NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर-भिंडरावाले की जांघ में लगी थी पहली गोली: तहखाने में लाश मिली, पाकिस्तान बोला-वो हमारे पास है; आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41वीं बरसी

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NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर-भिंडरावाले की जांघ में लगी थी पहली गोली:  तहखाने में लाश मिली, पाकिस्तान बोला-वो हमारे पास है; आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41वीं बरसी
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NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर-भिंडरावाले की जांघ में लगी थी पहली गोली: तहखाने में लाश मिली, पाकिस्तान बोला-वो हमारे पास है; आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की 41वीं बरसी

1984 के अप्रैल महीने के आखिरी दिन। जगह- अमृतसर का स्वर्ण मंदिर। कंस्ट्रक्शन का सामान लिए कई ट्रक एक के बाद एक मंदिर के अंदर जा रहे थे। सफेद सलवार-कुर्ता पहने आम कद-काठी का एक आदमी इसकी देखरेख कर रहा था। नाम था- शाहबेग सिंह।

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वही शाहबेग, जो कभी भारतीय सेना में मेजर जनरल रहा था। ये सेना का तीसरा सबसे बड़ा ओहदा होता है। शाहबेग अलग खालिस्तान की मांग कर रहे सिख उग्रवादियों के सबसे बड़े नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले का मिलिट्री एडवाइजर था।

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अंदर मौजूद भिंडरावाले के कहने पर शाहबेग ने मंदिर के कैंपस में भारी मात्रा में हथियार और लड़ाके जमा करके एक किले की तरह मोर्चेबंदी कर ली थी। भिंडरावाले की मर्जी के बिना सेना तो दूर की बात, कोई आम श्रद्धालु भी अंदर नहीं घुस सकता था। इंदिरा सरकार ने कई बार बातचीत के जरिए मंदिर खाली कराने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 11 मई को समझौते की एक आखिरी कोशिश हुई, लेकिन भिंडरावाले ने उसे भी ठुकरा दिया।

आखिरकार भिंडरावाले को कुचलने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार लॉन्च किया गया, जिसमें उसकी मौत हो गई।

जिंदगी के आखिरी दिन भिंडरावाले क्या कर रहा था, उसके जान बचाकर पाकिस्तान चले जाने की कहानी में कितना सच है, जानेंगे NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर में…

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सेना का फैसला- ‘अकाल तख्त में ही भिंडरावाले को मारेंगे’

दिसंबर 1983 में भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर के बगल में बने गुरु नानक निवास को छोड़कर अकाल तख्त में ठिकाना बना लिया था। स्वर्ण मंदिर के मुख्य भवन के सामने 100 मीटर की दूरी पर अकाल तख्त है। सिख धर्म में अकाल तख्त का खास दर्जा है।

महाराजा रणजीत सिंह के समय से ही सिख धर्म के सारे फैसले यहीं से लिए जाते रहे हैं। जब बातचीत से कोई नतीजा नहीं निकला तो 30 मई 1984 की रात सेना अमृतसर और पंजाब के बाकी शहरों में दाखिल हुई।

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स्वर्ण मंदिर के आसपास की इमारतों पर CRPF और BSF के जवान तैनात हो गए। भिंडरावाले को कुचलने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार लॉन्च हो चुका था। 1 जून की रात 9 बजे अमृतसर में कर्फ्यू लगा दिया गया। अगले 24 घंटों में करीब 70,000 फौजी पूरे पंजाब में फैल चुके थे।

2 जून की शाम को देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का दूरदर्शन पर राष्ट्र के नाम संदेश आया। इंदिरा बोलीं, ‘केंद्र सरकार राज्य (पंजाब) में फैल रहे आतंकवाद और हिंसा का अंत कर देगी।’

4 जून की सुबह करीब 4-5 बजे सेना और भिंडरावाले के लोगों के बीच गोलाबारी शुरू हो गई। अगले दो दिनों में कई जवान शहीद हुए। हालांकि अब तक भिंडरावाले तक नहीं पहुंचा जा सका था। आखिरकार सेना ने फैसला किया कि उसे अकाल तख्त में ही घुसकर मारा जाएगा।

ये फैसला बड़ा था, क्योंकि अकाल तख्त को नुकसान पहुंचता तो सिख और भड़क सकते थे। इस बीच फायरिंग में सेना के कई जवान और अंदर मौजूद आतंकी मारे जा रहे थे। अंदर से लाशें ट्रकों में भरकर चाटीविंड के मुर्दाघर ले जाई जा रही थीं।

1 जनवरी 1983 को अमृतसर के गुरुनानक निवास में अपने हथियारबंद लोगों के साथ भिंडरावाले (बीच में)।

6 जून को भिंडरावाले ने आखिरी अरदास की

भिंडरावाले के आखिरी क्षणों का जिक्र दो जगह पर मिलता है। अकाल तख्त के तब के जत्थेदार किरपाल सिंह ने अपनी किताब ‘आई विटनेस अकाउंट ऑफ ऑपरेशन ब्लूस्टार’ में अकाल तख्त के प्रमुख ग्रंथी ज्ञानी प्रीतम सिंह से बातचीत का ब्योरा देते हुए लिखा है, ‘मैं तीन सेवादारों के साथ अकाल तख्त के उत्तरी कोने पर बैठा हुआ था।

