RRR और ‘पुष्पा’ के आगे फीकी पड़ती जा रही बॉलीवुड की चमक, सिर्फ ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने बचाई थोड़ी लाज

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RRR और ‘पुष्पा’ के आगे फीकी पड़ती जा रही बॉलीवुड की चमक, सिर्फ ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने बचाई थोड़ी लाज

नई दिल्ली:  फिल्ममेकर का विजन क्लियर हो और उसे अपने क्राफ्ट का लक्ष्य पता हो, तो एक साधारण कहानी पर भी असाधारण फिल्म बनाई जा सकती है. कुछ ऐसा ही करिश्मा कर दिखाया है ‘आरआरआर’ के निर्देशक राजामौली ने. आमतौर पर ये होता है कि फिल्मों में एक कहानी होती है, जिसे आकार देने के लिए एक्शन और ड्रामा जैसे टूल्स का इस्तेमाल किया जाता है. साउथ इंडिया के फिल्म मेकर बखूबी यह बात समझते हैं. 

एक्शन सीन्स हैं कहानी का बेस

बात सिर्फ आरआरआर (RRR) की नहीं, बाहुबली, केजीएफ, पुष्पा ये सभी फिल्में छोटी सी कहानी को भव्य तरीके से प्रस्तुत करती हैं. सभी फिल्मों में एक्शन सीक्वेंस और ड्रामा की बदौलत कहानी को आगे बढ़ाया जाता है. इन फिल्मों के हर सीन पर नजर दौड़ाएं तो हर अगले सीन के लिए जमीन तैयार कर ली जाती है और फ्लो बना रहता है. दर्शक तालियां पीटते हैं और फुल एन्जॉय ही नहीं करते, बल्कि उस फिल्म से जुड़ जाते हैं.

पिछड़ता जा रहा बॉलीवुड

फिल्म रौद्रम रणम रुधिरम यानी ‘आरआरआर’ के बाद ऐसा लग रहा है कि साउथ के मुकाबले बॉलीवुड लगातार पिछड़ता जा रहा है. ‘बाहुबली-2’ और ‘पुष्पा’ के बाद अब ‘आरआरआर’ भी धमाल मचा रही है. आज की परिस्थिति में सिनेमा हॉल की जो हालत है उसमें तीन घंटे से ज्यादा लोगों को कुर्सी पर बैठने के लिए मजबूर कर देना बॉलीवुड मेकर्स के बस का तो रहा नहीं. हाल में रिलीज हुई बंटी और बबली-2, अंतिम, भुज, सत्यजमेव जयते-2, ए थर्सडे, गहराइयां, गंगूबाई कठियावाड़ी, बच्चन पांडे, झुंड और बधाई दो जैसी फिल्मों ने ये एहसास करा दिया है कि ये सब झंड हैं, फिर भी घमंड है.

उम्मीद लेकर आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ 

‘सूर्यवंशी’ और ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ के अलावा सूखे पड़े सिनेमा के पर्दे पर आशा की किरण दिखाने का काम किया ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) ने. कम बजट में बनी यह फिल्म 300 करोड़ के क्लब में शामिल हो सकती है. आरआरआर के बाद 14 अप्रैल को ‘केजीएफ 2’ भी आ रही है, जिसका इंतजार दर्शक बेसब्री से कर रहे हैं. फिल्मी पंडित आश्वस्त हैं कि यह फिल्म भी धमाल मचाएगी.

मुश्किल में है बॉलीवुड की नैया

बॉलीवुड इंडस्ट्री अगर वक्त रहते सचेत नहीं हुई तो ऐसा पूरी तरह मुमकिन लग रहा है, इनकी हालत 100 साल पुरानी पॉलिटिकल पार्टी ‘कांग्रेस’ जैसी हो जाएगी. जिस तरह हर कांग्रेस सिमट रही है और सफाया हो रहा है, ठीक वही हाल बॉलीवुड की फिल्मों का होता जा रहा है. वह वक्त दूर नहीं जब बॉलीवुड भी साउथ के मेकर्स के सहारे अपनी नैया पार लगाए. इसके आसार दिख भी रहे हैं. आरआरआर में अजय देवगन और आलिया भट्ट जैसे स्टार के लिए इस फिल्म में स्पेशल अपियरेंस की जगह बची है. रामचरण और जूनियर एनटीआर मास्टरपीस बनकर उभरे हैं. ‘केजीएफ 2’ में संजय दत्त के साथ भी कुछ ऐसा ही है.
 
