राजश्री देशपांडे ने बताया इस समय क्या है औरतों की सबसे बड़ी दिक्कत, कहा- तब चुनौती ज्यादा होती हैं

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राजश्री देशपांडे ने बताया इस समय क्या है औरतों की सबसे बड़ी दिक्कत, कहा- तब चुनौती ज्यादा होती हैं

राजश्री देशपांडे ने बताया इस समय क्या है औरतों की सबसे बड़ी दिक्कत, कहा- तब चुनौती ज्यादा होती हैं

राजश्री देशपांडे इस समय वेब सीरीज ‘ट्रायल बाय फायर’ को लेकर चर्चा में हैं। इसमें उनके रोल की खूब तारीफ हो रही है। राजश्री ने बॉलीवुड में 2012 में आई आमिर खान की फिल्म ‘तलाश’ से बॉलीवुड डेब्यू किया था। इसके बाद वह टीवी की दुनिया में काम करने लगीं। राजश्री देशपांडे ने ‘कुछ तो लोग कहेंगे’ समेत कुछ और टीवी शोज किए। इसके बाद सलमान खान स्टारर ‘किक’ में नजर आईं। लेकिन राजश्री देशपांडे को पहचान मिली पैन नलिन की फिल्म Angry Indian Goddesses और ‘सेक्सी दुर्गा’ से। इसके बाद से राजश्री ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब ‘ट्रायल बाय फायर’ वेब सीरीज में उनके काम की चर्चा हो रही है। इससे पहले वह सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ भी कर चुकी हैं।

हाल ही नवभारत टाइम्स के साथ उन्होंने एक्सक्लूसिव बातचीत की, जिसमें करियर से लेकर सामाजिक मुद्दों और अन्य चीजों पर राय रखी।

– आपकी वेब सीरीज ट्रायल बाय फायर आज से 25 साल पहले दिल्ली में घटे उपहार सिनेमा हॉल के अग्निकांड पर आधारित है। जब किसी सच्ची घटना पर वेब सीरीज या फिल्म बनती है, तो कलाकार की जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है?

बहुत जरूरी है ये कहानी लोगों तक पहुंचना क्योंकि एक तो पूरे 25 साल की जर्नी हैं इन दोनों की और पूरे असोसिएशन की। उपहार अग्निकांड में नीलम और शेखर ने अपने दो बच्चों को खोया था। ऐसे कितने सारे लोग हैं जो आज तक उन सवालों को ढूंढते हैं और उन्हें जवाब नहीं मिल पाए हैं, तो ये उन सबकी कहानी है। आज नीलम और शेखर ने बात कही है, इसलिए हम उन्हें जानते हैं, मगर कितने लोग ऐसे हैं, जो बोल नहीं सकते, तो उनकी आवाज को इन दोनों ने आगे बढ़ाया है। जहां पर ये हादसा हुआ है, वो एक आम जगह है, जहां पर हम भी हो सकते हैं, हमारे लोग हो सकते हैं। और ये कहीं पर भी हो सकता है। आज भी सिस्टम में बहुत काम करने की जरूरत है। आज भी हम वहां तक नहीं पहुंचे हैं, जहां हम सुरक्षा से लैस हों। ये एक प्रेरित करने वाली कहानी है और हमें याद दिलाना बहुत जरूरी है कि हम सुरक्षित हैं या नहीं। मुझे लगता है कि सवाल करना बहुत जरूरी है। सवाल करो। हम कहां है ये सवाल करो? पूछो? तो इस वजह से मुझे लगता है कि ये कहानी हर जगह, हर गांव तक पहुंचनी चाहिए। मुझे लगता है गांव में भी लोगों को सोचना चाहिए कि क्या हम सुरक्षित हैं या नहीं।

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– निर्भया केस रहा हो या फिर उपहार सिनेमा अग्निकांड, न्याय मिलने में सालों लग जाते हैं। हमारी न्याय प्रणाली के इस पहलू के बारे में क्या कहना चाहेंगी?

