Operation Amritpal: क्या होता है बंदी प्रत्यक्षीकरण, जिसे लेकर हाईकोर्ट में दाखिल हुई याचिका
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को हैबियस कॉपर्स कहा जाता है। इस याचिका का उपयोग उस समय किया जाता है जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से कस्टडी में रखा जाए या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसा कार्य किया जाना जो अपहरण के दायरे में आता हो। इस याचिका का उपयोग हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में किया जाता है। इस याचिका के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को कोर्ट के सामने पेश करने और उसे हिरासत में रखने की वजह की मांग की जा सकती है।
अदालत में देना होता है शपथ पत्र
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाने के लिए व्यक्ति को एक शपथ पत्र अदालत में देना होता है। इसमें उन सारी घटनाओं का जिक्र होता है, जिनके आधार पर याचिकाकर्ता अपने पीड़ित होने के बारे में और दूसरे पक्ष द्वारा उसके अधिकारों के हनन किए जाने संबंधी आशंकाएं बताता है। याचिका लगने के एक निश्चित समय अंतराल के भीतर कोर्ट पुलिस को निर्देश देती है कि वह कस्टडी में लिए गए व्यक्ति के बारे में जानकारी दे। यह बताए कि केस में उसने किसे आरोपी या प्रतिवादी बनाया।
कौन लगा सकता है ये याचिका
यह याचिका किसी भी व्यक्ति द्वारा लगाई जा सकती है। अगर पक्ष बेहद सामान्य है और उसके पास वकील करने की सुविधा नहीं है तो वह स्वयं या उससे जुड़ा कोई भी व्यक्ति हाईकोर्ट में इस याचिका को लगा सकता है। इस याचिका में प्रतिवादी के तौर पर राज्य गृह मंत्रालय होता है। इसलिए उसकी ओर से किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति होम सेक्रेटरी, चीफ सेक्रेटरी, एसपी आदि को इसके लिए जवाबदेह बनाया जा सकता है।
भारतीय संविधान में क्या है इसके मायने
भरतीय संविधान पूर्णरूप से अंग्रेजों की व्यवस्था से प्रेरित होकर बनाया गया है। इसके ज्यादातर नियम उन्हीं के यहां से आयातित हैं। दरअसल हैबियस कॉपर्स लैटिन शब्द है कानूनी तौर पर इसका इस्तेमाल किसी ऐसे व्यक्ति की रिहाई के लिए किया जाता है, जिसे गैर-कानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया हो या गिरफ्तार किया गया हो। विश्व में प्रथम सत्ता ग्रीस (यूनान) की मानी जाती है। उसके बाद सामूहिक तौर पर रोम का साम्राज्य माना जाता है। यही वजह है कि विश्व में सत्ता स्थापित करने वाले अंग्रेजों के ज्यादातर नियम लैटिन से संबंधित हैं।