Noida Supertech Twin Towers: कौन है ट्विन टावर का बिल्डर, दोनों टाॅवरों को गिराने की क्यों आई नौबत, क्या हुआ खेल
नई दिल्लीः नोएडा के सेक्टर 93ए में स्थित सुरपटेक ट्विन टावरों (Supertech Twin Towers) को गिराने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। 28 अगस्त यानी रविवार को दोपहर में 2 बजकर 30 मिनट पर दोनों टाॅवरों को गिरा दिया जाएगा। लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ जो इस 40 मंजिला बिल्डिंग को गिराने की जरूरत पड़ रही है। सुपरटेक बिल्डर की ओर से इन दोनों टाॅवरों को बनाया गया था। टाॅवर को गिरने से बचाने के लिए बिल्डर ने पानी की तरह पैसा खर्च किया। सुपरटेक बिल्डर (Supertech Builder) की तरफ से नामी वकीलों ने इस केस को लड़ा। इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी गई। लेकिन इसके बाद भी वो ट्विन टावर को गिरने से नहीं बचा सके। चलिए हम आपको बताते हैं कि इन ट्विन टावर को आखिर क्यों गिराया जा रहा है। बिल्डर (Builder) ने इसमें क्या खेल किया और अब आगे क्या होगा।
जानिए कौन है ट्विन टावर का बिल्डर
आपको बता दें कि सुपरटेक लिमिटेड एक गैर-सरकारी कंपनी है। इसे 07 दिसंबर, 1995 को निगमित किया गया था। यह एक सार्वजनिक गैर.सूचीबद्ध कंपनी है। इसे शेयरों द्वारा सीमित कंपनी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। सुपरटेक के फाउंडर आरके अरोड़ा हैं। आरके अरोड़ा ने 34 कंपनियां खड़ी की हैं जिनमें सिविल एविएशन, कंसलटेंसी, ब्रोकिंग, प्रिंटिंग, फिल्म्स, हाउसिंग फाइनेंस और कंस्ट्रक्शन तक की अलग-अलग कंपनियां शामिल हैं। साल 1999 में उनकी पत्नी संगीता अरोड़ा ने सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी शुरू की थी। दिल्ली-एनसीआर सहित देश के 12 शहरों में सुपरटेक (Supertech) ने कई रियल एस्टेट प्रोजक्ट लॉन्च किए। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने मार्च, 2022 में सुपरटेक कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया था जिस पर अभी 400 करोड़ से अधिक का कर्जा है।
करोड़ों में थी एक अपार्टमेंट की कीमत
सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट की दोनों इमारतों में करीब 915 फ्लैट थे। इसमें एक फ्लैट की कीमत 1.13 करोड़ रुपये थी। इनमें से करीब 633 की बुकिंग भी हो चुकी थी। इस प्रोजेक्ट से कंपनी को 1200 करोड़ रुपये की कमाई होती।
ब्याज के साथ वापस करने होंगे रुपये
सुपरटेक ने घर खरीददारों से करीब 180 करोड़ रुपये जमा कर लिए थे। अब सुरपटेक को घर खरीददारों का पैसा 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करना होगा। आपको बता दें कि टावर्स को गिराने से पहले आसपास के इलाके की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। जगह-जगह बैरिकेडिंग की गई है। इंसानों के साथ साथ जानवरों का भी ख्याल रखा जा रहा है। सुपरटेक टावर्स के ढहने से निकलने वाला मलबा नोएडा में अलग-अलग जगहों पर डंप किया जाएगा।
बिल्डर ने बनाए अनुमति से ज्यादा टाॅवर
नोएडा प्राधिकरण ने सुपरटेक बिल्डर को 20 जून 2005 में एमराल्ड कोर्ट के निर्माण की मंजूरी दी थी। इस परिसर में 14 टावर बनाए जाने थे। टावर में भूतल और नौ मंजिल बनाने की अनुमति दी गई, लेकिन बिल्डर ने साल 2006 में इसमें बदलाव कर भूतल और 11 मंजिल के साथ ही दो अतिरिक्त टावर योजना में शामिल कर लिए। इसके बाद वर्ष 2009 में नक्शे में बदलाव कर टावर की ऊंचाई बढ़ाई गई। इस बार टावर में 24 मंजिल बनाना तय किया गया। वर्ष 2012 में ऊंचाई को 40 मंजिल तक बढ़ाने के लिए मानचित्र में फिर से संशोधित किया गया।
ये भी देखें
नोएडा का ट्विन टावर गिरने को तैयार, सामान समेट रहे सोसाइटी के लोग
नियमों की अनदेखी करके बनाए गए टाॅवर
फ्लैट खरीदारों ने इसके खिलाफ पहली बार मार्च 2010 में आवाज उठाई और नोएडा प्राधिकरण से नक्शा मांगा। खरीददार प्रशासन, पुलिस और शासन तक गए, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। इस पर उन्होंने साल 2012 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। सोसाइटी में एओए और कानूनी समिति का गठन किया गया। इस संघर्ष के लिए 40 सदस्यीय टीम बनाई गई थी। एमराल्ड कोर्ट सोसायटी के बायर्स ने ट्विन टावर को बनाने में की गई नियमों की अनदेखी को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। ट्विन टावर के बगल की सोसायटियों में रहने वाले लोगों का कहना था कि इसे अवैध तरीके से बनाया गया है। कोर्ट में मुकदमा लड़ने वालों का कहना है कि यह लंबी लड़ाई थी। इसे लड़ना इतना आसान भी नहीं था। जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्विन टावर को अवैध घोषित कर इसे गिराने का आदेश दिया तो रियल स्टेट के सेक्टर में बायर और बिल्डर के बीच हुई कानूनी लड़ाई में इसे बड़ी जीत के तौर पर देखा गया।
