RU दीक्षांत-समारोह में 1.50 लाख स्टूडेंट्स को दी गई डिग्रियां: राज्यपाल बोले- लड़कियों ने रचा इतिहास, देवनानी ने कहा- कुलगुरु शब्द में ही गौरव – Jaipur News h3>
राजस्थान यूनिवर्सिटी का 34वां दीक्षांत समारोह गुरुवार को राज्यपाल हरिभाऊ बागडे की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इस दौरान यूनिवर्सिटी के 124 स्टूडेंट्स को गोल्ड मेडल के साथ ही 309 स्टूडेंट्स को पीएच.डी. की उपाधि दी है। इसके साथ ही साल 2023 की परीक्षा
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दीक्षांत समारोह में संबोधित करते हुए कहा कि राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि नैतिक मूल्य भारतीय संस्कृति का प्रमुख आधार रहा है। इन मूल्यों से दूर करने के लिए अंग्रेज शासन में लॉर्ड मैकाले ने हमारे यहां अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू की। इससे राष्ट्रवासियों में गुलाम मानसिकता विकसित हुई। उन्होंने कहा कि विनोबा भावे ने कहा था कि आजादी मिलने के बाद जिस तरह से देश का झण्डा बदला गया वैसे ही यहां की शिक्षा नीति बदलनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसी आलोक में अब एक हजार शिक्षाविदों ने मिलकर देश में नई शिक्षा नीति तैयार की है। इसमें भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों पर ही जोर है। शिक्षकों को चाहिए कि वे इस नीति के आलोक में विद्यार्थियों को शिक्षित और दीक्षित करें।
राज्यपाल ने समारोह में स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में 75 प्रतिशत से अधिक संख्या बालिकाओं की रहने पर खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि लड़कियां आधी आबादी के गणित को पार कर उपलब्धियों का इतिहास रच रही है। इस दौरान उन्होंने पंडित नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में इसका उल्लेख करते हुए बताया कि हमारी नई शिक्षा नीति इसी दृष्टि की पूर्ति करने वाली है।
इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि राजस्थान में विश्वविद्यालय में कुलपति के स्थान पर अब कुलगुरु की परंपरा के आदेश जारी किए गए हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कुलगुरु शब्द में ही शिक्षा का गौरव निहित है। देवनानी ने कहा है कि हमारी भारतीय ज्ञान प्रणाली आज भी प्रासंगिक है। प्राचीन काल से चली आ रही इस समृद्ध और व्यापक ज्ञान प्रणाली ने शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और दर्शन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक योगदान किया है।
देवनानी ने कहा कि प्राचीन भारत में शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं था। बल्कि, स्वयं की पूर्ण प्राप्ति के लिए था। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी जैसे प्राचीन भारत के विश्वस्तरीय संस्थानों ने शिक्षण और अनुसंधान के उच्चतम मानक स्थापित किए। चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट जैसे अनगिनत महान विद्धवानों ने विभिन्न क्षेत्रों में विश्व को महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि समृद्ध विरासत को भावी पीढियों के लिए पोषित और संरक्षित करना होगा।