Opinion: क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एकनाथ शिंदे को सीएम बने रहने का नैतिक अधिकार है?

6
Opinion: क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एकनाथ शिंदे को सीएम बने रहने का नैतिक अधिकार है?

Opinion: क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एकनाथ शिंदे को सीएम बने रहने का नैतिक अधिकार है?

मुंबई:क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को सत्ता में बने रहने का अधिकार है? क्या शिंदे ने जिस तरह से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी को हासिल किया, वह अवैध था? क्या दलीय नैतिकता नाम की भी कोई चीज होती है? सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Supreme Court) के बाद ऐसे कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या पांच जजों की संवैधानिक पीठ के फैसले के बाद शिंदे को सीएम बने रहने का नैतिक अधिकार है? जाहिर है जब देश की सबसे बड़ी अदालत कोई टिप्पणी करती है तो उसके मायने भी बड़े होते हैं। लिहाजा महाराष्ट्र के पिछले साल के सियासी संकट (Maharashtra Shiv Sena Dispute)पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो लकीर खींची, उसको समझना जरूरी है।

1. सिर्फ पार्टी को चीफ व्हिप बनाने का अधिकार
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने कहा कि चीफ व्हिप की नियुक्ति का अधिकार राजनीतिक पार्टी को है। यह अधिकार विधायक दल का नहीं हो सकता है। यानी भले ही एकनाथ शिंदे के साथ ज्यादा विधायक थे लेकिन इस सियासी संकट की स्थिति में उन्हें और शिवसेना के बागी विधायकों यह अधिकार नहीं था कि भरत गोगावले को चीफ व्हिप बनाया जाए। इस बात का जिक्र अभिषेक मनु सिंघवी ने भी फैसले के बाद किया। सिंघवी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने व्हिप गोगावले की नियुक्ति को गलत माना है और कहा है कि व्हिप सिर्फ राजनीतिक पार्टी की हो सकती है न कि विधायिका पार्टी की। अब स्पीकर को जल्द से जल्द अयोग्यता याचिका पर फैसला करना होगा।

2. एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता बनाना अवैध
संवैधानिक पीठ ने जो एक और अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि विधायक दल के नेता का चुनाव राजनीतिक पार्टी की ओर से होना चाहिए, विधायक दल की तरफ से नहीं। कोर्ट ने सुनील प्रभु को चीफ व्हिप और अजय चौधरी को विधायक दल के नेता के रूप में स्पीकर से मिली मान्यता को वैध ठहराया। कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह शिवसेना पार्टी की ओर से प्रस्तावित किया गया था लिहाजा यह वैध है। वहीं अदालत ने भरत गोगावले को चीफ व्हिप और एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता बनाने के फैसले को अवैध करार दिया, क्योंकि यह पार्टी की ओर से समर्थित नहीं था। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर एकनाथ शिंदे की विधायक दल नेता के रूप नियुक्ति ही अवैध है तो फिर वह राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा कैसे कर सकते थे?

3. लेजिस्लेटिव पार्टी पर पॉलिटिकल पार्टी की जीत
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच का फैसला एक तरीके से लेजिस्लेटिव पार्टी पर पॉलिटिकल पार्टी की जीत है। राजनीतिक पार्टी का फैसला ऐसे मामलों में क्यों अंतिम होना चाहिए, यह साफ करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अगर यह मान लिया जाए कि विधायक दल ही मुख्य सचेतक या चीफ व्हिप नियुक्त करेगा तो यह सदन के किसी सदस्य को जो गर्भनाल की तरह किसी राजनीतिक दल से जुड़ता है, उससे अलग करने की तरह होगा।’ यानी सुप्रीम कोर्ट ने विधायक दल की सर्वोच्चता की बजाए सदन के किसी सदस्य के लिए राजनीतिक दल की भावना को ऊपर रखा है। ऐसे में एकनाथ शिंदे के लिए यह टिप्पणी नसीहत की तरह है।

4. ऐसे तो पार्टी की जगह विधायकों का समूह हो जाएगा
फैसला लिखते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने एक और बड़ी बात कही। सीजेआई चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा, ‘इसका तो अर्थ यह होता है कि विधायक सिर्फ चुनाव के दौरान सेट होने के लिए अपने दल पर भरोसा करें। उनका प्रचार अभियान राजनीतिक दल की मजबूती-कमजोरी, वादों और नीतियों पर आधारित हो। वे चुनाव में पार्टी से अपने जुड़ाव के आधार पर अपील करें। लेकिन बाद में खुद को पार्टी से पूरी तरह अलग कर लें और एक विधायकों के समूह की तरह बर्ताव और काम करने लगें। हमारे संविधान में ऐसी शासन व्यवस्था की कल्पना नहीं की गई थी।’ यानी सीजेआई ने कहीं न कहीं दल-बदल करने वाले सभी विधायकों के लिए एक लकीर खींची है कि एक झटके में आप पार्टी से पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं।

5. आर्टिकल-212 की दुहाई देने पर कोर्ट की फटकार
एकनाथ शिंदे खेमे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में एक और झटका दिया। बेंच ने कहा, ‘शिवसेना के चीफ व्हिप के रूप में भरत गोगावले की नियुक्ति को अवैध इसलि है क्योंकि शिवसेना विधायक दल के एक धड़े ने यह प्रस्ताव पास किया। जबकि इस फैसले से पहले यह सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं की गई कि यह राजनीतिक पार्टी का फैसला है।’ सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने संविधान के आर्टिकल-212 की शिंदे खेमे की दलील को ठुकरा दिया। संविधान का अनुच्छेद 212 संवैधानिक अदालतों को स्पीकर के फैसलों में कथित अनियमित प्रक्रिया की जांच करने से रोकता है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस तरह की दलील या व्याख्या संवैधानिक लोकतंत्र में विधायी प्रक्रियाओं की अहमियत का पूरी तरह से अनादर है।

सुप्रीम कोर्ट के सुप्रीम सवालों ने महाराष्ट्र ही नहीं पूरे देश के लिए एक नई इबारत लिखी है। क्या यह बेहतर नहीं होता कि एकनाथ शिंदे कोर्ट के फैसले के सामने माथा नवाते और कोई साहसी निर्णय लेते? अगर एकनाथ शिंदे के साथ असली शिवसेना है, जिसका कि वह दावा कर रहे हैं तो क्यों नहीं इस्तीफा देकर एक और चुनाव के लिए ताल ठोक देते हैं? क्यों एकनाथ शिंदे को कहना पड़ता है कि उद्धव ठाकरे को नैतिकता की बातें शोभा नहीं देती हैं? मॉरल ग्राउंड की बात शिंदे कैसे कर सकते हैं, जब सुप्रीम कोर्ट ने सीधे-सीधे शिंदे की शिवसेना विधायक दल के नेता के रूप में नियुक्ति ही खारिज कर दी। मूल सवाल फिर खड़ा होता है- क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हुई फजीहत के बाद एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बने रहने का नैतिक अधिकार है?

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News