साउथ के एक्टर्स का बढ़ा दबदबा

बॉलीवुड के परंपरागत दर्शकों के बीच दक्षिण भारतीय यानी कि तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम सिनेमा की स्वीकार्यता बढ़ी है. कभी सलमान, शाहरुख और अक्षय पर मरने वाले सिनेप्रेमी अब महेश बाबू, रामचरण, यश, अल्लू अर्जुन, जूनियर एनटीआर में भी रुचि लेने लगे हैं. लेकिन दर्शकों के रुझान में ये परिवर्तन रातों रात नहीं हुआ.

साउथ फिल्मों ने बदल दिया पूरा नजारा

पहले साउथ इंडियन फिल्मों और स्टार्स पर जोक बनते थे, उनकी वेशभूषा को लेकर भी फब्तियां कसी जाती थीं. बॉलीवुड वाले उनकी ओवर एक्टिंग से भरी संवाद अदायगी, अविश्वसनीय और विज्ञान से परे एक्शन दृश्य को देखकर मुंह बिचकाते थे, लेकिन डेढ़ दशक बाद अब नजर घुमाइए तो मनोरंजन जगत का नजारा कुछ बदला-बदला सा है.

बॉलीवुड पर भारी पड़ रही साउथ फिल्में

याददाश्तपे थोड़ा जोर डालिए तो याद आएगा कि एक दशक पहले तक दक्षिण भारतीय फिल्में, खासतौर पर उनका एक्शन बॉलीवुड दर्शकों के लिए मजाक का विषय भर था. रजनीकांत पर जोक्स बनाये जाते और लोग खूब हंसते थे. लेकिन जल्द ही परिदृश्य बदल गया. सलमान खान ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘वांटेड’ के बाद बॉलीवुड में दक्षिण भारतीय फिल्मों के रीमेक की बाढ़ आ गई. ‘सिंघम’, ‘बॉडीगार्ड’, ‘रेडी’, ‘राऊडी राठौर’ जैसी फिल्मों ने बॉक्स-ऑफिस पर नोटों की बारिश कर दी. और इस तरह दर्शकों में दक्षिण भारतीय फिल्मों के प्रति एक उत्सुकता जगाई. रही-सही कसर सैटेलाइट चैनल पर दक्षिण भारतीय फिल्मों के 24 घंटे प्रसारण ने पूरी कर दी.
 
साउथ फिल्मों ने दिया हर तरह का फ्लेवर

पहले हॉलीवुड की फिल्में देखते वक्त एक टीस सी उभरती थी काश इस तरह के अलग विषयों पर हमारे यहां भी फिल्में बनती तो कितना अच्छा होता. दक्षिण भारतीय फिल्मों ने भारतीय दर्शकों को इस दर्द से कुछ हद तक राहत दी है. हॉरर कॉमेडी से लेकर पीरियड ड्रामा तक और साइकोलॉजिकल थ्रिलर से लेकर साइंस फिक्शन तक, आज ऐसा कोई जोनर नहीं जो दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए अछूता हो. दक्षिण में फिल्म निर्माता-निर्देशक हों या लेखक या फिर अभिनेता, नए विषयों और अछूते विषय वस्तुओं को लेकर जोखिम उठाने का साहस दिखाते हैं और यही साहस फिलहाल बॉलीवुड में नजर नहीं आ रहा. ‘बाहुबली’ ने हिन्दी पट्टी के दर्शकों में दक्षिण भारतीय फिल्मों को लेकर गजब का क्रेज पैदा किया फिर केजीएफ जैसी फिल्मों ने इस नए-नए पैदा हुए दीवानेपन को और विस्तार दिया.
 
