Opinion: रामचरित मानस पर रार और शालिग्राम के लिए जनसैलाब, स्वामी की पॉलिटिक्स पर पछताएंगे अखिलेश

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Opinion: रामचरित मानस पर रार और शालिग्राम के लिए जनसैलाब, स्वामी की पॉलिटिक्स पर पछताएंगे अखिलेश

Opinion: रामचरित मानस पर रार और शालिग्राम के लिए जनसैलाब, स्वामी की पॉलिटिक्स पर पछताएंगे अखिलेश


लखनऊ: पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में रामचरित मानस को लेकर राजनीति चरम पर है। समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान ने उत्तर प्रदेश में मामले की शुरुआत की। मामला तब और आगे बढ़ गया, जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने स्वामी के बयान का समर्थन कर दिया। उनका ‘शूद्र’ बयान आया तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने मोर्चा खोल दिया। वहीं भारतीय जनता पार्टी भी हिंदुत्व को आगे कर अखिलेश और समाजवादी पार्टी को घेर रही है। इस पूरे मामले में तमाम धार्मिक संगठनों के भी स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ बयानबाजी सामने आई है। मोट तौर देखें तो ये पूरा मामला सियासी लग रहा है। एक पक्ष हिंदुत्व का झंडाबरदार है तो जवाब में दूसरा पक्ष जाति की गोलबंदी के प्रयास में है। लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है। अब सवाल ये है कि जनता किसके साथ है? वह क्या सोच रही है?

राजनेता जहां एक तरफ जातिगत राजनीति के पासे फेंक रहे हैं, विरोधी गला काटने, जुबान खींचने, जूता मारने तक जैसी बयानबाजी कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर तलवारें खिंची हुई हैं। तो दूसरी तरफ नेपाल से लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश में अयोध्या तक अलग ही तस्वीर सामने आ रही है। हर जगह महिलाओं, बच्चों से लेकर वृद्ध लोग ट्रक पर लदी शालिग्राम शिलाओं को एक नजर देखने के लिए, छूकर आशीर्वाद लेने, पूजन करने-फूल न्यौछावर करने के लिए हाइवे पर घंटों खड़े दिखाई दिए।

दरअसल अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। यहां रामलला विराजेंगे। रामलला का विग्रह बनाने के लिए राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से शालिग्राम की शिलाओं की तलाश शुरू हुई। खोजबीन में नेपाल की गंडकी नदी में शालिग्राम की दो शिलाएं मिलीं, जो शुरुआती तौर पर रामलला के विग्रह के लिए उपयुक्त मानी गईं। हालांकि इस पर आखिरी निर्णय होना बाकी है। जैसे ही ये खबर आई कि रामलला के विग्रह के लिए शालिग्राम की शिलाओं की खोज पूरी हो गई है। अचानक से नेपाल की गंडकी नदी चर्चा का केंद्र बन गई। शालिग्राम पत्थर का हिंदू समाज में पौराणिक महत्व रहा है, लिहाजा नेपाल से शिलाओं को अयोध्या पहुंचाने का पूरा अभियान ही कौतुहल का विषय बन गया।

फिर तो लोगों का हुजूम ही उमड़ पड़ा। नेपाल से लेकर बिहार, फिर यूपी में कुशीनगर, गोरखपुर, बस्ती से लेकर अयोध्या तक लोग शिला के दर्शन के लिए सड़कों पर खड़े दिखाई दिए। गाजे-बाजे के साथ शिला का स्वागत, जगह-जगह पूजन से लेकर एक बार छू लेने की आस्था सड़कों पर दिखाई दी। इन दो शिलाओं से लदे ट्रक के साथ खुद नेपाल के जनकपुर के मेयर मनोज कुमार साह और नेपाल के पूर्व गृहमंत्री विमलेंद्र निधि भी अयोध्या पहुंचे हैं। लोगों में चर्चा रही कि ससुराल (जनकपुर) के सालिग्राम से रामलला का विग्रह बनेगा, मां सीता की प्रतिमा को भी इसी से बनाने की मांग हो रही है। अयोध्या में शिला पहुंची तो मंगल गीत से उनका स्वागत हुआ।

पूरी सालिग्राम शिला यात्रा में लोगों में आस्था का सैलाब दिखाई दिया। अब सवाल ये है कि राजनेता जो अपनी पूरी राजनीति ही जनता को केंद्र में रखकर करते हैं। क्या उन्हें जनता का भाव नहीं दिखता है? आखिर क्यों राजनीति प्रेम और आस्था में डूबी जनता में जाति खोजने में लगी है। और हम ये कैसे मान लें कि नेताओं को जनता की भावना का पता ही नहीं है? तो क्यों इसे वोट बैंक पॉलिटिक्स न कहा जाए?

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