Pitra Paksha 2022: पितृपक्ष के पहले दिन तर्पण के लिए घाटों पर लगी भीड़, जानिए इसके महत्व और प्रक्रिया के बारे में

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Pitra Paksha 2022: पितृपक्ष के पहले दिन तर्पण के लिए घाटों पर लगी भीड़, जानिए इसके महत्व और प्रक्रिया के बारे में

Pitra Paksha 2022: पितृपक्ष के पहले दिन तर्पण के लिए घाटों पर लगी भीड़, जानिए इसके महत्व और प्रक्रिया के बारे में

भोपाल, उज्जैनः शनिवार को भाद्रपद पूर्णिमा के साथ ही पूर्वजों का तर्पण शुरू हो गया। अगले सोलह दिन तक पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण के कार्यक्रम चलेंगे। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में शनिवार सुबह से ही लोग तालाब किनारे दिवंगतों का तर्पण करने आए। इसके बाद जरूरतमदों को भोजन कराने का सिलसिला शुरू हुआ। तालाब किनारे और शहर के विसर्जन घाटों के अलावा लोग घरों में भी पानी में गंगाजल डालकर तर्पण कर रहे हैं।

पंचांग की गणना के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा पर आज से महालय श्राद्ध का आरंभ हुआ है। तिथि क्षय नहीं होने से इस बार श्राद्ध पक्ष पूरे सोलह दिन का रहेगा। पक्ष काल में दो सर्वार्थसिद्धि, दो अमृतसिद्धि और दो बार रवियोग का संयोग बन रहा है। मान्यता है विशिष्ट योग नक्षत्र और पांच ग्रहों की पुनर्साक्षी में पितरों के निमित्त तर्पण और पिंडदान करने से वे परिजनों को सुख, समृद्धि, आयु, आरोग्य और वंशवृद्धि का आशीष प्रदान देते हैं।

उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व
महाकाल की नगरी उज्जैन में तर्पण का विशेष महत्व है। ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला के अनुसार अवंतिकातीर्थ में शिप्रा के सिद्धवट व रामघाट के साथ गयाकोठा तीर्थ पर पितृकर्म करना सिद्ध माना जाता है। मान्यता है कि उज्जैन में श्राद्ध करने पर गया श्राद्ध से भी ज्यादा पुण्य प्राप्त होता है।

क्यों जरूरी है श्राद्ध करना
लोक मान्यता के चलते देशभर से आस्थावान अवंतिकातीर्थ में श्राद्ध करने आते हैं। यम स्मृति के अनुसार जो मनुष्य अपने वैभव के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, वह साक्षात ब्रह्मा से लेकर तृण पर्यंत समस्त प्राणियों को तृप्त करता है। श्रद्धा पूर्वक विधि विधान से श्राद्ध करने वाला मनुष्य ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, विश्व देव, मित्रगण, मनुष्य गण, पशुगण, भूतगण और सर्पगण को संतुष्ट करते हुए संपूर्ण जगत को संतुष्ट कराता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

श्राद्ध में केवल सफेद फूलों का इस्तेमाल
श्राद्ध में त्यागने योग्य पुष्प पितरों को कदंब, केवड़ा, मौलसिरी, बेलपत्र, लाल तथा काले पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए। पितृ पूजा में केवल सफेद रंग के फूलों का उपयोग करना चाहिए। सनातन धर्म परंपरा में पौराणिक तथा धर्म शास्त्रीय अभिमत है कि पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध की परंपरा तीर्थ पर ही संपादित करना चाहिए। तीर्थ पर पंचमहाभूतों की प्रबल साक्षी मानी जाती है, जो श्राद्ध कर्म को परिपूर्ण बनाते हैं। इसलिए ऑनलाइन श्राद्ध नहीं कराना चाहिए।

मनोकामना पूर्ण कर आयु देगा पूर्णिमा का श्राद्ध
श्री क्षेत्र पंडा समिति के अध्यक्ष पं.राजेश त्रिवेदी आमवाला ने बताया कि जिन परिवारों में पूर्णिमा तिथि के दिन परिवार के सदस्य की मृत्यु हुई है, उन्हें शनिवार को ही श्राद्ध करना चाहिए। इसके अलावा जो लोग अपने पूर्वजों को पहली बार श्राद्ध में ले रहे हैं, उन्हें भी पूर्णिमा के दिन श्राद्ध कर पितृकर्म की शुरुआत करना चाहिए। इसके बाद वे उनकी तिथि पर श्राद्ध कर सकते हैं।

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