Om Prakash Rajbhar: विरासत में प्रॉपर्टी पाने वाले उसे बेचकर खा जाते हैं, राजभर का अखिलेश यादव पर बड़ा हमला

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Om Prakash Rajbhar: विरासत में प्रॉपर्टी पाने वाले उसे बेचकर खा जाते हैं, राजभर का अखिलेश यादव पर बड़ा हमला

लखनऊ: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के मुखिया ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के रिजल्ट के बाद से ही सक्रियता की नसीहत दे रहे हैं। आजमगढ़-रामपुर उप चुनाव (Azamgarh and Rampur Lok Sabha By Election) में हार के बाद उनके सुर और तल्ख हैं। राजभर का कहना है कि बहुत बार विरासत में प्रॉपर्टी पाने वाले उसे बेचकर खा जाते हैं। सपा मुखिया को एसी कमरों से निकलकर जमीन पर जाने की जरूरत है। तेवर दिखाने के बाद राजभर का दावा है कि वे सपा में बने रहेंगे और अखिलेश यादव को समझाते रहेंगे। एनबीटी के साथ विशेष बातचीत में सुभासपा प्रमुख ने कई अहम मुद्दों पर बात की है।

सवाल : आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव के नतीजों के क्या संदेश हैं?
जवाब : तीन संदेश साफ हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने 2022 के चुनाव की गलती से सीख नहीं ली। तब भी आखिरी वक्त में प्रत्याशी दिए थे। अब भी वही गलती दोहराई, आखिरी दिन नामांकन हुआ। आपने जिस दिन इस्तीफा दिया उसी दिन उम्मीदवार घोषित कर देते। अंतिम दिन तो विदाई ही होती है। दूसरे प्रचार के लिए नहीं निकले, वरना 8500 का अंतर नहीं होता। हमने आजमगढ़ में 12 दिन सभा की। ये एसी में बैठकर रसमलाई काटते रहे। तीसरा प्रशासन ने मुस्लिम-यादव बहुल बूथों पर सपा नेता को गिरफ्तार कर लिया। जहां, 900 वोट थे वहां 6 वोट पड़े। सरकार के इशारे पर प्रशासन ने चुनाव को प्रभावित किया।

सवाल : सपा मुख्य विपक्षी दल है, 111 विधायक है। गठबंधन में 125 विधायक हैं। प्रशासन इतनी धांधली कर रहा था तो इसके खिलाफ तो नेतृत्व को सड़क पर होना चाहिए था?
जवाब : आजमगढ़ में धर्मेंद्र यादव ने काउंटिंग शुरू होते सवाल उठाया। वह जमीन पर लड़ रहे थे, पार्टी का नेता एसी में बैठकर मजा ले रहा था। जो नेता प्रचार करने नहीं निकल रहा है, वह धरना देने जाएगा? अखिलेश संगठन को साथ लेकर चलने की आदत डालें। घर बैठकर राजनीति कांग्रेस ने शुरू की, बर्बाद हो गई। चार बार सत्ता में रहीं मायावती के पास एक विधायक बचा है। ये तो ठीक हुआ कि विधानसभा चुनाव में हम लोग सपा के साथ आए तो ये यहां तक भी पहुंच गए। अखिलेश माने या न माने लेकिन अपनी गलती से वह सरकार में नहीं आए।

सवाल : अखिलेश के पार्टी संभालने के बाद सपा हर चुनाव हारी है। उनके फैसले फेल रहे। क्या इसे आप राजनीतिक परिपक्वता की कमी मानते हैं?
जवाब : विरासत में राजनीति मिली है न? गांव में जिसको नवासा मिल जाता है वह पूरे गांव का मालिक बनकर रहना चाहता है, भले बर्बाद हो जाए। जो प्रापर्टी मिलती है उसे ही बेच खा जाता है। ठीक है, आप मत बाहर निकलिए। धर्मेंद्र यादव आपके ही घर-परिवार के हैं। उनको ही प्रदेश-संगठन की जिम्मेदारी देकर सक्रिय कर दीजिए। मौर्या, राजभर, चौहान, बिंद, पाल, प्रजापति, गौड़ को निकालेंगे नहीं तो एसी में बैठकर राजनीति तो नहीं हो पाएगी। जनता वोट देना चाहती है, लेकिन, ये लेना ही नहीं चाहते हैं।

सवाल : आपको क्या लगता है कि सपा अध्यक्ष को क्या कदम उठाने चाहिए?
जवाब : 38 फीसदी अति-पिछड़ा वोट ऐसा है जो सरकार बनाता-बिगाड़ता है। अखिलेश इससे बहुत दूर हैं। मुलायम, मायावती, कांग्रेस उनके नजदीक थी तो सत्ता में आई। भाजपा की आज उनके बल पर सरकार है। आप कश्यप, नाई, गोंड, पाल, प्रजापति, मौर्य, राजभर को टिकट नहीं देंगे। कुशवाहा को फ्रंट पर खड़ा नहीं करेंगे तो कैसे चलेगा? हर जातियां अपना नेता खोज रही हैं। यादव जाकर राजभर को नहीं समझा सकता।

मुस्लिम मौर्य को नहीं समझा सकता। मुलायम इसको समझते थे। 2012 का चुनाव मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में हुआ था न कि अखिलेश के। इन वोटों के बल पर ही अखिलेश सीएम बने थे। आज अति पिछड़ी जातियों का कोई नेतृत्व नहीं है। जब उनके बीच में कोई जा ही नहीं रहा है तो वह अपने हिसाब से फैसला ले रहा हैं।

सवाल : मौजूदा हालात में अखिलेश-मायावती सहित विपक्ष को एक होने की जरूरत है? आप कह रहे थे कि आप बसपा प्रमुख से मिलकर बात करेंगे?
जवाब : आजमगढ़ का नतीजा सारी कहानी कह रहा है। सपा-बसपा साथ होते तो भाजपा नहीं जीतती। मायावती जी भी दलित-पिछड़ों, वंचितों के हित की बात करती हैं। अखिलेश जी भी वही बात कर रहे हैं। तो अलग-अलग क्यों लड़ रहे हैं? आप समाज को धोखा दे रहे हैं या उन्हें गुलाम या बेवकूफ समझ रहे हैं? अब वही लोग दोनों को सबक सिखा रहे हैं।

सवाल : इतने तेवर व नसीहतों के साथ आप सपा के साथ रह पाएंगे?
जवाब : हम सपा के साथ तब तक रहेंगे, जब तक अखिलेश यादव कह नहीं देते कि आप चले जाइए। हम सही बात बोलते हैं। जहां रहते हैं, मन से रहते हैं।

सवाल : भाजपा से आपके नजदीकी की चर्चा है तो क्या दोबारा भाजपा के साथ जाएंगे?
जवाब : हमारी तो मायावती जी से लेकर कांग्रेस तक के नेताओं से मुलाकात होती रहती है। मुलायम-अखिलेश, योगी-मोदी को गुलदस्ता देंगे तो उसकी चर्चा नहीं होगी। मायावती जी किसी से मिलेंगी तो बात नहीं होगी। राजभर किसी से मिलेंगे तो वह मुद्दा बन जाएगा।

सवाल : आप भाजपा के पुराने साथी रह चुके हैं, इसलिए, नजरें ज्यादा हैं?
जवाब : हम 14 साल बसपा में भी तो रहे हैं। सारी पार्टियों से तो अच्छी बसपा है। जो शासन मायावती ने पांच साल कर दिया वह कोई नहीं कर सकता। या तो मैं कल्याण सिंह को मानता हूं या मायावती के शासन को।

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