6 जून की सुबह करीब 8 बजे फायरिंग थोड़ी कम हुई तो मैंने भिंडरावाले को शौचालय की तरफ से अपने कमरे के पास आते देखा। उन्होंने नल में अपने हाथ धोए और वापस अकाल तख्त की तरफ लौट गए।’

भिंडरावाले के साथ परछाई की तरह दो लोग रहते थे- अमरीक सिंह और शाहबेग सिंह। अमरीक सिंह ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISSF) का प्रेसिडेंट था। वहीं शाहबेग सिंह पर 1976 में आर्मी से रिटायर होने से ठीक पहले करप्शन के आरोप लगे थे। इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए शाहबेग, भिंडरावाले के साथ आ मिले थे।

किरपाल लिखते हैं, ‘करीब साढ़े आठ बजे भाई अमरीक सिंह ने कहा कि हम लोग निकल जाएं। जब हमने उनसे उनकी योजना के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि संत (भिंडरावाले) तहखाने में हैं। पहले उन्होंने सात बजे शहीद होना तय किया था, लेकिन फिर उन्होंने उसे साढ़े नौ बजे तक स्थगित कर दिया था।’

एक और किताब ‘द गैलेंट डिफेंडर’ में ए आर दरशी लिखते हैं, ‘मैं 30 लोगों के साथ कोठा साहब में छिपा हुआ था। 6 जून को करीब साढ़े सात बजे भाई अमरीक सिंह वहां आए और हमसे कहा कि हम कोठा साहब छोड़ दें, क्योंकि अब सेना के लाए गए टैंकों का मुकाबला नहीं किया जा सकता।’

दरअसल, अकाल तख्त तक पहुंचने के लिए सेना ने तख्त की दीवार पर विजयंत टैंकों से गोले दागने शुरू कर दिए थे।

दरशी के मुताबिक

कुछ मिनटों बाद संत भिंडरावाले अपने 40 समर्थकों के साथ कमरे में दाखिल हुए। उन्होंने गुरुग्रंथ साहिब के सामने बैठ कर प्रार्थना की और अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा जो लोग शहादत लेना चाहते हैं, मेरे साथ रुक सकते हैं। बाकी लोग अकाल तख्त छोड़ दें।

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ऑपरेशन ब्लू स्टार के पहले अपने लड़ाकों के साथ भिंडरावाले की एक तस्वीर।

जांघ में लगी पहली गोली, भिंडरावाले को मरते किसी ने नहीं देखा

अकाल तख्त के बाहर कारतूसों के खोखे की एक इंच मोटी परत बन गई थी। बरामदे के आसपास का स्ट्रक्चर तहस-नहस हो चुका था। जब भिंडरावाले मलबे पर पैर रखते हुए अकाल तख्त के सामने की तरफ गया तो उसके पीछे उसके 30 साथी भी थे। जैसे ही वो आंगन में निकला, उसका सामना गोलियों से हुआ।

अकाल तख्त में मौजूद भिंडरावाले ने अपनी मौत से पहले तीन पत्रकारों से बात की थी। उनमें से एक थे- बीबीसी के मार्क टली। दूसरे थे- टाइम्स ऑफ इंडिया के सुभाष किरपेकर और तीसरे मशहूर फोटोग्राफर रघु राय।

मार्क टली और सतीश जैकब अपनी किताब ‘अमृतसर मिसेज गांधीज लास्ट बैटल’ में लिखते हैं, ‘बाहर निकलते ही अमरीक सिंह को गोली लगी, लेकिन कुछ लोग आगे दौड़ते ही चले गए। फिर गोलियों की एक और बौछार आई, जिसमें भिंडरावाले के 12- 13 साथी धराशायी हो गए।’

‘अचानक कुछ लोगों ने अंदर आकर कहा कि अमरीक सिंह शहीद हो गए हैं। जब उनसे भिंडरावाले के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने उन्हें मरते हुए नहीं देखा है।’

मार्क टली लिखते हैं, ‘राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के सलाहकार रहे त्रिलोचन सिंह को अकाल तख्त के एक ग्रंथी ने बताया था कि जब भिंडरावाले बाहर आए थे तो उनकी जांघ में गोली लगी थी। उनको दोबारा भवन के अंदर ले जाया गया, लेकिन किसी ने भी भिंडरावाले को अपनी आंखों के सामने मरते हुए नहीं देखा।’

भिंडरावाले के ज्यादातर साथी मारे जा चुके थे। सेना ने ग्रेनेड का इस्तेमाल किया, ताकि रास्ता बनाकर भिंडरावाले तक पहुंचा जा सके। 6 जून को शाम चार बजे से लाउडस्पीकर से लगातार घोषणा की जा रही थी कि जो लोग अभी भी कमरों या तहखानों में हैं, बाहर आकर सरेंडर कर सकते हैं। तब तक भिंडरावाले का कोई पता नहीं था।

