RJD ने ही विधानसभा में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को घेरा, पूछा- सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों नहीं मानती सरकार, जानिए पूरा मामला

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RJD ने ही विधानसभा में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को घेरा, पूछा- सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों नहीं मानती सरकार, जानिए पूरा मामला

RJD ने ही विधानसभा में शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को घेरा, पूछा- सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों नहीं मानती सरकार, जानिए पूरा मामला


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बिहार विधानसभा के बजट सत्र में राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने चतुर्थ चरण में गठित महाविद्यालयों के सैकड़ों शिक्षकों व कर्मचारियों नियुक्ति के मुद्दे को उठाते हुए महागठबंधन की सरकार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को घेर लिया। उन्होने  कहा, कि सुप्रीम कोर्ट में  में हारने के बावजूद सरकार शिक्षकों व कर्मचारियों को वेतन देने से इंकार कर रही है। कोर्ट और रिवीजन पिटीशन दाखिल करने पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं। उन्होने पूछा कि सरकार शीर्ष अदालत के आदेश को स्वीकार क्यों नहीं कर सकती है। यह सामाजिक न्याय की सरकार है। सरकार शिक्षकों को समाहित क्यों नहीं कर रही, खासकर जब राज्य के शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय में भारी रिक्तियों से जूझ रहे हों। तो क्या सरकार समयबद्ध नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा करने में असमर्थ हैं।

इस सवाल पर शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने जवाब में कहा कि उन्हें विभाग के अधिकारियों द्वारा केवल इतना बताया गया था, कि शीर्ष अदालत में समीक्षा याचिका दायर की गई थी, लेकिन यह नहीं पता था कि इसे स्वीकार किया गया था या नहीं।

आरजेडी विधायक भाई वीरेंद्र ने शिक्षा मंत्री को घेरा

जिस पर भाई वीरेंद्र ने स्पीकर से दखल देकर फाइल मंगवाने की गुहार लगाई। और पूछा कि  शिक्षा मंत्री के जवाब से ये साफ है कि अधिकारी भ्रामक जानकारी दे रहे हैं। सरकार अपने ही कर्मचारियों को उनके ही मानदेय से वंचित करने के लिए समीक्षा याचिकाओं पर करोड़ों का भुगतान क्यों कर रही है? अगर शिक्षकों और कर्मचारियों के पक्ष में कोर्ट का आदेश है, तो समीक्षा याचिका दाखिल करने के बजाय उसे लागू क्यों नहीं किया जा सकता।  सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मामलों को पटना उच्च न्यायालय को सौंप दिया, जिसने तीन महीने के भीतर कर्मचारियों की सेवाओं की बहाली का आदेश दिया। सरकार सुप्रीम कोर्ट गई और मामला खारिज हो गया। अब एक रिवीजन याचिका दायर की गई है, इसकी स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है।  

पूरी तैयारी से आएं शिक्षा मंत्री- स्पीकर 

आरजेडी विधायक भाई वीरेंद्र की इस बात समर्थन अन्य सदस्यों ने भी किया। जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने भी शिक्षा मंत्री से कहा कि सदन की भावना को ध्यान में रहते हुए पहले सारी जानकारी जुटा लें और फिर विस्तार से इन सवालों का जवाब दें। 

जानिए क्या है पूरा मामला?

आपको बता दें चौथे चरण के 40 कॉलेजों से जुड़े मामलों का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। सरकार ने  ऐसे कॉलेजों को संभालने के बाद उन कॉलेजों में कार्यरत शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की पहचान के लिए जांच कराई थी। बदलाव के दौरान पहले पूछताछ की गई थी। इसके बाद राज्य सरकार और विश्वविद्यालय ने जांच शुरू की और तीन सदस्यीय समिति द्वारा जांच के बाद प्रावधान के लिए दिसंबर 1999 में राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया गया। बाद में विवाद सामने आया और फिर इस मामले का फैसला हाईकोर्ट की की डिवीजन बेंच द्वारा किया गया, जिसे फिर से सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) एससी अग्रवाल की वन-मैन कमेटी की स्थापना की और इसकी रिपोर्ट को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया।

लेकिन बाद में, न्यायमूर्ति अग्रवाल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने में समस्याओं के कारण मामला फिर से उच्च न्यायालय पहुंचा और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एसएन झा की अध्यक्षता में दो सदस्यीय समिति के गठन का आदेश पारित किया। हालांकि, मामले को फिर से शीर्ष अदालत में ले जाया गया, और एक अन्य न्यायमूर्ति एसबी सिन्हा समिति का गठन हुआ। एक समय सीमा के भीतर दायर कर्मचारियों के अवशोषण के दावे को देखने के लिए किया गया और आगे कोई दावा नहीं किया जाएगा। बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा चतुर्थ चरण के महाविद्यालयों में स्वीकृत पदों पर नियुक्त कई शिक्षक सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं, लेकिन मामला अब तक लटका हुआ है। 

 

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