डर के साए में है बॉलीवुड

आज हालत यह है कि किसी साउथ इंडियन फिल्म के रिलीज के डर बॉलीवुड वाले फिल्मों की तारीखें बढ़ा रहे हैं. साउथ की कुछ फिल्मों पर नजर डालें तो हाल के वर्षों में ‘अपरिचित’, ‘दृश्यम’ को लोग बार-बार देखना चाहते हैं. ‘दृश्यम-2’ अभी मलयालम में रिलीज हुई है. जल्द ही हिन्दी में रिलीज होनी है. ‘जय भीम’ जैसी फिल्मों ने भी हिन्दी पट्टी के गंभीर दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. अगर फिल्मों के ट्रीटमेंट की बात करें तो साउथ की फिल्मों में संगीत पक्ष थोड़ा कमजोर होता है और बॉलीवुड में संगीत पक्ष प्रभावी रहता है, लेकिन इधर आई कई बॉलीवुड फिल्मों में यह पक्ष भी कमजोर होता चला गया है. जबकि दक्षिण की फिल्म ‘पुष्पा’ ने अपने संगीत पक्ष को भी मजबूत करने में सफलता हासिल की है.

बॉलीवुड हुआ साइडलाइन 

सामी सामी, श्रीवल्ली और ऊ बोलेगा जैसे गीतों की पॉपुलरिटी हमारे सामने है. जैसे, पंजाब में कांग्रेस को रिप्लेस करके आम आदमी पार्टी ने सत्ता अपने हाथ में ले ली है. ठीक उसी तरह दक्षिण की फिल्में बॉलीवुड को  रिप्लेस करती जा रही हैं. पुष्पा फिल्म के एक्टर अल्लू अर्जुन ने जिस तरह से हिंदी भाषियों का धन्यवाद दिया, उससे यह भी जाहिर होता है कि दक्षिण के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर अब हिंदी फिल्मों के बाजार पर भी कब्जा करके बॉलीवुड को साइडलाइन कर देंगे.
 
हालांकि ये भविष्य के गर्भ में है कि ऐसा होगा या नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि वर्तमान में दक्षिण की फिल्मों की तरक्की ने बॉलीवुड में भविष्य का रास्ता बनाना शुरू कर दिया है. अब बॉलीवुड को फिल्म की कहानी, डायरेक्शन, एक्टिंग, गीत-संगीत, क्राफ्ट, सिनेमैटोग्राफी आदि को लेकर अपनी नई रणनीति बनाने के लिए गहराई से विचार करने की जरूरत है.
 
साउथ फिल्में ज्यादा कर रहीं एंटरटेनमेंट 

साउथ के मेकर्स जिस तरह साधारण सी कहानी में स्पेशल एफ्फेक्ट्स, दमदार एक्टिंग और खूबसूरत सेट्स लगाकर सबका दिल जीत रहे हैं, वह एक अचंभे से कम नहीं है. समीक्षक लॉजिक की तलाश करते हैं तो दर्शक सिर्फ एंटरटेनमेंट. और फिल्में चलती हैं एंटरटेनमेंट से.

‘आरआरआर’ की रफ्तार हो रही तेज

जिस तरह का अध्याय वे लिख रहे हैं, उसे तोड़ना बॉलीवुड के मेकर्स के लिए हिमालय को ध्वस्त करने के बराबर होगा. ‘आरआरआर’ ने पहले ही दिन दुनिया भर में 233 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर ली थी और फिल्‍म की लागत है करीब साढे 5 सौ करोड़. यानी बॉक्स ऑफिस पर ‘आरआरआर’ का करोबारी अश्वरमेघ सभी दिशाओं में पूरी रफ्तार से दौड़ता नजर आ रहा है. ओवरसीज की बात करें तो इसमें खाड़ी और तमाम देशों जैसे अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि का कलेक्शन चौंकाने वाला है.

 

प्रस्तुति: फ़जले गुफरान

नोट: लेखक फिल्म वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.

 

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