बदलाव के लिए हमें खुद भी बदलना पड़ेगा। हर बार उंगली उठाने से बात नहीं बनेगी क्योंकि चार उंगली आपकी खुद की तरफ भी हैं। तो हमें भी उन चीजों के बारे में सोचना होगा क्योंकि हमें अपनी तरफ से भी पहल करनी होगी। जब मैं ग्रामीण क्षेत्रों में काम करती हूं तो मुझे अंदाजा होता है कि ऐसे बहुत से मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझने में वक्त लगेगा, मगर कहीं न कहीं से तो शुरुआत करनी पड़ेगी। कुछ नहीं तो कम से कम संवाद तो हो। और बहुत बार ऐसा होता है कि लोगों को पता भी नही होता है कि ये उनका अधिकार है। हमारी पॉलिसी में बहुत सारी अच्छी चीजें हैं मगर लोगों तक वो पहुंची नहीं हैं क्योंकि लोगों के पास वैसा कोई जरिया नहीं है। अगर आप उस चीज के जानकार हैं तो आप वो जरिया बन सकते हैं। आप वो काम कर सकते हैं, जो शायद ग्राउंड लेवल पर लोग ना कर सकें। आपको एक आवाज बननी पड़ेगी, भले ही वो आवाज फिल्ममेकर की तरह हो या जर्नलिस्ट की तरफ से हो या सोशल वर्कर की तरफ से हो या फिर एक आम इंसान की तरह ही क्यों न हो। आपको अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी।

– आपने कभी अपने कॉलेज या आस-पास के इलाके में किसी मुद्दे के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है ?

जी, मैं लगभग 10 साल पहले किसी और इंडस्ट्री में काम करती थी और मुझे ऐसा लगता था कि लिटरेचर और थिएटर मेरे करीब हैं, तो मैं इस क्षेत्र में आ गई। 10 साल से मैं फिल्मों और सोशल वर्क दोनों में हूं क्योंकि जो किताबें, जो लिटरेचर हम पढ़ते हैं, जैसे अगर आज हम प्रेमचंद, परसाई या मंटो अथवा इस्मत को पढ़ें, तो उन किरदारों में आप एक समाज को देखते हैं। मुझमें हमेशा से समाज के लिए काम करने का जज्बा रहा है। जिस समाज से मैं आती हूं और खुद एक किसान की बेटी होने के नाते मुझे लगता है कि ये मेरी जिम्मेदारी है कि मैं ऐसे लोगों के साथ खड़ी रहूं, जिन्हें न्याय की जरूरत है। खुशकिस्मती से मुझे जिस तरह के किरदार मिले हैं, वो जमीन से जुड़े हुए हैं। जो असल कहानियां हैं, उनको मैं आगे बढ़ा रही हूं। भले ही कम काम किया है मैंने लेकिन जो भी काम किया है, वो अच्छा रहा है।

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– कभी ऐसा हुआ है कि किरदार और रियलिटी के बीच की रेखा ब्लर हो गई हो?

हम सभी इमोशनल होते हैं। ट्रायल बाय फायर की शूटिंग के दौरान बहुत बार ऐसा होता था सेट पर कि मेरा ब्रेकडाउन हो जाता था। कई बार ऐसा होता था कि कुछ सीन में मैं खुद को नहीं रोक पाती थी, तो ये बहुत जरूरी है कि फिल्म में हर इंसान ऐसे समय पर आपकी इज्जत करे। बहुत बार ऐसा हो जाता है कि लोगों को समझ में ही नहीं आता है कि ये क्यों रो रही है! कई बार मुझे मेरे निर्देशक और साथी कलाकार अभय (देओल) ने संभाला है कि मैं ठीक तो हूं। बहुत आवश्यक है कि एक अदाकार को इंसान की तरह भी देखा जाए। सेट पर मैं कई बार टूटी। इस रोल में अदाकार के रूप में बहुत खर्च हुई मैं। मगर सेट पर मुझे काफी संभाला गया। हमने एक-दूसरे का साथ दिया।

– सेक्रेड गेम्स में सुभद्रा का किरदार करने के बाद आपको बोल्ड अभिनेत्री का खिताब दे दिया गया। आपके बिंदास होने के कारण क्या लोग आपसे डरते हैं?

