Opinion: हिंदी फिल्‍मों के बायकॉट से किसे है फायदा? क्‍योंकि वो चाहता है खत्‍म हो जाए बॉलीवुड!

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Opinion: हिंदी फिल्‍मों के बायकॉट से किसे है फायदा? क्‍योंकि वो चाहता है खत्‍म हो जाए बॉलीवुड!


Opinion: हिंदी फिल्‍मों के बायकॉट से किसे है फायदा? क्‍योंकि वो चाहता है खत्‍म हो जाए बॉलीवुड!

139,000,000,000 क्‍या हुआ, गिनने में गच्‍चा खा गए? 1.39 लाख करोड़ रुपये। ये वो रकम है जो हर साल बॉलीवुड की फिल्‍में कमाती हैं। देश की जीडीपी में हर साल हिंदी फिल्‍में करीब-करीब इतनी ही रकम जोड़ती हैं। लेकिन बॉलीवुड के इतिहास में यह पहला मौका है, जब बीते 8 महीने में रिलीज 29 फिल्‍मों में से 26 या तो फ्लॉप हो गई हैं या डिजास्‍टर साबित हुई हैं। यानी कमाई टांय-टांय फिस्‍स। हालात ऐसे हैं कि इधर फिल्‍म बनाने की घोषणा होती है और उधर सोशल मीडिया पर #BoycottBollywood का ट्रेंड शुरू हो जाता है। लेकिन क्‍या आपने कभी सोचा है कि ऐसा हो क्‍यों रहा है? बायकॉट के जो कारण बताए जा रहे हैं, उससे इतर क्‍या आपने कभी द‍िमाग लगाया है कि आख‍िर भारी-भरकम राजस्‍व कमाने वाले बॉलीवुड को किसकी नजर लगी है? अगर बॉलीवुड को लगातार घाटा हो रहा है तो आख‍िर फायदा किसे हो रहा है? क्‍या कोई ऐसा है जो चाहता है कि बॉलीवुड की फिल्‍में फ्लॉप हो जाए, इसका बिजनस बुरी तरह तबाह हो जाए? और अगर आज के दौर में सिनेमा के लिए सबकुछ बिजनस है तो आख‍िर वो कौन है जो बॉलीवुड के नुकसान से फायदा कमा हो रहा है?

कई बार हमारी आंखों के सामने सबकुछ हो रहा होता है, लेकिन हम देख नहीं पाते। कुछ-कुछ फिल्‍मों की कहानी की तरह ही, जहां हमें जो दिखाया जाता है, हम उसी पर भरोसा करने लगते हैं। जैसे, हमें यह बताया गया कि बॉलीवुड की फिल्‍मों का बायकॉट होना चाहिए। क्‍यों? क्‍योंकि यहां नेपोटिज्‍म है, क्‍योंकि यहां असली कहानियां नहीं हैं, इतने से भी बात नहीं बनी तो इसे अलग रंग दिया गया। कहा गया कि बायकॉट होना चाहिए क्‍योंकि बॉलीवुड के हीरो और हिरोइन देश के हित में नहीं सोचते, वो एक धर्म विशेष को जानबूझकर बदनाम करते हैं। हमसे कहा गया और हमने मान लिया। जबकि सिर्फ एक पल के लिए जिस ट्वीट में यह बात कही गई, उसके नीचे के ट्वीट को देखते तो सब समझ आ जाता कि आख‍िर ऐसा क्‍यों कहा जा रहा है।

