One side Burning pyres other side students class the school of knowledge every day in Muktidham of Bihar Muzaffarpur – एक तरफ जलती चिताएं, दूसरी ओर बच्चों की क्लास; बिहार के इस मुक्तिधाम रोज सजती है ज्ञान की पाठशाला, बिहार न्यूज

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One side Burning pyres other side students class the school of knowledge every day in Muktidham of Bihar Muzaffarpur – एक तरफ जलती चिताएं, दूसरी ओर बच्चों की क्लास; बिहार के इस मुक्तिधाम रोज सजती है ज्ञान की पाठशाला, बिहार न्यूज

One side Burning pyres other side students class the school of knowledge every day in Muktidham of Bihar Muzaffarpur – एक तरफ जलती चिताएं, दूसरी ओर बच्चों की क्लास; बिहार के इस मुक्तिधाम रोज सजती है ज्ञान की पाठशाला, बिहार न्यूज

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एक तरफ जलती चिताएं और दूसरी तरफ शिक्षा की जगती अलख, जहां हाथों में किताबें लिए बच्चों की आवाज में गूंजते हैं संस्कृत के श्लोक। सुनने में यह फिल्म की स्क्रिप्ट जैसा लगता है। लेकिन बिहार में ऐसा होता है। मुजफ्फरपुर के सिकन्दरपुर स्थित इस मुक्तिधाम में रोज बच्चों की पाठशाला सजती है जहां अब संस्कृत की भी पढ़ाई कराई जा रही है।

कचरा बीनने से लेकर सफाई करने वालों के बच्चों के लिए यह अनोखी पहल की गई है। पहले यहां बच्चों को अक्षर ज्ञान दिया गया और अब तीन आचार्य इन्हें संस्कृत-संस्कार का ज्ञान देंगे। इसकी शुरूआत कर दी गई है। 30 नवम्बर को आचार्य ने इस कार्यक्रम की शुरूआत की। शुक्रवार से बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया गया। 200 से अधिक बच्चे मुक्तिधाम में लगने वाली इस अनूठी पाठशाला में शामिल हो रहे हैं।

बच्चे संस्कृत में करेंगे संवाद, होगा संस्कारों का विकास 

पाठशाला के संस्थापक संचालक सुमित कुमार ने कहा कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति जब तक संस्कृत भाषा से परिचित नहीं होगा तब तक वह अपनी संस्कृति और सभ्यता के मूल तत्वों से परिचित नहीं हो सकता। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्कृत शिविर का आयोजन किया गया है। आरंभिक ज्ञान, वस्तु नाम परिचय, अपना परिचय, गीत, क्रीड़ा शास्त्रत्तें से प्रश्नावली, संस्कृत संभाषण कराया जा रहा है। प्रो. दया शंकर तिवारी, अंकुश कुमार झा ने कहा कि भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत भाषा के संरक्षण तथा प्रचार प्रसार के लिए अपनी भूमिका मात्र निभा रहे हैं। आचार्य अखिलेश कुमार शास्त्री ने कहा कि बच्चों के लिए सात उपविषय निर्धारित किए गए हैं।

इस तरह हुई इन बच्चों को पढ़ाने की शुरूआत

सुमित बताते हैं कि मैं अपने मित्र के परिजन के पार्थिव शरीर लेकर श्मशान घाट में आया तो कई बच्चे पार्थिव शरीर से फल पैसा या अन्य सामान उठाने के लिए दौड़ पड़े। बात की तो बच्चों ने कहा कि यहीं रहते हैं और यही काम करते हैं। फिर संकल्प लिया कि अब इनको पढ़ाना है और इन्हें कुछ बनाना है। पहले 5-10 बच्चे थे, अब लगभग 250 बच्चे जुड़ गए हैं। कई दोस्त भी साथ देते हैं पढ़ाने में। शाम 4 बजे से सात बजे तक इन्हें पढ़ाते हैं। कई बच्चों का पास के स्कूल में नामांकन भी कराया है। समाज के से बच्चे अगर पढ़ लिखकर शिक्षित और संस्कारित हो जाते हैं तो ये न तो चोरी करेंगे, न किसी का सामान छीनेंगे। समाज के लोग भी अब मदद कर रहे हैं।

 

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