OPINION : अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई से राहुल गांधी की एंट्री होगी, तमाशा अभी शुरू हुआ है

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OPINION : अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई से राहुल गांधी की एंट्री होगी, तमाशा अभी शुरू हुआ है

OPINION : अशोक गहलोत और सचिन पायलट की लड़ाई से राहुल गांधी की एंट्री होगी, तमाशा अभी शुरू हुआ है

नई दिल्ली : गांधी परिवार कभी जिम्मेदारियों से नहीं भागा। जब भी जरूरत हुई कांग्रेस पार्टी के हित में अध्यक्ष पद संभाल पार्टी को टूटने से बचाया या टूटने के बाद बनी दूसरी कांग्रेस को असली बनाया। पहली बार 1969 में जब निजलिंगप्पा ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निष्कासित कर दिया। तब इंदिरा ने कांग्रेस (आर) बना लिया और 1971 की जीत के बाद कांग्रेस (ओ) खत्म हो गई। दूसरी बार 1978 में जब इमरजेंसी और संजय गांधी के हस्तक्षेप से आहत होकर पार्टी प्रेसिडेंट कासु ब्रह्मानंद रेड्डी ने इंदिरा को बाहर का रास्ता दिखाया। इंदिरा ने कांग्रेस (आई) बनाई और बाद में फिर वही हुआ। दूसरा धड़ा धड़ाम से गिरा और वापस आ गया। ये तो विद्रोह वाली स्थितियां रहीं। शांतिकाल में जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री भी रहीं और पार्टी प्रेसिडेंट भी। गांधी परिवार के अलावा पट्टाभि सितारमैया (1948-49), पुरुषोत्तम दास टंडन (1950), यूएन धेबर (1955-59), नीलम संजीव रेड्डी (1960-63), के कामराज (1964-67(, एस निजलिंगप्पा (1968-69), जगजीवन राम (1970-71), शंकर दयाल शर्मा (1972-74), देवकांत बरूआ (1975-77), पीवी नरसिंह राव (1992-94) और सीताराम केसरी (1996-98) भी पार्टी अध्यक्ष रहे लेकिन नरसिंह राव को छोड़ बाकियों के समय बतौर पीएम गांधी परिवार की पकड़ मजबूत रही। नरसिंह राव और केसरी के साथ क्या हुआ ये सबको पता है। ऐसी ही खतरनाक मोड़ पर आज पार्टी आ खड़ी हुई है और समय की पुकार समझ शायद राहुल गांधी अपना फैसला बदल दें। इसलिए कि गांधी परिवार कभी भी जिम्मेदारी से दूर भागी नहीं है। अभी जब राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर हैं, कांग्रेस पार्टी राजस्थान में टूट की कगार पर है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच आर-पार की लड़ाई ठन गई है। पर सूत्रधार कौन है? क्या गांधी परिवार ही है?

ये स्क्रिप्ट के हिसाब से है या नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन, कुछ टाइमलाइन से क्लियर हो सकता है। सात सितंबर को राहुल गांधी ने 3500 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा का आगाज किया। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की ये यात्रा पांच महीने चलेगी। मतलब ये तय था कि इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। 30 सितंबर तक नामांकन दाखिल करने की तारीख है। 17 अक्टूबर को चुनाव होने हैं और 19 को रिजल्ट आ जाएगा। भाजपा के खिलाफ जब इतनी बड़ी यात्रा का आगाज राहुल ने किया तो यही माना गया कि वो राष्ट्रीय नेता के तौर पर अपनी स्थिति मजबूत करेंगे जिससे कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की राह भी आसान हो जाएगी।

अशोक गहलोत और सचिन पायलट (फाइल फोटो)

इस बीच राजस्थान से लेकर बिहार और पंजाब से लेकर तेलंगाना तक की राज्य इकाइयों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर राहुल को अध्यक्ष बनाने की मांग रखी। ये सिलसिला 21 सितंबर तक जारी रहा। इस बीच नौ सितंबर को राहुल गांधी से जब सीधा सवाल किया गया कि वो अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंग या नहीं तो जवाब मिला – मैं अपने बारे में क्लियर हूं, मेरे मन में कोई कन्फ्यूजन नहीं है। भारत जोड़ो यात्रा से कोई विरोधाभास पैदा नहीं होता। अगर मैं चुनाव नहीं लड़ता हूं तो आप सवाल पूछते हैं कि क्यों नहीं लड़ें। मैं अपना फैसला कर चुका हूं। फिर 23 सितंबर को अशोक गहलोत उनसे मिलने पहुंचे। मिलने के बाद अशोक गहलोत ने बताया कि राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि गांधी परिवार से कोई पार्टी प्रेसिडेंट नहीं बनेगा। इसलिए मैं पर्चा दाखिल करूंगा। इतनी साफगोई से राहुल गांधी खुद भी सार्वजनिक मंच के जरिए ऐलान कर सकते थे। लेकिन ये बात निकल कर आई अशोक गहलोत के मुंह से।

