रामायण क्यों हमें अपने बच्चों को पढाना चाहिए ?

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रामायण
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हिंदू धर्म के अनुसार समय अवधि को चार युगों में बाँटा जाता है. जिसमें सतयुग , त्रेतायुग , द्वापर युग एंव कलयुग में बांटा गया है. जहां तक रामायण की बात है, तो यह त्रेतायुग से संबंधित मानी जाती है. इसके रचनाकार महर्षि वाल्मिकी को माना जाता है.

रामाय़ण में राम कथा है. हिंदू धर्म में राम को भगवान का अवतार माना जाता है. इसमें राम के पिता दशरथ उनको 12 वर्ष का वनवास जाने को कहते हैं. यह घटना उसी दिन की है, जब भगवान राम को राज तिलक होने वाला था. ऐसा बताया जाता है कि राम पिता की आज्ञा मानते हुए वन में चल जाते हैं. उनके साथ ही उनके छोटे भाई लक्ष्मण तथा भगवान राम की धर्मपत्नि सीता भी जाती है. वहीं एक दिन धोखे से रावण सीता मां को उठा ले जाता है. जिसके बाद भगवान राम हनुमान की सहायता से सीता माता का पता लगाते हैं.

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उसके बाद रावण और भगवान राम का युद्ध होता है. जिसमें भगवान राम को विजय मिलती है. भगवान राम की इस जीत को सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक भी माना जाता है. रामाय़ण का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. जहां तक इतिहास की दृष्टि से देखें तो भी रामायण को महाकाव्य माना जाता है. अगर हम बात करें कि बच्चों को रामायण की कथा क्यों पढानी चाहिएं, तो इसके पीछे भी महत्वपूर्ण कारण है. चलिए उस पर चर्चा करते हैं.

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बच्चे देश का भविष्य होते हैं तथा माता-पिता के लिए बच्चे ही उनके पूरे जीवन की पूंजी होते हैं. किसी भी बच्चे के बेहतर भविष्य और समाज के बेहतर भविष्य के लिए बच्चों के जीवन में संस्कार , अनुशासन और आदर्श होना बहुत ही जरूरी है. अगर रामायण की बात करें तो रामाय़ण में हर एक पात्र अपने आप में आदर्श के चरम स्थिति को प्रदर्शित करता है. जिससे हमारे बच्चों में भी यहीं संस्कार आएं.

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आदर्श के उदाहरण की बात करें, तो जैस- पिता की आज्ञा को मानकर राम ने राज छोड़कर वन जाने का निर्णय लिया. पिता के स्नेह की बात करें तो बेटे के वियोग में अपने प्राण त्याग दिए. भाई के आदर्श की बात करें, तो लक्ष्मण का भाई के प्रति प्यार और भरत का बड़े भाई राम के प्रति इतना प्यार की अपने राज को छोडकर वो भाई को मनाने चले जाते हैं. हनुमान की बात करें, तो स्वामी के प्रति समर्पण की इतनी भावना. इन सभी कारणों से रामायण को हमें अपने बच्चों को दिखाना चाहिएं ताकि अच्छें संस्कारों को सिखकर वो देश और समाज की प्रगति में योगदान दे सकें.