ट्वीट्स देख‍िए, वो बता रहे हैं कि बॉलीवुड बुरा है और कौन है अच्‍छा?
अगली बार जब भी किसी फिल्‍म के बायकॉट के ट्रेंड को देखें तो ट्रोल करने वाले हर दूसरे ट्वीट पर गौर कीजिएगा, आपको एक बात कॉमन दिखेगी। हर दूसरे ट्वीट में बॉलीवुड की फिल्‍म और इसके एक्‍टर्स की नेगेटिव इमेज दिखाने के साथ कुछ फिल्‍मों, फिल्‍ममेकर्स और एक्‍टर्स को लेकर पॉजिटिव बातें की जा रही होंगी। यानी हमें बताया जा रहा है कि बॉलीवुड बुरा है और ये अच्‍छा। ये हीरो गलत है, ये हीरो सही। यानी धीरे-धीरे ऐसे सैकड़ों, लाखों ट्वीट्स के जरिए हमारे दिमाग में यह बात दही की तरह जमा दी गई है कि एक हीरो बुरा है और दूसरा वाला सही। अब जरा सोचिए कि ये दूसरा वाला हीरो कौन है, जो अच्‍छा है। वो दूसरी वाली फिल्‍में कौन सी हैं जो सच्‍ची हैं। वो अच्‍छे वाले फिल्‍ममेकर्स कौन हैं जो अच्‍छी फिल्‍में बना रहे हैं। सब साफ दिखने लगेगा कि दर्शकों के दिमाग के साथ कैसे खेला जा रहा है।

अब जरा इन बातों पर गौर कीजिए, दिमाग सन्‍न हो जाएगा
बॉलीवुड के विरोध से सबसे बड़ा फायदा किसे हो रहा है? जवाब मिलेगा साउथ की फिल्‍मों को। हॉलीवुड की फिल्‍मों को। आख‍िर ऐसे कैसे हो गया कि जो अक्षय कुमार कल तक सबसे बड़े देशभक्‍त थे, वो इस साल भी सबसे ज्‍यादा टैक्‍स चुकाने के बावजूद ‘कनाडा कुमार’ कहकर ट्रोल किए जाने लगे। यह सच है कि बॉलीवुड के मेकर्स के पास नई कहानी का अकाल है, लेकिन फिर ‘अनेक’ जैसी फ्रेश फिल्‍म कैसे पिट गई। अगर ‘रनवे 34’ और ‘लाल सिंह चड्ढा’ हॉलीवुड की रीमेक हैं और इसलिए इसका बाकयकॉट होना चाहिए तो ‘दृश्‍यम’ जैसी फिल्‍म का क्‍या, जो साउथ में ही दो बार रीमेक हो चुकी हैं। बाकी की तो छोड़‍िए किसी जमाने में खुद रजीनकांत के डूबते फिल्‍मी करियर को अम‍िताभ बच्‍चन की 11 फिल्‍मों के रीमेक ने उबारा था। बॉलीवुड फिल्‍मों का बायकॉट की मांग इस मुद्दे पर भी होती है कि यहां नेपोटिज्‍म है, अगर ऐसा है तो फिर तमिल फिल्‍मों में चिरंजीवी से लेकर अल्‍लू अर्जुन और राम चरण से लेकर महेश बाबू और जूनियर एनटीआर का क्‍यों नहीं, वहां तो सभी एक ही परिवार से हैं। (खबर के अंत में देखें पूरी फैमिली ट्री)

बात बॉलीवुड या साउथ की नहीं, करोड़ों रुपये की है
यहां बात बॉलीवुड वर्सेज साउथ की नहीं है। बात ये भी नहीं है कि कौन अच्‍छा है। फिल्‍में मनोरंजन है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह मुंबई में बन रही हैं या हैदराबाद में। हॉलीवुड में बन रही हैं या कोरिया में। लेकिन मेकर्स को इससे बड़ा फर्क पड़ता है। वो ऐसे कि अब फिल्‍मों का बजट बढ़ गया है। यानी फायदा कमाने के लिए फिल्‍मों की बंपर कमाई बहुत मायने रखती है। समय के साथ अब साउथ की फिल्‍मों का बजट भी 300-400 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यानी 300 करोड़ के बजट में बनी फिल्‍म को घाटे से बचाना है तो कम से कम 400 करोड़ रुपये कमाने होंगे और यह अकेले साउथ के स‍िनेमाघरों के बस की बात नहीं है। देशभर में कोरोना काल के बाद मल्‍टीप्‍लेक्‍स और सिंगल स्‍क्रीन मिलाकर करीब 10 हजार स्‍क्रीन्‍स हैं। इनमें आधे से अध‍िक पर हिंदी के दर्शकों का दबदबा है। यानी कमाई करनी है तो हिंदी के दर्शकों में पैठ बनानी होगी।

