्टी से जो उपज आ रही है, उसके भाव भी उसी हिसाब से होंगे। यानि 6 फीसदी वाली मिट्टी के भाव ज्यादा होंगे। हमें सॉइल की समस्या को हल करने के लिए मिट्टी को अन्य पर्यावरणीय चिंताओं से अलग किया जाना चाहिए क्योंकि अन्य पर्यावरणीय चिंताओं में आर्थिक मुद्दे शामिल हैं जो अंतहीन बहसों और तर्कों और सम्मेलनों में चलेंगे।
सदगुरू — देखिए, मैंने कहा कि हमें इसे इन मुद्दों से अलग करना चाहिए। उर्वरक का उपयोग होता है, कीटनाशकों का उपयोग होता है क्या यह सब ठीक उसी तरह से उपयोग किया जा रहा है जिस तरह से होना चाहिए? नहीं, क्योंकि जमीन पर कई मुद्दे हैं। उर्वरक का प्रयोग वैज्ञानिक आधार पर होना चाहिए। मसलन, आप स्वस्थ्य हैं तब भी डॉक्टर आपको विटामिन की गोली जरूरत के हिसाब से देता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप 300 गोलियां खा लें। ठीक उसी तरह से हमें इसके उपयोग को तय करना चाहिए। अगर हम मिट्टी के संवर्धन, मिट्टी के उत्थान के बारे में बात करते हैं तो जैसे-जैसे मिट्टी में जैविक सामग्री बढ़ती जाएगी, उर्वरक की आवश्यकता कम होने लगेगी। उर्वरक कंपनियां दुनिया में पहले से ही खुद को जैव उर्वरक मोड में बदलने की कोशिश कर रही हैं।
सवाल – अभी कितने देश सेव सॉइल पर आपके अभियान के साथ हैं?
सदगुरू – अभी, 74 राष्ट्र चर्चा के दौर में हैं, या यह कहें कि वह साथ हैं। उन्होंने कुछ घोषणाएं की हैं कि वे निश्चित रूप से इसके साथ जाएंगे। मैं सीओपी—15 को भी संबोधित कर चुका हूं, जहां 197 देशों ने हिस्सेदारी की थी। मिट्टी का महत्व और मिट्टी को अन्य पर्यावरणीय मुद्दों से अलग करने की आवश्यकता पर सभी सहमत हैं। प्रत्येक देश किस गति से जाएगा, यह एक सवाल अभी बाकी है। मुझे अब पूरा यकीन है कि दुनिया किसी भी तरह से मिट्टी के उत्थान की ओर बढ़ेगी। अब सवाल सिर्फ गति का है, वे किस गति से आगे बढ़ेगे?
सदगुरू ने कहा, आप मन की शांति की शिकायत कर रहे हैं। शिकायत करने वाला हमेशा कहता है कि मैं इंसान क्यों हूं? अगर मैं एक केंचुआ होता, तो मैं शांत और पर्यावरण के अनुकूल भी होता। इसका मतलब है कि आप अपने दिमाग के बारे में शिकायत कर रहे हैं। ऐसे में अगर आप अपने दिमाग का आधा इस्तेमाल बंद कर दें तो आप और दूसरे लोग ज्यादा शांत हो जाएंगे। लेकिन आपको समझना होगा कि आपने इस जटिल दिमाग के इस्तेमाल को सीखने का प्रयास ही नहीं किया। एजुकेशन सिस्टम, सामाजिक मंच और दूसरी जगहों पर क्या आपने इसे समझने का प्रयास किया कि यह किस तरह से काम करता है। यह ठीक वैसे ही है, जैसे आप उपयोगकर्ता के मैनुअल को पढ़े बिना भी मशीन को संभालने की कोशिश करें। ऐसे में आप गड़बड़ जरूर करेंगे। इस वक्त में आपको इनर इंजीनियरिंग की सबसे ज्यादा जरूरत है।
अवसाद पर बोले
जिंदगी हमेशा आपके हिसाब से तय नहीं होती है। आप इसको कैसा बनाना चाहते हैं, सिर्फ यह आपके हाथ में है। खिलाड़ी अगर हर गेंद को खेलने की कोशिश करेगा तो वह खराब खिलाड़ी होगा। कुछ गेंद छोड़नी भी पड़ती हैं। यही अवसाद से दूर जाने का रास्ता है।
ऊर्जा पर बोले
हम अपने शरीर को कंक्रीट की चारदिवारी के अंदर रखे हुए हैं, हमें इससे बाहर निकलना होगा। नेचर अलग—अलग ऊर्जाओं से भरा हुआ है, इसे पाने के लिए आपको कोई कीमत नहीं चुकानी है। अपने शरीर को नेचर के पास छोड़िए, ऊर्जा मिलती रहेगी। जब आप सांस लेते हैं तो आप नेचर से मिलन कर रहे होते हैं, जब आप नाश्ता कर रहे होते हैं तो आप मिट्टी से मिलन कर रहे होते हैं, इस तरह से आप हर समय अनजाने में ही सही लेकिन योगा कर रहे होते हैं। अभी आप नेचर में रहने के लिए अपने नाक के छिद्रों को खुला छोड़ रहे हैं और सांस ले रहे हैं…यह भी योगा है। बस पूरे शरीर को खोल दीजिए, फिर देखिए ऊर्जा किस तेजी से आपको अपने साथ लेती है।