10 हजार छंटनी: नौकरी संकट पर सरकार नींद से जागे

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आपने पारले प्रोडक्ट्स के बिस्किट पारले जी तो खाया ही होगा। मगर पारले प्रोडक्ट्स इस वक्त कई समस्याओं से जूझ रहा है और इस कंपनी में काम करने वाले लोगों की नौकरी पर संकट बना हुआ है। कंपनी ने घोषणा की है कि वो 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी करेगी। इसका मतलब साफ है कि संभवतः 10 हजार कर्मचारियों की नौकरी जाने वाली है। रोजगार पर मंडरा रहे संकट पर सरकार को नींद से जागने का समय है।

जब लोग बिस्किट का एक पैकेट खरीदने से पहले भी सोचने लगें, तब एक गहरे आर्थिक संकट की दस्तक सुनना ज़रूरी हो जाता है। पारले प्रोडक्ट्स की 10,000 कर्मचारियों की संभावित छंटनी की घोषणा ने ऑटो जगत में जैसे मंदी की खबरों जन्म दिया है। अलग-अलग वैराइटी के बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले प्रोडक्ट्स का कहना है कि मांग में लगातार गिरावट आ रही है और सरकारी नीतियों ने संकट को और गहरा करने का काम किया है।

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यह दिखाता है कि भारत या तो मंदी के भंवर में है या उसकी तरफ बढ़ रहा है और ऐसा लगता है कि किसी को भी इस संकट से निपटने का उपाय मालूम नहीं है। एक बिस्किट की तुलना एक कार से नहीं की जा सकती है- कार एक बार की जानेवाली (वन टाइम) खरीदारी है, जो बार-बार नहीं की जाती है, जबकि उपभोक्ता नियमित तरीके से, अक्सर हफ्ते में कई बार बिस्किट खरीदते हैं।

यह बात समझ में आनेवाली है कि लोग कुछ लाख खर्च करने में हिचक रहे हैं, लेकिन जब वे 5 रुपये खर्च करने से भी कतराने लगें, तो इसका मतलब यही निकलता है कि हम एक गहरे आर्थिक संकट में हैं। खाना खाए बगैर लोगों का काम नहीं चल सकता, लेकिन वे एक और चाय और उसके साथ एकाध बिस्किट की तलब छोड़ सकते हैं।

एक दिहाड़ी या ठेके पर काम कर रहे मजदूर के लिए एक-एक रुपया मायने रखता है- हो सकता है कि कल कोई काम न हो, इसलिए कोई मजदूरी भी न हो- इस बात की अनिश्चितता को देखते हुए एक-एक पैसे की बचत करना जरूरी है।

जेट एयरवेज के डूबने से हजारों योग्य और मेहनती पेशेवर रातोंरात बेरोजगार हो गए और उनकी तनख्वाह फिर से मिलने की उम्मीद न के बराबर या बहुत थोड़ी है। उनके पास चुकाने के लिए कर्जे हैं, मकान का भाड़ा है, बच्चों की फीस है- ऐसे में वे छुट्टी पर जाने से पहले दस बार सोचेंगे। यही बात दूसरे पैमाने पर भवन-निर्माण मजदूरों पर भी लागू होती है। ऐसे में जबकि भवन-निर्माण का काम ठप पड़ा हुआ है, वह मजदूर बिस्किट का एक पैकेट खरीदने से पहले भी दस बार सोचेगा।

सरकार को अर्थव्यवस्था की सेहत को बढ़ती निराशा की तरफ ध्यान देने की जरूरत है। बड़े कारोबारी इस संकट का सामना करने का रास्ता कर्मचारियों की छंटनी करके और अपने खर्चे कम करके खोज लेंगे। लेकिन छोटे आदमी के पास कोई सुरक्षा नहीं है। उसके पास संकट से पार पाने के लिए न तो बचत है, न वह सरकार से मिलनेवाली किसी सहायता पर ही भरोसा कर सकता है।

राजनीतिक और वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में इतनी मशगूल है कि उसके पास अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी खोजने के लिए वक्त ही नहीं है। बस बड़े-बड़े शब्द उछाले जा रहे हैं और बजट का सारा जोर आचरण को नियंत्रित करने और अगले आम चुनाव तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए चीन से प्रतिस्पर्धा करने पर था।

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