बाहुबली और केजीएफ 2 ने पैन इंडिया रिलीज की बदौलत बनाया रिकॉर्ड

अगर हिंदी में रिलीज नहीं होतीं तो पिट जातीं ये साउथ की फिल्‍में
ताजा उदाहरण लेते हैं। यश की KGF2 ने देशभर में 859.55 करोड़ रुपये की कमाई की। जबकि इसमें से सिर्फ हिंदी वर्जन से 435 करोड़ रुपये की कमाई हुई। इसी तरह एसएस राजामौली की RRR ने देशभर में 772.10 करोड़ रुपये की कमाई की। इसमें से 266 करोड़ रुपये की कमाई हिंदी वर्जन से हुई। ‘पुष्‍पा’ ने देशभर में 267.55 करोड़ रुपये का बिजनस किया। इसमें से सिर्फ हिंदी वर्जन से 106.35 करोड़ रुपये की कमाई हुई। थोड़ा और पीछे चले तो साउथ के फिल्‍ममेकर्स को यह गण‍ित समझ आया 2015 में जब ‘बाहुबली’ रिलीज हुई थी। यह साउथ की पहली ऐसी फिल्‍म थी जो पैन इंडिया रिलीज हुई। इस फिल्‍म ने देशभर में 421 करोड़ रुपये कमाए, जिसमें से हिंदी में 118 करोड़ रुपये की कमाई हुई। इसके बाद 2017 में जब ‘बाहुबली 2’ आई तो इसके आंकड़ों ने सबको चौंका दिया। इस फिल्‍म ने देशभर में 1030 करोड़ रुपये का कलेक्‍शन किया। इसमें से 510 करोड़ रुपये यानी लगभग 50 फीसदी कमाई हुई हिंदी वर्जन से।

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हिंदी में कमाई न हो तो ये होता है हश्र
एक और मजेदार बात यह है कि जिन 8 आठ महीनों में बॉलीवुड की 29 में से 26 फिल्‍में बुरी तरह पिट गईं, उसी दौर में साउथ सिनेमा की कई बड़ी फिल्‍में भी बुरी तरह फ्लॉप हुईं। इतना ही नहीं, कमल हासन की ‘विक्रम’, रक्ष‍ित शेट्टी की ‘777 चार्ली’, अदिवी शेष की ‘मेजर’ और किच्‍चा सुदीप की ‘विक्रांत रोणा’ ऐसी फिल्‍में भी रहीं, जो हिंदी वर्जन में बुरी तरह पिट गईं। असर यह हुआ कि ‘विक्रम’ को छोड़कर बाकी फिल्‍मों को अपना बजट निकालने के लिए ओटीटी की शरण में जाना पड़ा। यही नहीं, ‘विक्रम’ की हालत को हिंदी वर्जन में इतनी खस्‍ता थी कि यह फिल्‍म रिलीज से लेकिन अपने आख‍िर तक एक दिन में एक करोड़ रुपये की कमाई करने के लिए भी तरसती रही।

विक्रांत रोणा – कुल कमाई: 75.72 करोड़, हिंदी में कमाई: 10.67 करोड़
विक्रम – कुल कमाई: 237 करोड़, हिंदी में कमाई: 9.75 करोड़
777 चार्ली – कुल कमाई: 84.79 करोड़, हिंदी में कमाई: 7.45 करोड़
मेजर – कुल कमाई: 38.67 करोड़, हिंदी में कमाई: 10.7 करोड़

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द ग्रे मैन में धनुष

इंडियन स्‍टार कहलाने की चाहत, पर हॉलीवुड में डायलॉग- माय तमिल फ्रेंड
इन आंकड़ों से इतना तो जरूर साफ हो जाता है कि किसी भी बड़े बजट की फिल्‍म के लिए पैन इंडिया रिलीज कितना अहम है। सैकड़ों करोड़ में कमाई करनी है तो पैन इंडिया खासकर हिंदी वर्जन में रिलीज करना होगा। लेकिन हिंदी के दर्शकों को सिनेमाघर तक खींचना भी एक टास्‍क है। क्‍योंकि टीवी पर बरसों से साउथ फिल्‍मों के डब वर्जन हम सभी देख रहे थे। ऐसे में क्‍या दर्शक इन फिल्‍मों को देखने के लिए सिनेमाघर तक आएंगे? इस सवाल का जवाब है अचानक बढ़ा साउथ फिल्‍मों का प्रमोशन। तमिल-तेलुगू-कन्‍नड़ और मलयालम एक्‍टर्स का यह कहना है कि उन्‍हें रीजनल स्‍टार न कहकर इंडियन स्‍टार कहा जाए। बात सही भी है। यह देश की एकता को भी दर्शाता है। लेकिन दिलचस्‍प है कि इसी बीच जब हॉलीवुड फिल्‍म ‘द ग्रे मैन’ में धनुष नजर आते हैं तो फिल्‍म के एक डायलॉग में उन्‍हें क्रिस इवांस ‘माय तमिल फ्रेंड’ कहते हैं। धनुष चाहते तो वह इस डायलॉग को ‘माय इंडियन फ्रेंड’ भी करवा सकते थे, लेकिन वहां ऐसा नहीं किया गया।