राहुल को रेस मेें लाने की तैयारी
इसके अगले दिन यानी 24 सितंबर को कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को राजस्थान भेजने का फैसला सुनाया। तय हुआ कि 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होगी। अब तक ढ़ाई साल में सचिन पायलट विधायक दल की बैठक में हिस्सा नहीं ले पाए थे क्योंकि ये मुख्यमंत्री आवास पर होती थी और संयोगवश उस दिन पायलट जयपुर से बाहर होते थे। लेकिन 25 सितंबर के लिए वो पूरी तरह तैयार थे। तय हुआ कि शाम सात बजे बैठक होगी। पर भीतर ही भीतर 2020 वाली बगावत का दृश्य हावी होने लगा। पूरे प्रकरण से चार गंभीर सवाल पैदा होते हैं –

1. अशोक गहलोत तो चुनाव लड़ने जा रहे हैं। शशि थरूर के अलावा भी नेताओं ने उम्मीदवारी का पर्चा लिया है। चुनाव 17 सितंबर को है और परिणाम 19 को। फिर अभी राजस्थान का नया सीएम तय करने की क्या जल्दी है?

2. क्या अशोक गहलोत गांधी परिवार की तरफ से कैंडिडेट हैं और पार्टी को भीतर ही भीतर ये संदेश दे दिया गया है कि चुनाव में किसे वोट करना है?

3.विधायक दल की बैठक से पहले ही अशोक गहलोत ने कैसे बता दिया कि इसमें एक लाइन का प्रस्ताव पारित होगा और सोनिया गांधी को अंतिम फैसला लेने के लिए अधिकृत किया जाएगा।

4.विधायक दल की बैठक पांच बजे थी फिर उससे पहले शांति धारीवाल के बंगला नंबर चार पर गहलोत समर्थकों की बैठक किसने बुलाई।

आखिरकार विधायक दल की बैठक हो ही नहीं पाई। मल्लिकार्जुन खड़गे और माकन को वापस दिल्ली बुलाया गया है। कांग्रेस पार्टी की किरकिरी हो गई। गहलोत समर्थक लगभग 70 विधायकों ने इस्तीफे सौंप दिए हैं। वे गहलोत या उनके समर्थक को ही नया सीएम देखना चाहते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक सचिन पायलट और अशोग गहलोत को भी दिल्ली बुलाया गया है। मतलब सीन जुलाई, 2020 वाला है जब पायलट की बगावत को शांत करने के लिए गांधी परिवार ने दिल्ली में बैठक बुलाई थी।

कुल मिलाकर कांग्रेस पार्टी के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है। राजस्थान में अगले साल चुनाव है। पंजाब में इससे पहले गुटबाजी के कारण दुर्गति हो चुकी है। उधर छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव भी सचिन पायलट के रास्ते पर हैं। कर्नाटक, बिहार, बंगाल में भी पार्टी बिखर रही है। पूर्वोत्तर हाथ से खिसक चुका है। 2024 की लड़ाई सिर पर है। नीतीश कुमार-लालू यादव की मुलाकात सोनिया गांधी से हो चुकी है। विषम परिस्थिति है। पार्टी में भी और देश के सामने भी। राहुल गांधी डटकर भाजपा का मुकाबला कर रहे हैं। ऐसा कांग्रेस मानती है। फिर रास्ता क्या बचता है? अभी भी नॉमिनेशन में चार दिन बचे हैं। राहुल गांधी पर्चा भर सकते हैं या पार्टी में संकट बढ़ता गया तो चुनाव से ठीक पहले सारे उम्मीदवार बैकआउट भी कर सकते हैं और राहुल का रास्ता साफ हो सकता है। अब ये नहीं पता कि रास्ता बनाया जा रहा है या परिस्थितियां उस ओर धकेल रही हैं।

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