Padama Awards 2023: 15 साल की उम्र से कर रहे बुनकर का काम, पद्मश्री सम्मान पाने वाले कपिलदेव प्रसाद कौन?

22
Padama Awards 2023: 15 साल की उम्र से कर रहे बुनकर का काम, पद्मश्री सम्मान पाने वाले कपिलदेव प्रसाद कौन?

Padama Awards 2023: 15 साल की उम्र से कर रहे बुनकर का काम, पद्मश्री सम्मान पाने वाले कपिलदेव प्रसाद कौन?


Kapildev Prasad got padama shree: केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया है। बिहार से पद्मश्री सम्मान पाने वालों में सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार समेत कपिलदेव प्रसाद और सुभद्रा देवी का नाम शामिल है। कपिलदेव प्रसाद 15 वर्ष की आयु से बुनकर का काम करते आ रहे हैं। बावन बूटी साड़ी निर्माण के लिए इन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिए जाएंगे।

 

नालंदा: जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से सटे बसवनबिगहा के रहने वाले बुनकर कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री से नवाजा गया है। इस खबर के मिलते ही बुनकरों के साथ ही जिलेभर में गर्व और उत्साह का माहौल है। बसवनबिगहा के हर घर में खुशी का ठिकाना नहीं है। यह अवार्ड बावनबूटी साड़ी निर्माण के लिए कपिलदेव प्रसाद को दिया गया है। जिला प्रशासन ने उन्हें फोन कर गणतंत्र दिवस पर सोगरा स्कूल में होने वाले मुख्य समारोह में आमंत्रित किया है। उन्हें इस सफलता के लिए सम्मानित किया जाएगा। हालांकि, पद्मश्री सम्मान मार्च में उन्हें दिल्ली में मिलेगा। उन्होंने बताया कि पिछले 60 वर्षों से वे सूत कटाई और बावनबूटी साड़ी निर्माण से जुड़े हैं। यह उनका पुश्तैनी कारोबार है। उनके पिता भी पहले इसी कारोबार से जुड़े हुए थे। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी लाखो देवी और इकलौते बेटे भी उनके इस कारोबार में हाथ बटाते हैं।

Padama Awards 20232.

यही वह राज्‍य है, जहां आज भी देश की पहली और प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के अवशेष हैं। इतना ही नहीं, नालंदा के हस्तकरघों से बुनी जाने वाली बावनबूटी हस्‍तशिल्‍प कला भी बहुत लोकप्रिय है। हालांकि, बहुत कम लोगों को ही अब इस कला के बारे में जानकारी है। क्‍योंकि, इस कला पर आज भी आधुनिकता और फैशन की परत नहीं चढ़ पायी है। बावनबूटी हस्‍तकला के माध्‍यम से तैयार की जाने वाली विशेष साड़ी, जिसे ‘बावन बूटी साड़ी’ कहा जाता है। साधारण कॉटन और तसर के कपड़े पर हाथ से की गई कारीगरी वाली यह साड़ी देश के लिए किसी विरासत से कम नहीं है।

Padama Awards 20231.

बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाली इस साड़ी को नालंदा के नेपुरा गांव में सदियों से बनाया जाता रहा है। इसे बावबूटी साड़ी इसलिए कहा जाता है कि पूरी साड़ी में एक जैसी बावन बूटियां यानि ‘मौटिफ’ होती हैं। दिखने में बेहद साधारण इस साड़ी को बिहार की हर महिला की वॉर्डरोब में देखा जा सकता है। क्‍योंकि, यह साड़ी पहनने में बेहद आरामदायक होती है। और, इसे महिलाएं घर से लेकर बाहर तक किसी भी छोटे-मोटे अवसर पर पहन सकती हैं।

Padama Awards 20233

साड़ी की खासियत

बावनबूटी साड़ी हस्तकरघा पर तैयार की जाती है। इसकी कई वेरायटी हैं। खासियत यह कि साड़ी के निर्माण में किसी खास चिह्न का इस्तेमाल (बूटी ) 52 जगहों पर की जाती है। साड़ी की कीमत 2 हजार से 20 हजार तक होती है। खास यह भी कि इसकी मांग न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी काफी है। यह बात आम है कि भारत से निकले बौद्ध धर्म की शुरुआत बिहार से ही हुई थी। आज भी इस धर्म के प्रचारक भारत में हैं। और, इसे मनने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इस साड़ी में बौद्ध धर्म की झलक देखने को मिलती है। इस साड़ी में कम-से-कम बावन बूटियां होती हैं। यह बहुत ही महीन होती हैं। और, इन्‍हें धागों की मदद से साड़ी पर बुना जाता है। इस कला की विशेषता यह भी है कि पूरे कपड़े पर एक ही डिजाइन को बावन बार बूटियों के रूप में बनाया जाता है।

Padama Awards 20234

बावन बूटी के माध्‍यम से छह गज की साड़ी में बौद्ध धर्म की कलाकृतियों को उकेरा जाता है, जो ब्रह्मांड की सुंदरता का वर्णन करती हैं। बौद्ध धर्म में हाठ चिह्न होते हैं। बावन बूटी हस्‍तकला में इन्‍हीं चिह्नों का प्रयोग किया गया है। यह बूटियां काफी महीन होती हैं और सादे कपड़े पर बुनी जाती हैं। बावन बूटी में कमल का फूल, बोधी वृक्ष, बैल, त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना, फूलदान, पारसोल, शंख आदि चिह्न होते हैं। ये सभी बौद्ध धर्म के प्रतीक माने जाते हैं। इस कला से सजीं साड़ियां, चादर, शॉल, पर्दे आदि बाजार में मिलते हैं। इनकी लोकप्रियता भारत के अलावा जर्मनी, अमेरिका और ऑस्‍ट्रेलिया तक फैली हुई है। इसके अलावा बौद्ध धर्म मानने वाले देशों में भी इस कला के कद्रदान हैं।

Padama Awards 2023

बावन बूटी कला को कब मिली पहचान

वर्षों से इस कला को करने वाले कारीगरों को कभी भी न तो राज्‍य स्‍तर पर बहुत सराहना मिली, न ही विश्‍व स्‍तर पर। मगर देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बावन बूटी से बने पर्दों को राष्ट्रपति भवन में जब लगवाया तो लोगों को इस कला के बारे में पता चला। अब तो इस कला को यूनेस्को भी बढ़ावा दे रहा है। हालांकि, आज भी फैशन की दुनिया से यह कला कोसों दूर है। लेकिन, इसका विकास लगातार होता नजर आ रहा है और जल्‍द ही फैशन के गलियारों में भी हमें बावन बूटी कला देखने को मिल जाएगी।

आसपास के शहरों की खबरें

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें

बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News