सुशांत की मौत, नेपोटिज्‍म और बॉलीवुड
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड की खूब छीछालेदर हुई। इंडस्‍ट्री पर नेपोटिज्‍म के आरोप तो पहले भी लगते रहे, लेकिन सुशांत की मौत के बाद इस पर बड़ी बहस छिड़ी। बॉलीवुड को हर तरफ से घेरा गया। यह आरोप कई मायने में सही भी हैं। लेकिन एक सच यह भी है हम सभी के फेवरेट एक्‍टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत का राजनीतिक घरानों से लेकर फिल्‍मों के गलियारों तक हर किसी ने अपने मतलब से फायदा निकाला। अब जब हिंदी फिल्‍मों का बायकॉट होता है तो यहां भी नेपोटिज्‍म को मुद्दा बताया जाता है। साथ में अगले ही ट्वीट में साउथ के सुपरस्‍टार्स की सादगी, उनकी धार्मिक रुचि और फैमिली मैन होने का जिक्र किया जाता है। जबकि साउथ के घरानों में नेपोटिज्‍म का बरगद इस कदर फैला हुआ है कि वहां किसी आम इंसान का हीरो बनना अपने आप में बड़ा टास्‍क है। खासकर तेलुगू फिल्‍म इंडस्‍ट्री के आगे कन्‍नड़, मलयालम या तमिल फिल्‍म इंडस्‍ट्री को पैर पसारने में भी मुश्‍क‍िल होती है।

साउथ में नेपोटिज्‍म का वट वृक्ष

अल्लू रामलिंगैया की फैमिली
अल्‍लू अरविंद- अल्‍लू अर्जुन, अल्‍लू श‍िरीष
सुरेखा – चिरंजीवी, राम चरण, नागेंद्र बाबू, पवन कल्‍याण, विजया दुर्गा, वरुण तेज, निहारिका, वैष्‍णव तेज, साई धरम तेज

मलयालम इंडस्‍ट्री
मोहनलाल- प्रणव मोहनलाल
ममूटी – दुलकर सलमान
फाजिल – फहाद फाजिल, नजरिया फाजिल

अक्‍क‍िनेनी-दग्‍गुबाती परिवार
अक्‍क‍िनेनी नागेश्‍वर राव- सत्‍यवती अक्‍क‍िनेनी, समुंत, अक्‍क‍िनेनी नागा सुशीला, सुशांत, अक्‍क‍िनेनी नागार्जुन, नागा चैतन्‍य, अख‍िल अक्‍क‍िनेनी
डी रामा नायडू- लक्ष्‍मी दग्‍गुबाती, वेंकटेश, डी. सुरेश बाबु, राणा दग्‍गुबाती

कन्‍नड़ इंडस्‍ट्री
डॉ. राजकुमार – पुनीत राजकुमार, श‍िव राजकुमार, राघवेंद्र राजकुमार, विनय
थूगुदीप श्रीनिवास – दर्शन थूगुदीप, दिनांकर

तमिल फिल्‍म इंडस्‍ट्री
एसए चंद्रशेखर- विजय (थलपति)
कस्‍तुरी राजा- धनुष, श‍िवकार्तिकेन
श‍िवकुमार- सूर्या, कार्ति, ज्‍योतिका

डिस्‍क्‍लेमर: इस लेख में व्‍यक्‍त किए गए विचार लेखक के निजी हैं।



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