Nilam Sanjeep Xess World Cup: न घर, न बिजली-पानी, अब भारत के लिए विश्व कप खेलेगा यह गुदड़ी का लाल
वहीं विश्व कप के लिए भारतीय टीम में एक ऐसे खिलाड़ी को भी मौका मिला है जिसकी कहानी काफी प्रेरणादायक है। इस खिलाड़ी का नाम है नीलम संजीप खेस। निलम ओडिशा के ही रहने वाले हैं और उन्होंने बहुत ही तंगहाली में हॉकी खेलना शुरू किया था। उनके गांव में पांच साल पहले बिजली तक नहीं थी। ऐसे में आइए जानते हैं कैसी है 24 साल के नीलम के संघर्षों की कहानी।
बांस के डंडे से की थी शुरुआत
नीलम शुरुआत में टाइम पास के लिए हॉकी खेला करते थे। नीलम ने ऐसी जगह पर हॉकी खेलना शुरू किया था जिस मैदान पर घास तक नहीं थी। गोल पोस्ट के नाम पर उस धूल भरे मैदान के दोनों ओर फटी हुई नेट लगी थी। हॉकी स्टिक के नाम पर उनके पास बांस का डंडा होता था। स्कूल के बाद जैसे ही उन्हें खाली समय मिलता था तो वह अपने भाई के साथ हॉकी खेलने में मगन हो जाते थे और उसके बाद अपने पिता के साथ खेत में काम करने चले जाते थे।
हालांकि नीलम को धीरे-धीरे इस खेल में दिलचस्पी होने लगी। फिर के क्या था उन्होंने हॉकी को अपना शौक बना लिया लेकिन इस खेल में करियर बनाना उनके लिए बिल्कुल आसान नहीं रहा, क्योंकि उनका परिवार इतनी गरीबी में गुजर बसर कर रहा था कि उनके पास हॉकी स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। ऐसे में उनके माता पिता ने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए दूसरों से उधार लेकर हॉकी स्टिक और अन्य जरूरत को पूरा किया।
डिफेंडर हैं नीलम संजीप
नीलम का मानना है कि हॉकी में अधिकतर लोग फॉरवर्ड के तौर पर खेलना पसंद करते हैं। क्योंकि इस भूमिका में गोल दागने के मौके अधिक होते हैं लेकिन उन्होंने डिफेंडर की पोजीशन को चुना। इसी सोच के साथ उन्हें 2010 में सुंदरगढ़ के स्पोर्ट्स होस्टल में जगह मिल गई है।
फिर क्या था यहीं से संजीव ने अपने सपने की उड़ान को पंख दे दिया। यहीं पर नीलम को पता चला कि वह हॉकी में अपना करियर बनाकर पैसे भी कमा सकते हैं और देश के लिए खेलने पर इज्जत भी मिलती है। इसके बाद से उन्होंने और जीतोड़ मेहनत शुरू कर दी।
इस बीच नीलम को भारत के स्टार खिलाड़ी वीरेंद्र लाकड़ा साथ मिला। वीरेंद्र ने उन्हें मैदान पर टैकल, पोजिशनिंग करना और मैदान पर विरोधियों के दबाव के कैसे बाहर निकला जाता है, इन सभी बारीकियों को सिखाया।