Raksha Bandhan: लक्ष्मीजी से जुड़ा है रक्षाबंधन का त्योहार, जानें ये पौराणिक कथा
श्रावण माह की पूर्णिमा पर यानि रविवार 22 अगस्त को रक्षा बंधन
हिंदू कैलेंडर में हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा को भाई बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन मनाया जाता है। ऐसे में इस साल 2021 में भी श्रावण माह की पूर्णिमा पर यानि रविवार 22 अगस्त को रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाएगा है। इस दिन भाइयों की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए उनकी बहनें कलाई में राखी बांधेंगी।
ऐसे में ये सवाल कई लोगों के मन में उठता है कि आखिर रक्षाबंधन पर्व के पीछे की कहानी क्या है और यह कब शुरु हुआ। इस संबंध में पंडित पीसी जोशी के अनुसार यूं तो रक्षाबंधन पर्व को लेकर कई कथाएं समाने आती हैं, लेकिन इसका मुख्य पौराण्कि कथा माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है, जिसके चलते आज भी रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है।
पंडित जोशी के मुताबिक कई लोगों का मानना है कि कि वृत्तासुर से युद्ध करने जब इंद्र जा रहे थे, तो इंद्र को रक्षा सूत्र उनकी पत्नी शची ने उन्हें बांधा था।
Must Read- इस शुभ योग में मनेगी कजली तीज 2021
जिसके बाद से रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा, लेकिन इस त्यौहार की खास बात भाई बहन के रक्षासूत्र से जुड़ी हुई है। ऐसे में रक्षाबंधन त्यौहार तब बना, जब इस सूत्र से देवी माता लक्ष्मी का नाता जुड़ा।
पंडित जोशी के अनुसार दरअसल स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण मुताबिक जब भगवान विष्णु के प्रथम अवतार वामन ने महाराज बली से ढ़ाई पग भूमि मांगने के बाद बलि को पाताललोक का राजा बना दिया, मौका देख राजा बलि ने भगवान से एक वरदान मांग लिया, जिसके अनुसार भगवान को रात-दिन उनके सामने रहने का वचन देना पड़ा।
वामनावतार के बाद दरअसल भगवन विष्णु को देवी लक्ष्मी के पास पुन: वापस था ,लेकिन इस वरदान ने भगवान विष्णु को रोक दिया और वे वहीं रसातल में बलि की सेवा में करने लगे।
Must Read- सावन में पुष्य नक्षत्र
वहीं जब इस बारे में पता चलने पर माता लक्ष्मी चिंता में आ गईं। तब नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताते हुए कहा कि आप राजा बलि को भाई बनाकर उनसे रक्षा का अपने लिए वचन ले लें।
यह सुनते ही माता लक्ष्मी एक साधारण महिला का रूप धारण कर रोते हुए राजा बलि के दरबार में पहुंच गईं। राजा बलि ने उनके रोने का कारण पूछा। तो साधारण महिला बनी माता ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं और मुझे कोई बहन नहीं बनाना चाहता, मैं क्या करूं महाराज।
उनकी यह व्यथा सुनकर राजा बलि ने उन्हें अपनी धर्म बहन बनाने का प्रस्ताव रखा। तब साधारण महिला रूप आईं माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और वचन लिया कि कि वह बहन की रक्षा करेंगे और उससे दक्षिणा भी देंगे। राजा बालि ने उन्हें ये वचन दे दिया।
वचन मिलते ही माता लक्ष्मी ने असली रूप में आ गईं और बोलीं कि यदि आपने मुझे अपनी बहन माना है तो दक्षिणा के रूप में आप मुझे मरे पति को लौटा दें। जिस पर अपने वचन का पालन करते हुए राजा बलि ने भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लौटा दिए। इस प्रकार माता लक्ष्मी बलि को अपना भाई बनाने के बाद श्रीहरि को भी वचन से मुक्त करा लिया और उन्हें अपने साथ लें गई।
मान्यता के अनुसार जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। ऐसे में इसी दिन से रक्षा बंधन का यह त्यौहार प्रचलन में है।