मुझे ये बात समझ में नहीं आती कि आप किसी एक्ट्रेस को बोल्ड कहते हैं जब वो परफॉर्म करती है, लेकिन मुझे लगता है मैं एक आम इंसान के किरदार कर रही हूं। आप भी उतनी ही बोल्ड हैं, जितनी मैं हूं। हममें और आपमें कोई फर्क नहीं है। तो आप किरदारों पर इल्जाम डाल रहे हैं मगर ये समझना जरूरी है कि वो भी टूटी हुई हो सकती है। हम कलाकार किरदारों की जर्नी को दिखाते हैं। अब जो लोग कहते हैं कि आपसे डरते हैं तो मुझे समझ नहीं आता है कि क्यों! मगर मुझे लगता है कि जब आप पारदर्शक होते हैं, तो लोग आपके सामने आने से डरते ही हैं।

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– राजश्री आपको क्या लगता है कि इस वक्त औरतों की सबसे बड़ी दिक्कत क्या है?

महिलाओं से जुड़ी बहुत सारी समस्याएं हैं। बहुत काम करना है अभी। पढ़ाई, लिखाई, जानकारी, स्वतंत्र होना और बहुत सी छोटी-छोटी समस्याएं होती हैं। हम बहुत साल पीछे हैं। हमारा एक छोटा-सा तबका है जो आगे बढ़ रहा है और कितने सारे लोग हैं। जैसे गांव में काम करती हूं तो मुझे पता है कि कितनी सारी चुनौतियां हैं महिलाओं के लिए। इतना बड़ा एरिया है, जहां काम करना बाकी है। आजादी को 75 साल हो गए हैं, हम लोग आज भी पानी पर काम कर रहे हैं। आज भी गांवों में स्कूल नहीं हैं। एक आम इंसान को भी अनगिनत चुनौतियों से गुजरना पड़ता है और जब आप औरत होते हैं, तो आपकी दिक्क्तें ज्यादा होती हैं।

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– आपने महिला मुद्दों पर जमीनी स्तर पर काफी काम किया है..!

बिलकुल। मैं मराठवाड़ा के ऐसे क्षेत्र से आती हूं जहां परिवार में हम तीन बहनें रही हैं। मराठवाड़ा से पुणे आकर पढ़ाई करने के लिए भी मुझे अपने माता-पिता को आश्वस्त करना पड़ा और ये तब हुआ जब मैंने लॉ की डिग्री लेने की पेशकश की। हमारे क्षेत्र में बालिग होने के बाद लड़कियों की शादी ही उनकी मंजिल होती है। मगर मैं इस परंपरा को तोड़ना चाहती थी। बचपन से ही नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग तो लिया करती थी, साथ ही मुझमें समाज सेवा का भी जज्बा रहा। मैंने कश्मीर फ्लड, उत्तराखंड भूकंप जैसी आपदाओं में वालंटियर का काम किया। सबसे पहले मैंने एक गांव गोद लिया था, जहां मैंने पानी और महिलाओं की शिक्षा, सेहत, शौचालय जैसे मुद्दों पर काम करना शुरू किया था। इसकी शुरुआत मैंने अपने क्षेत्र मराठवाड़ा से की क्योंकि मैं उनकी परेशानियों से वाकिफ हूं। आज तो मैं तीस गांवों में महिलाओं के विभिन्न मुद्दों पर काम कर रही हूं।