RJD नहीं मान रही तो कांग्रेस 2009 फार्मूले पर लड़े चुनाव, सीट बंटवारे पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष की सलाह; क्या करेंगे लालू? h3>
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बिहार महागठबंधन में सीट बंटवारे का पेंच अभी तक उलझा ही हुआ है। हालांकि आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने सीट बंटवारे के ऐलान से पहले ही अपने उम्मीदवारों को पार्टी का सिंबल सौंप दिया है। यह बात कांग्रेस को काफी नागवार गुजरी। कुछ दिन पहले कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा था कि जबतक सीट बंटवारे की घोषणा नहीं होती है, तबतक किसी भी दल को अपने प्रत्याशी को सिंबल नहीं बांटना चाहिए। इससे जनता में गलत संदेश जाता है। इस बीच कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर शेयर पोस्ट कर कहा है कि आरजेडी के साथ सीट बंटवारे की बातचीत में कांग्रेस को अल्पसंख्यक, ओबीसी, ईबीसी, एससी, सामान्य जातियों और महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त संसदीय सीटें लेनी चाहिए। यदि राजद 9/10 सीटें देने के लिए सहमत नहीं होता है तो काँग्रेस को 2009 के चुनाव की तरह अकेले चुनाव लड़ना चाहिए। दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजद और लोजपा ने केवल 4 सीटें दीं। कांग्रेस ने उसे लेने से इनकार कर दिया और अपने दम पर चुनाव लड़ा। हालांकि, इसका फायदा उसे नहीं हुआ और सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने भी सीट बंटवारे से पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव द्वारा प्रत्याशियों को पार्टी सिंबल देने पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि पार्टी सिंबल वापस भी होता है। अभी सीट बंटवारे की अधिकृत घोषणा नहीं हुई है और आने वाले एक-दो दिनों में आधिकारिक ऐलान हो जाएगा। बातचीत अच्छे दौर में चल रही है।
कोई सिंबल लेकर भाग रहा कोई टिकट; ललन सिंह बोले, लालू-कांग्रेस खेमा में सीट शेयरिंग पर सिर फुटौव्वल
उन्होंने कहा कि आरजेडी बिहार की बड़ी पार्टी है। विधानसभा में हमारी पार्टी से आरजेडी का संख्या बल भी ज्यादा है। इस बात को मानने से कौन इनकार कर रहा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी का अपना महत्व है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का राष्ट्रीय महत्व बड़ा है। हम लोग पूरे देश में चुनाव लड़ते हैं और लोकसभा चुनाव में अगुवाई कांग्रेस की ही होगी। वहीं प्रत्याशियों को आरजेडी के पार्टी सिंबल देने पर अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि पार्टी सिंबल दिया है या नहीं। लेकिन जब आधिकारिक घोषणा होगी तो क्या सिंबल वापस नहीं हो सकता क्या? उन्होंने कहा कि महागठबंधन कभी नहीं बिखरेगा और मजबूती से हम लोग आगे बढ़ेंगे।
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बिहार महागठबंधन में सीट बंटवारे का पेंच अभी तक उलझा ही हुआ है। हालांकि आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने सीट बंटवारे के ऐलान से पहले ही अपने उम्मीदवारों को पार्टी का सिंबल सौंप दिया है। यह बात कांग्रेस को काफी नागवार गुजरी। कुछ दिन पहले कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा था कि जबतक सीट बंटवारे की घोषणा नहीं होती है, तबतक किसी भी दल को अपने प्रत्याशी को सिंबल नहीं बांटना चाहिए। इससे जनता में गलत संदेश जाता है। इस बीच कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर शेयर पोस्ट कर कहा है कि आरजेडी के साथ सीट बंटवारे की बातचीत में कांग्रेस को अल्पसंख्यक, ओबीसी, ईबीसी, एससी, सामान्य जातियों और महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त संसदीय सीटें लेनी चाहिए। यदि राजद 9/10 सीटें देने के लिए सहमत नहीं होता है तो काँग्रेस को 2009 के चुनाव की तरह अकेले चुनाव लड़ना चाहिए। दरअसल, 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजद और लोजपा ने केवल 4 सीटें दीं। कांग्रेस ने उसे लेने से इनकार कर दिया और अपने दम पर चुनाव लड़ा। हालांकि, इसका फायदा उसे नहीं हुआ और सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने भी सीट बंटवारे से पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव द्वारा प्रत्याशियों को पार्टी सिंबल देने पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि पार्टी सिंबल वापस भी होता है। अभी सीट बंटवारे की अधिकृत घोषणा नहीं हुई है और आने वाले एक-दो दिनों में आधिकारिक ऐलान हो जाएगा। बातचीत अच्छे दौर में चल रही है।
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उन्होंने कहा कि आरजेडी बिहार की बड़ी पार्टी है। विधानसभा में हमारी पार्टी से आरजेडी का संख्या बल भी ज्यादा है। इस बात को मानने से कौन इनकार कर रहा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी का अपना महत्व है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का राष्ट्रीय महत्व बड़ा है। हम लोग पूरे देश में चुनाव लड़ते हैं और लोकसभा चुनाव में अगुवाई कांग्रेस की ही होगी। वहीं प्रत्याशियों को आरजेडी के पार्टी सिंबल देने पर अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि मुझे नहीं मालूम कि पार्टी सिंबल दिया है या नहीं। लेकिन जब आधिकारिक घोषणा होगी तो क्या सिंबल वापस नहीं हो सकता क्या? उन्होंने कहा कि महागठबंधन कभी नहीं बिखरेगा और मजबूती से हम लोग आगे बढ़ेंगे।