श्रावण माह की पूर्णिमा पर यानि रविवार 22 अगस्त को रक्षा बंधन
हिंदू कैलेंडर में हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा को भाई बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन मनाया जाता है। ऐसे में इस साल 2021 में भी श्रावण माह की पूर्णिमा पर यानि रविवार 22 अगस्त को रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाएगा है। इस दिन भाइयों की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए उनकी बहनें कलाई में राखी बांधेंगी।
ऐसे में ये सवाल कई लोगों के मन में उठता है कि आखिर रक्षाबंधन पर्व के पीछे की कहानी क्या है और यह कब शुरु हुआ। इस संबंध में पंडित पीसी जोशी के अनुसार यूं तो रक्षाबंधन पर्व को लेकर कई कथाएं समाने आती हैं, लेकिन इसका मुख्य पौराण्कि कथा माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है, जिसके चलते आज भी रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है।
पंडित जोशी के मुताबिक कई लोगों का मानना है कि कि वृत्तासुर से युद्ध करने जब इंद्र जा रहे थे, तो इंद्र को रक्षा सूत्र उनकी पत्नी शची ने उन्हें बांधा था।
Must Read- इस शुभ योग में मनेगी कजली तीज 2021
जिसके बाद से रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा, लेकिन इस त्यौहार की खास बात भाई बहन के रक्षासूत्र से जुड़ी हुई है। ऐसे में रक्षाबंधन त्यौहार तब बना, जब इस सूत्र से देवी माता लक्ष्मी का नाता जुड़ा।
पंडित जोशी के अनुसार दरअसल स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण मुताबिक जब भगवान विष्णु के प्रथम अवतार वामन ने महाराज बली से ढ़ाई पग भूमि मांगने के बाद बलि को पाताललोक का राजा बना दिया, मौका देख राजा बलि ने भगवान से एक वरदान मांग लिया, जिसके अनुसार भगवान को रात-दिन उनके सामने रहने का वचन देना पड़ा।
वामनावतार के बाद दरअसल भगवन विष्णु को देवी लक्ष्मी के पास पुन: वापस था ,लेकिन इस वरदान ने भगवान विष्णु को रोक दिया और वे वहीं रसातल में बलि की सेवा में करने लगे।
Must Read- सावन में पुष्य नक्षत्र
वहीं जब इस बारे में पता चलने पर माता लक्ष्मी चिंता में आ गईं। तब नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताते हुए कहा कि आप राजा बलि को भाई बनाकर उनसे रक्षा का अपने लिए वचन ले लें।
यह सुनते ही माता लक्ष्मी एक साधारण महिला का रूप धारण कर रोते हुए राजा बलि के दरबार में पहुंच गईं। राजा बलि ने उनके रोने का कारण पूछा। तो साधारण महिला बनी माता ने कहा कि मेरा कोई भाई नहीं और मुझे कोई बहन नहीं बनाना चाहता, मैं क्या करूं महाराज।
उनकी यह व्यथा सुनकर राजा बलि ने उन्हें अपनी धर्म बहन बनाने का प्रस्ताव रखा। तब साधारण महिला रूप आईं माता लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और वचन लिया कि कि वह बहन की रक्षा करेंगे और उससे दक्षिणा भी देंगे। राजा बालि ने उन्हें ये वचन दे दिया।
वचन मिलते ही माता लक्ष्मी ने असली रूप में आ गईं और बोलीं कि यदि आपने मुझे अपनी बहन माना है तो दक्षिणा के रूप में आप मुझे मरे पति को लौटा दें। जिस पर अपने वचन का पालन करते हुए राजा बलि ने भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लौटा दिए। इस प्रकार माता लक्ष्मी बलि को अपना भाई बनाने के बाद श्रीहरि को भी वचन से मुक्त करा लिया और उन्हें अपने साथ लें गई।
मान्यता के अनुसार जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। ऐसे में इसी दिन से रक्षा बंधन का यह त्यौहार प्रचलन में है।