Rabindranath Tagore: पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाए थे रवींद्रनाथ टैगोर, वियोग में लिखी थी ‘फांकी’ कविता

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Rabindranath Tagore: पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाए थे रवींद्रनाथ टैगोर, वियोग में लिखी थी ‘फांकी’ कविता

Rabindranath Tagore: पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाए थे रवींद्रनाथ टैगोर, वियोग में लिखी थी ‘फांकी’ कविता

बिलासपुर: भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर (rabindranath tagore birth anniversary update) की आज पुण्यतिथि है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से उनकी एक कविता का गहरा नाता है। बात वर्ष 1918 की है, जब टैगोर अपनी बीमार पत्नी बीनू को लेकर बिलासपुर पहुंचे थे। गुरुदेव को उन दिनों बिलासपुर जिले स्थित पेंड्रारोड स्टेशन जाना था। इसलिए वो बिलासपुर पहुंचे थे और चंद घंटों के बाद वो गाड़ी बदलकर वो पेंड्रा रोड चल दिए। इस बीच वो पांच से छह घंटे तक बिलासपुर स्टेशन के वेटिंग रूम में बैठे रहे। टैगोर अपनी पत्नी बीनू की टीबी का इलाज कराने पेंड्रा रोड स्थित सेनेटोरियम अस्पताल ले जा रहे थे। उन दिनों सेनिटोरियम अस्पताल टीबी के इलाज और विशेष आबोहवा के लिए देशभर में मशहूर था।


बिलासपुर के प्रतीक्षाघर में बैठे रवींद्रनाथ टैगोर की बीमार पत्नी की नजर स्टेशन परिसर में झाड़ू लगाने वाली एक महिला पर पड़ी। गुरुदेव की पत्नी बीमार बीनू ने उस महिला को बुलाया, पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है और तुम यह काम क्यों कर रही हो ? महिला ने अपना नाम रुक्मिणी बताया। रुक्मिणी ने कहा कि उसकी बेटी शादी के योग्य हो चुकी है इसलिए मैं मजदूरी कर पैसा जोड़ रही हूं। यह पूछने पर कि कितने पैसे में काम हो जाएगा रुक्मिणी ने बताया 20 रुपये में शादी हो जाएगी। इसके बाद पत्नी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से 20 रुपये देने का आग्रह किया।

मेरे साथ इसे बाहर चलना होगा
गुरुदेव ने कहा कि ठीक है, मैं इसे पैसे दे दूंगा लेकिन सौ रुपए के खुल्ले करवाने के लिए उसे मेरे साथ बाहर चलना होगा। रुक्मिणी को लेकर गुरुदेव बाहर गए और कहा कि तुम यह काम पैसे ठगने के लिए करती हो, मैं स्टेशन मास्टर को बताऊं क्या ? इतने में रुक्मिणी वहां से चली गई। जब गुरुदेव दोबारा प्रतीक्षालय पहुंचे तो उन्होंने अपनी पत्नी से पैसा देने का झूठ बोल दिया। इसके बाद पति-पत्नी पेंड्रारोड के सेनेटोरियम अस्पताल पहुंचे, जहां तकरीबन 6 महीने तक बीमार बीनू का टीबी का इलाज चला।

गुरुदेव की पत्नी बच नहीं पाई
पेंड्रारोड के सेनेटोरियम अस्पताल में करीब छह महीने के इलाज के बाद गुरुदेव की पत्नी बीनू बच नहीं पाई। इस तरह गुरुदेव को पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी न कर पाने का दुख सताने लगा। गुरुदेव पत्नी वियोग में खो गए और उन्हें बार-बार यह गम सताने लगा कि उन्होंने उनकी पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी नहीं की। अकेले गुरुदेव जब दोबारा कोलकाता लौटने के क्रम में फिर से बिलासपुर स्टेशन लौटे तो वो स्टेशन परिसर में रुक्मणी को पैसे देने के लिए ढूंढ़ते रहे लेकिन रुक्मिणी उन्हें कहीं नहीं मिली।

यहीं से एक महान कवि के हृदय में ‘फांकी’ कविता जन्म लेती है, जिसे गुरुदेव ने बिलासपुर स्टेशन पर लौटते वक्त लिखा था। फांकी एक बंग्ला शब्द है, जिसका अर्थ ‘छलना’ होता है। गुरुदेव को लगा कि उन्होंने अपनी पत्नी के साथ झूठ बोलकर एक छल किया है और इसी मनोभाव से उनकी प्रसिद्ध कविता फांकी ने जन्म लिया।

दरअसल, एक कवि के अंदर जितनी अधिक स्वीकारोक्ति की भावना होती है, वो उतनी ही महान और स्थाई रचना समाज को देता है। गुरुदेव की फांकी इस अर्थ में एक महान रचना है, जिसे बिलासपुर स्टेशन के मुख्य द्वार के पास खूबसूरती से उकेरा गया है।

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