Opinion: मैंने थिएटर में The Kerala Story देखी, उन दो घंटों में माहौल देख सच में ‘डर’ लगने लगा!

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Opinion: मैंने थिएटर में The Kerala Story देखी, उन दो घंटों में माहौल देख सच में ‘डर’ लगने लगा!

Opinion: मैंने थिएटर में The Kerala Story देखी, उन दो घंटों में माहौल देख सच में ‘डर’ लगने लगा!

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। सुदीप्‍तो सेन के डायरेक्‍शन में बनी फिल्‍म ‘द केरल स्टोरी’ के साथ भी ऐसा ही है। फिल्म पर बेशक कितना ही विवाद हो रहा हो। लाख दावे और बातें हो रही हों, लेकिन एक सच यह भी है कि अगर कहीं धुआं उठा है, तो आग जरूर लगी होगी। इस फिल्म ने पांच दिनों में बॉक्‍स ऑफिस पर 54.25 करोड़ रुपये कमा लिए हैं। वीकडेज में भी हर दिन फिल्‍म की कमाई लगातर बढ़ रही है। कमाई और कलेक्‍शन की बात को कुछ वक्‍त के लिए दूर कर दें, तो एक फिल्‍म के तौर पर इसमें कुछ खासियत भी हैं और खामियां भी। सबसे पहले तो मेकर्स की दाद देनी चाहिए, जिन्होंने केरल के इस बेहद संवेदनशील मुद्दे को पर्दे पर दिखाने का जोख‍िम उठाया। लेकिन ऐसे गंभीर विषय पर फिल्‍म बनाने से पहले वह फिल्‍ममेकिंग के उस ककहरे को भूल गए, जो यह बताती है कि यह मीडियम कितना प्रभावशाली है। कैसे यह दो-तीन घंटों तक सिनेमाघर में बैठे हर दर्शक को एक अलग दुनिया में लेकर चली जाती है और पर्दे पर The End के बाद उनके दिमाग पर भी छाप छोड़ जाती है।

जाहिर है, धर्म परिवर्तन से लेकर महिलाओं संग ज्‍यादती और उन्‍हें आतंकी बनाए जाने की कहानी कहते वक्‍त बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत है। पर्दे पर बर्बरता और व‍िचलित करने वाले सीन्‍स किसी भी इंसान को भीतर तक हिला देते हैं। खासकर तब जब यह किसी महिला के साथ हो रहा हो। मैं खुद एक लड़की हूं। तमाम शोर और हाय-तौबा के बीच मैंने भी थ‍िएटर जाकर यह फिल्‍म देखी। पर्दे पर 2 घंटे 18 मिनट तक मैं भी उस दुनिया में थी, जो सुदीप्‍तो सेन और प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह ने बुनी है। पर्दे पर दर्द और डर की एक कहानी फिल्‍ममेकर बयान कर रहे थे, लेकिन इन दो घंटों में स‍िनेमाघर के भीतर सेलुलाइड की रोशनी में जो माहौल मैंने महसूस किया, वह उससे कहीं ज्‍यादा खौफनाक लगा।

200 दर्शकों की भीड़, 20-25 मिनट में बदलने लगा माहौल

The Kerala Story फिल्‍म शुरू होने के करीब 20-25 मिनट के बाद करीब 200 लोगों की हाउसफुल भीड़ में एक हुड़दंग जैसी आहट आने लगी थी। यह दुर्भाग्‍य ही है कि पर्दे पर जिस नफरत को देख दर्शकों में तिरस्‍कार का भाव आना चाहिए था, उसे देखकर वह खुद उसी रंग में रंगते नजर आ रहे थे। बर्बरता के सीन्‍स पर शोर और एक धर्म विशेष के लिए हूटिंग ऐसी कि किसी भी आम इंसान की कंपकपी छूट जाए। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि पर्दे पर ‘देश की बेटियों’ पर अत्‍याचार की जो कहानी दिख रही थी, उसे देखते हुए स‍िनेमाघर में ऐसा माहौल बना कि भीड़ में बैठी मुझ जैसी कई बेटियां स‍िहर उठीं। डर लगने लगा कि कहीं दर्शकों की यह भीड़ उपद्रवियों का झुंड न बन जाए।

The Kerala Story Critic Review: क्रिटिक्स को कैसी लगी ‘द केरल स्टोरी’ की कहानी?

यह अनुभव कुछ ऐसा था कि शुक्रवार शाम को फिल्‍म देखने के तीन दिन बाद मैं इस पर कुछ लिखने की हिम्मत जुटा पाई हूं। ‘द केरल स्टोरी’ की रिलीज से पहले ‘नवभारत टाइम्स’ पर फिल्‍म और इससे जुड़े तथ्‍यों पर कई डिटेल कॉपी आपने पढ़ी होगी। मैंने खुद इसके फैक्ट्स को खंगाला भी। कैसे 32000 लड़कियों के लापता होने का सॉलिड प्रूफ कहीं नहीं मिलता है। फिर आगे चलकर केरल हाई कोर्ट ने भी मेकर्स से कहा कि वह इस दावे को हटाएं।

मेकर्स की तारीफ तो बनती है, हर जिंदगी जरूरी है

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‘द केरल स्टोरी’ देखने से पहले तक मेरे दिमाग में सिर्फ ये बात चल रही थी कि कुछ भी हो मेकर्स की तारीफ तो बनती है, क्योंकि उन्होंने इस जरूरी और संवेदनशील मुद्दे को उठाया है। बेशक ये दर्दनाक कहानी 32000 लड़कियों की ना हो मगर 3 लड़कियों की तो है, जैसा कि मेकर्स दावा कर रहे हैं। दुनिया की हर एक इंसान की सुरक्षा और जिंदगी बहुत मायने रखती है। 32000 हो या सिर्फ 3 लड़कियां… हर जिंदगी जरूरी है।

