‘Right to Health’ क्या है, जिसके विरोध में आज बंद हैं Rajasthan के सभी Private Hospital

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‘Right to Health’ क्या है, जिसके विरोध में आज बंद हैं Rajasthan के सभी Private Hospital

‘Right to Health’ क्या है, जिसके विरोध में आज बंद हैं Rajasthan के सभी Private Hospital


जयपुर: राजस्थान सरकार की ओर से लाए जा रहे ‘Right to Health’ बिल (स्वास्थ्य का अधिकार कानून) का विरोध शुरू हो गया है। इसको लेकर प्रदेश के निजी अस्पताल संचालकों ने आंदोलन तेज कर दिया है। आज यानी 22 फरवरी को प्रदेश के सभी प्राइवेट अस्पतालों को बंद रखने का फैसला लिया गया है। ये बंदी सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक रहेगी। बंद के दौरान निजी अस्पतालों में ओपीडी और आईपीडी में मरीजों का इलाज नहीं होगा। हालांकि, इमरजेंसी सेवाओं को बहाल रखा गया है। निजी अस्पतालों के संचालक डॉक्टरों की पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

राइट टू हेल्थ बिल का विरोध क्यों?

राजस्थान विधानसभा का सत्र 23 जनवरी (सोमवार) से शुरू हो रहा है। ऐसे में डॉक्टरों ने राइट टू हेल्थ बिल का विरोध तेज कर दिया है। उनकी कोशिश यही है कि सरकार इस सत्र के दौरान या 8 फरवरी को पेश होने वाले बजट से पहले उनकी मांगे मान लें। प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों ने ‘राइट टू हेल्थ’ बिल को ‘राइट टू किल’ बिल करार दिया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राजस्थान प्रभारी डॉ. संजीव गुप्ता का कहना है कि इस बिल में जो प्रावधान किए गए हैं वे निजी अस्पताल को बर्बाद करने वाले हैं।

राजस्थान में ‘राइट टू हेल्थ’ बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर, जानिए वजह

इस बिल में ऐसे क्या प्रावधान हैं जो प्राइवेट हॉस्पिटल संचालकों को ये स्वीकार नहीं

1. ‘राइट टू हेल्थ’ बिल में आपातकाल यानी इमरजेंसी के दौरान निजी अस्पतालों को फ्री इलाज करने के लिए बाध्य किया गया है। मरीज के पास पैसे नहीं हैं तो भी उसे इलाज के लिए इनकार नहीं किया जा सकता। निजी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि इमरजेंसी की परिभाषा और इसके दायरे को तय नहीं किया गया है। हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर निःशुल्क इलाज लेगा तो अस्पताल वाले अपने खर्चे कैसे चलाएंगे।

2. राइट टू हेल्थ बिल में राज्य और जिला स्तर पर प्राइवेट अस्पतलों के महंगे इलाज और मरीजों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राधिकरण का गठन प्रस्तावित है। निजी अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि प्राधिकरण में विषय से जुड़े विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए। जिससे वे अस्पताल की परिस्थितियों को समझते हुए तकनीकी इलाज की प्रक्रिया को समझ सकें। अगर विषय विशेषज्ञ नहीं होंगे तो प्राधिकरण में पदस्थ सदस्य निजी अस्पतालों को ब्लैकमेल करेंगे। इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

3. राइट टू हेल्थ बिल में यह भी प्रावधान है कि अगर मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित है और उसे इलाज के लिए किसी अन्य अस्पताल में रेफर करना है तो एम्बुलेंस की व्यवस्था करना अनिवार्य है। इस नियम पर निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि एंबुलेंस का खर्चा कौन वहन करेगा। अगर सरकार भुगतान करेगी तो इसके लिए क्या प्रावधान है, यह स्पष्ट किया जाए।

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4. राइट टू हेल्थ बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी योजना के अनुसार सभी बीमारियों का इलाज निशुल्क करना है। निजी अस्पतालों के डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों पर थोप रही है। सरकार अपनी योजना को गवर्नमेंट अस्पतालों के जरिए लागू कर सकती है। इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों को बाध्य क्यों किया जा रहा है? योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं है। ऐसे में इलाज का खर्च कैसे निकालेंगे? इससे या तो अस्पताल बंद हो जाएंगे या फिर ट्रीटमेंट की क्वालिटी पर असर पड़ेगा।

5. दुर्घटनाओं में घायल मरीज, ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक से ग्रसित मरीजों का इलाज हर निजी अस्पताल में संभव नहीं है। ये मामले भी इमरजेंसी इलाज की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में निजी अस्पताल इन मरीजों का इलाज कैसे कर सकेंगे? इसके लिए सरकार को अलग से स्पष्ट नियम बनाने चाहिए।

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6. दुर्घटना में घायल मरीज को अस्पताल पहुंचाए जाने वालों को 5 हजार रुपए प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। दूसरी तरफ अस्पताल वालों को पूरा इलाज निशुल्क करना होगा। ऐसा कैसे संभव होगा?

7. अस्पताल खोलने से पहले 48 तरह की एनओसी लेनी पड़ती है। इसके साथ ही हर साल रिन्यूअल फीस, स्टाफ की तनख्वाह और अस्पताल के रखरखाव पर लाखों रुपए का खर्च होता है। अगर सभी मरीजों का पूरा इलाज मुफ्त में करना होगा तो अस्पताल अपना खर्चा कैसे निकालेगा। ऐसे में अगर राइट टू हेल्थ बिल को जबरन लागू किया को निजी अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे।
रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़, जयपुर

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