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जानिए कौन है ट्विन टावर का बिल्डर
आपको बता दें कि सुपरटेक लिमिटेड एक गैर-सरकारी कंपनी है। इसे 07 दिसंबर, 1995 को निगमित किया गया था। यह एक सार्वजनिक गैर.सूचीबद्ध कंपनी है। इसे शेयरों द्वारा सीमित कंपनी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। सुपरटेक के फाउंडर आरके अरोड़ा हैं। आरके अरोड़ा ने 34 कंपनियां खड़ी की हैं जिनमें सिविल एविएशन, कंसलटेंसी, ब्रोकिंग, प्रिंटिंग, फिल्म्स, हाउसिंग फाइनेंस और कंस्ट्रक्शन तक की अलग-अलग कंपनियां शामिल हैं। साल 1999 में उनकी पत्नी संगीता अरोड़ा ने सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी शुरू की थी। दिल्ली-एनसीआर सहित देश के 12 शहरों में सुपरटेक (Supertech) ने कई रियल एस्टेट प्रोजक्ट लॉन्च किए। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने मार्च, 2022 में सुपरटेक कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया था जिस पर अभी 400 करोड़ से अधिक का कर्जा है।
करोड़ों में थी एक अपार्टमेंट की कीमत
सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट की दोनों इमारतों में करीब 915 फ्लैट थे। इसमें एक फ्लैट की कीमत 1.13 करोड़ रुपये थी। इनमें से करीब 633 की बुकिंग भी हो चुकी थी। इस प्रोजेक्ट से कंपनी को 1200 करोड़ रुपये की कमाई होती।
ब्याज के साथ वापस करने होंगे रुपये
सुपरटेक ने घर खरीददारों से करीब 180 करोड़ रुपये जमा कर लिए थे। अब सुरपटेक को घर खरीददारों का पैसा 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करना होगा। आपको बता दें कि टावर्स को गिराने से पहले आसपास के इलाके की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। जगह-जगह बैरिकेडिंग की गई है। इंसानों के साथ साथ जानवरों का भी ख्याल रखा जा रहा है। सुपरटेक टावर्स के ढहने से निकलने वाला मलबा नोएडा में अलग-अलग जगहों पर डंप किया जाएगा।
बिल्डर ने बनाए अनुमति से ज्यादा टाॅवर
नोएडा प्राधिकरण ने सुपरटेक बिल्डर को 20 जून 2005 में एमराल्ड कोर्ट के निर्माण की मंजूरी दी थी। इस परिसर में 14 टावर बनाए जाने थे। टावर में भूतल और नौ मंजिल बनाने की अनुमति दी गई, लेकिन बिल्डर ने साल 2006 में इसमें बदलाव कर भूतल और 11 मंजिल के साथ ही दो अतिरिक्त टावर योजना में शामिल कर लिए। इसके बाद वर्ष 2009 में नक्शे में बदलाव कर टावर की ऊंचाई बढ़ाई गई। इस बार टावर में 24 मंजिल बनाना तय किया गया। वर्ष 2012 में ऊंचाई को 40 मंजिल तक बढ़ाने के लिए मानचित्र में फिर से संशोधित किया गया।
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नियमों की अनदेखी करके बनाए गए टाॅवर
फ्लैट खरीदारों ने इसके खिलाफ पहली बार मार्च 2010 में आवाज उठाई और नोएडा प्राधिकरण से नक्शा मांगा। खरीददार प्रशासन, पुलिस और शासन तक गए, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। इस पर उन्होंने साल 2012 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। सोसाइटी में एओए और कानूनी समिति का गठन किया गया। इस संघर्ष के लिए 40 सदस्यीय टीम बनाई गई थी। एमराल्ड कोर्ट सोसायटी के बायर्स ने ट्विन टावर को बनाने में की गई नियमों की अनदेखी को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। ट्विन टावर के बगल की सोसायटियों में रहने वाले लोगों का कहना था कि इसे अवैध तरीके से बनाया गया है। कोर्ट में मुकदमा लड़ने वालों का कहना है कि यह लंबी लड़ाई थी। इसे लड़ना इतना आसान भी नहीं था। जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्विन टावर को अवैध घोषित कर इसे गिराने का आदेश दिया तो रियल स्टेट के सेक्टर में बायर और बिल्डर के बीच हुई कानूनी लड़ाई में इसे बड़ी जीत के तौर पर देखा गया।
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