अफगानिस्‍तान की जेल और ‘द केरल स्‍टोरी’ की कहानी

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यही सोचते हुए, मैंने ‘द केरल स्टोरी’ को चुना। ये कहानी शुरू हुई अफगानिस्तान की जेल में बंद एक लड़की से। जहां ‘शालिनी उन्नीकृष्णन’ के रोल में अदा शर्मा अपनी दर्दनाक कहानी बयां करती हैं। वह बेशक 32000 का आंकड़ा नहीं देतीं, लेकिन कहती हैं कि उनके जैसी यहां हजारों लड़कियां हैं, जिनका ब्रेनवॉश करके सीरिया और यमन भेजा जाता है। उन्हें प्रेग्नेंट किया जाता है। तमाम यातनाएं दी जाती हैं और आतंकवादी संगठन ISIS में धकेल दिया जाता है।

The Kerala Story Public Review: फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ देख क्या बोली पब्लिक

…और पीछे बैठे तीन-चार लड़के चीखने लगे

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ये देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि दूसरे अपराधों की तरह ये भी गंभीर मुद्दा है, जिस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। मगर जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, मेरा जुनून घबराहट में बदलता जाता है। धीरे-धीरे ऐसा लगने लगता है, जैसे एक खास समुदाय को साफ-साफ टारगेट किया जा रहा है। तभी पीछे बैठे तीन-चार लड़कों का एक ग्रुप चीखकर कहता है, ‘अरे भैया क्या मुसलमानों को मरवाओगे?’ ये सुनकर मेरी घबराहट डर में बदल जाती है कि कहीं थिएटर में अभी कुछ बवाल न हो जाए।

भगवा बिकिनी गलत तो बुर्का जलाना सही कैसे?

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तभी मेरे दिमाग में ख्याल आता है ‘पठान’ का। शाहरुख खान की ‘पठान’ में ‘बेशरम रंग’ गाने पर जमकर विवाद हुआ था। तब भगवा रंग की बिकिनी देखकर कुछ लोगों की भावनाएं आहत हो गई थी। मगर अब, जब ‘द केरल स्टोरी’ में बुर्का जलाया जाता है तो…? क्या इस सीन से किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंच सकती?
navbharat times -The Kerala Story से हटाना होगा ‘32000 महिलाओं’ वाला टीजर, हाई कोर्ट ने फिल्‍म पर बैन लगाने से किया इनकारnavbharat times -The Kerala Story: लव जिहाद कर 32000 लड़कियों को बनाया ISIS आंतकी? जानिए, कितनी सच्ची है ‘द केरल स्टोरी’ की कहानी

…और मेरा दिल जोर-जोर से धकड़ने लगा

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फिल्म के आखिर में अदा शर्मा का एक डायलॉग है, जहां वह कहती हैं, ‘हां, मैं एक हिंदू हूं और मेरा नाम शालिनी उन्नीकृष्णन है।’ ये सुनकर सिनेमाहॉल के किनारे में बैठे लोग जोर-जोर से तालियां बजाने लगे। मेरा दिल धक-धक करने लगा कि ब्रेनवॉश तो कहीं न कहीं दर्शकों का भी हो रहा है। क्या इस विषय पर फिल्म बनाने के लिए एक खास समुदाय को टारगेट करना जरूरी था?

दावे सच्‍चे तो कोर्ट में क्‍यों नहीं दिए सबूत, क्‍यों कहा ये फिक्‍शन है?

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वैसे तो बीते कुछ साल में देश में छोटी-छोटी बातों पर लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं। लेकिन क्या इस फिल्म के जरिए अब लोगों की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंची? क्या इस कदर मार-काट, खून-खराबा वाले दृश्य लोगों को विचलित नहीं करते? हजारों-हजार के आंकड़े देकर मेकर्स ने जो सनसनी मचाई… यदि उनके पास इस दावे के पुख्‍ता सुबूत हैं तो फिर कोर्ट में पेश क्‍यों नहीं किया? अगर वो अपनी बातों, अपनी र‍िसर्च को लेकर इतने ही सच्‍चे हैं तो फिर कोर्ट में उन्‍हें यह क्‍यों कहना पड़ा कि ये ‘फ‍िक्‍शन’ यानी काल्‍पनिक फिल्‍म है? डिस्‍क्‍लेमर क्‍यों बदला? अरे भैया! मेरा कहने का मतलब ये है कि इस सेंसटिव मुद्दे को उतनी ही गंभीरता और शांतिप्रिय होकर बनाना था न, जिससे बात की गंभीरता भी समझ आए और किसी को ठेस भी न पहुंचे।

क्‍या भूल गए हैं ‘वसुधैव कुटुम्‍बकम’ और ‘सत्‍यमेव जयते’?

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हम उस देश में रहते हैं जहां बचपन से हमें ‘वसुधैव कुटुम्‍बकम’ और ‘सत्‍यमेव जयते’ की सीख दी जाती है। अगर आपकी बातों में सच्‍चाई है तो आपको कोई मना नहीं कर रहा कि आप स्‍याह सच्चाई से पर्दा न उठाए, मगर देश में रह रहे करोड़ों लोगों की भावनाओं की भी तो कद्र कीजिए।

डिस्‍क्‍लेमर- इस लेख में व्‍यक्‍त किए गए विचार लेखक के निजी हैं।