Opinion: समाजवादियों को कभी चिढ़ नहीं रही जनसंघ या बीजेपी से, समय-समय पर दोनों ने साथ चलाई है सरकार

15
Opinion: समाजवादियों को कभी चिढ़ नहीं रही जनसंघ या बीजेपी से, समय-समय पर दोनों ने साथ चलाई है सरकार

Opinion: समाजवादियों को कभी चिढ़ नहीं रही जनसंघ या बीजेपी से, समय-समय पर दोनों ने साथ चलाई है सरकार


ओमप्रकाश अश्क, पटनाः आरजेडी, जेडीयू और समाजवादी पार्टी जैसे दलों के लिए बीजेपी आज अछूत बन गयी है। लेकिन इतिहास गवाह है कि पूर्व में उनकी सबसे अधिक पटरी भाजपा या इसके पुराने अस्तित्व वाली पार्टी जनसंघ से ही बैठी है। लालू प्रसाद यादव बीजेपी के नाम पर बिदकते हैं। नीतीश कुमार को बीजेपी से खीझ होती है। लेकिन बिहार में इनका साथ दशकों पुराना है। लालू ने भी बीजेपी की मदद से सरकार चलायी है तो नीतीश ने तो साथ में सरकार चलाने का रिकार्ड ही बनाया है।

बिहार में पहली गैर कांग्रेसी सरकार जनसंघ के मदद से बनी थी

सन 1967 में पहली बार बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। उस वक्त जनसंघ के सहयोग से गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। आजादी के बाद बिहार में विधानसभा का यह चौथा चुनाव था। पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस लगातार लुढ़कती रही थी। तब विधानसभा की 318 सीटें हुआ करती थीं। कांग्रेस के खाते में 128 सीटें ही आयी थीं। दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) थी, जिसे 68 सीटें मिली थीं। जनसंघ को 26 सीटों पर जीत मिली थी। सीपीआई को 24 और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को 18 सीटें आयी थीं। निर्दलीयों के खाते में 33 और झारखंड पार्टी के खाते में 13 सीटें गयी थीं। बिहार में राजनीतिक अस्थिरता का दौर भी 1967 से ही शुरू हुआ। बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार की नींव पड़ी थी। जन क्रांति दल के नेता महामाया प्रसाद सीएम चुने गये। हालांकि सबसे अधिक सीटों वाली पार्टी संसोपा थी। संसोपा के नेता कर्पूरी ठाकुर को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। जनसंघ और संसोपा के प्रतिनिधि साथ-साथ बिहार में महामाया प्रसाद सिन्हा मंत्रिमंडल में शामिल थे।

कर्पूरी ठाकुर के मंत्रिमंडल में भी जनसंघ ने साथ दिया था

महामाया प्रसाद की सरकार 28 जनवरी 1968 को गिर गयी। 1969 में बिहार को फिर चुनाव का सामना करना पड़ा। सन 1969 में बिहार विधानसभा के मध्यावधि चुनाव में दोनों दल अलग-अलग लड़े, लेकिन सन 1970 में कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल में जनसंघ और संसोपा साथ-साथ शामिल थे। तब जनसंघ से समाजवादी दलों के नेताओं को इतनी चिढ़ नहीं थी, जितनी कि आज है। आज तो हालत यह है कि समाजवादी दलों ने बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने की जिद ही ठान ली है। बिहार में मौजूदा सरकार भी उस कांग्रेस के साथ चलाने में समाजवादियों को कोई परहेज नहीं, जिसे बाहर करने के लिए इसके नेता कभी कोई कसर नहीं छोड़ते थे।

जेपी के आंदोलन में भी समाजवादी दल और जनसंघ साथ थे

जयप्रकाश नारायण ने 1974 में कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जब छात्र आंदोलन को विस्तार दिया तो जनसंघ भी समाजवादी दलों के साथ ही था। इमरजेंसी के बाद 1977 में जब लोकसभा के चुनाव होने थे, उसके ठीक पहले कई राजनीतिक दलों ने विलय कर जनता पार्टी बनायी। जिन दलों का विलय हुआ, उनमें भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (संगठन), सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोक दल शामिल थे। 1977 के चुनाव के बाद केंद्र और बिहार सहित कई राज्यों में जनता पार्टी की सरकारें बनीं। जाहिर है कि नये रूप में पुराना जनसंघ भी साथ रहा। सन 1979 में बिहार में कर्पूरी ठाकुर की सरकार गिरा दी गई। राम सुंदर दास की सरकार बनी। यानी समाजवादियों की मुख्य धारा से जनसंघ अलग हो गया। समाजवादियों की मुख्य धारा के नेता कर्पूरी ठाकुर थे। उनके दल का नाम पड़ा जनता पार्टी (एस)। सन 1980 में पुराने जनसंघ के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी बना ली। सन 1989 में केंद्र की वी.पी.सिंह की सरकार को भाजपा और समाजवादियों (जो जनता दल में थे) और कम्युनिस्टों का समर्थन मिला। बीजेपी मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ थी। उसने आरक्षण विवाद के बाद वीपी सिंह की सरकार गिरा दी।

लालू ने सरकार बनाने के लिए बीजेपी का लिया था सपोर्ट

1990 में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ तो 324 सीटों वाली विधानसभा में जनता दल को 122 सीटें मिली थीं। सरकार बनाने के लिए 163 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी। कांग्रेस के पास 71 विधायक थे। बीजेपी के 39 विधायक जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। केंद्र में वीपी सिंह की सरकार की तर्ज पर बीजेपी ने बिहार में भी जनता दल को समर्थन देकर सरकार बनवा दी। लालू यादव बीजेपी के सहयोग से सीएम बने थे। आज भले ही समाजवादजियों को कांग्रेस का साथ सुहा रहा है, लेकिन इतिहास गवाह है कि समाजवादियों की कभी भी कांग्रेस से नहीं पटी।

समता पार्टी से लेकर जेडीयू तक नीतीश का साथ दिया बीजेपी ने

बीजेपी ने नीतीश का साथ शुरू से ही दिया था। सन 1996 में जार्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार के नेतृत्व में जब समता पार्टी का गठन हुआ, तभी से बीजेपी ने उनका साथ दिया। साथ इतना पुख्ता था कि हाल तक (नीतीश के किनारे होने तक) बीजेपी ने रिश्ता निभाया।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News