पकड़ा गया आतंकी सैनिकों को भिंडरावाले के शव के पास ले गया

ऑपरेशन ब्लूस्टार के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बरार अपनी किताब ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार द ट्रू स्टोरी’ में लिखते हैं, ‘जब 26 मद्रास रेजिमेंट के जवान अकाल तख्त में घुसे तो दो लोग भागने की कोशिश कर रहे थे।

उन पर गोली चलाई गई। इनमें से एक तो मारा गया, लेकिन दूसरा पकड़ लिया गया। उससे पूछताछ की गई तो उसने सबसे पहले बताया कि भिंडरावाले अब इस दुनिया में नहीं हैं। फिर वो हमारे सैनिकों को उस जगह ले गया जहां भिंडरावाले और उसके 40 लोगों की लाशें पड़ी हुई थीं।’

बुलबुल बरार के मुताबिक, ‘थोड़ी देर बाद हमें तहखाने में शाहबेग सिंह की भी लाश मिली। उनके हाथ में अभी भी उनकी कार्बाइन थी और उनके शरीर के बगल में उनका वॉकी-टॉकी पड़ा हुआ था।’

उसके बाद बरार के साथ गए जवानों को अंदर की तलाशी में भिंडरावाले का शव मिला। उसके शव को उत्तरी विंग के बरामदे में लाकर रखा गया, जहां पुलिस, इंटेलिजेंस ब्यूरो और पकड़े गए आतंकियों ने उसकी पहचान की।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद क्षतिग्रस्त अकाल तख्त, जिसे बाद में सिखों ने दोबारा बनवाया।

भिंडरावाले को कई गोलियां लगीं, तलाशी में मिलीं 51 मशीनगन

भिंडरावाले की मौत 6 जून को हुई थी, लेकिन तलाशी के दौरान उसकी लाश 7 जून की सुबह मिली। मार्क टली लिखते हैं, ‘भिंडरावाले की मौत की खबर आने के बाद एक गार्ड की ड्यूटी वहां लगा दी गई थी। तलाशी के लिए 7 जून की सुबह तक का इंतजार किया गया। सुबह तलाशी के दौरान भिंडरावाले, शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह के शव तहखाने में मिले।’

कुलदीप सिंह बरार अपनी किताब में बताते हैं कि आर्मी को तलाशी में 51 मशीनगन मिलीं। आम तौर पर 800 जवानों की आर्मी यूनिट 8 किलोमीटर एरिया को घेरने के लिए इतने असलहे का इस्तेमाल करती है।

ब्रिगेडियर ओंकार एस गोराया ने अपनी किताब ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार एंड आफ्टर ऐन आईविटनेस अकाउंट’ में लिखा है,

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भिंडरावाले के शव की शिनाख्त सबसे पहले डीएसपी अपर सिंह बाजवा ने की। मैं भी बर्फ की सिल्ली पर लेटे हुए भिंडरावाले के शव को पहचान सकता था, हालांकि पहले मैंने उसे कभी जीवित नहीं देखा था। उसका जूड़ा खुला हुआ था और उसके एक पैर की हड्डी टूटी हुई थी। उनके शरीर पर गोली के कई निशान थे।

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7 जून की सुबह करीब दस बजे आकाशवाणी पर अनाउंस किया गया कि जरनैल सिंह भिंडरावाले की डेड बॉडी मिल गई है। शाम साढ़े सात बजे भिंडरावाले का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मार्क टली लिखते हैं, ‘उस समय मंदिर के आसपास करीब दस हजार लोग जमा हो गए थे, लेकिन सेना ने उनको रोके रखा। भिंडरावाले, अमरीक सिंह और दमदमी टकसाल के उप प्रमुख थारा सिंह के शव को मंदिर के पास चिता पर रखा गया।’

‘चार पुलिस अधिकारियों ने भिंडरावाले के शव को लॉरी से उठाया और चिता तक लाए। एक ऑफिसर ने मुझे बताया कि वहां मौजूद बहुत से पुलिसकर्मियों की आंखों में आंसू थे।’

वहीं शाहबेग सिंह के अंतिम संस्कार का कोई ऑफिशियल रिकॉर्ड नहीं मिलता।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी स्वर्ण मंदिर पहुंची थीं।

भिंडरावाले के पाकिस्तान भाग जाने की अफवाह कैसे उड़ी

भिंडरावाले का अंतिम संस्कार हो जाने के बावजूद कई दिनों तक ये अफवाह फैली रही कि वो जिंदा है। दरअसल, स्वर्ण मंदिर और पाकिस्तान सीमा के बीच की दूरी सिर्फ 28 किलोमीटर है। अफवाह थी कि ब्लू स्टार के दौरान भिंडरावाले बचकर पाकिस्तान चला गया है।

जनरल बरार के मुताबिक, ‘7 जून से ही कहानियां चलने लगी थीं कि भिंडरावाले सुरक्षित पाकिस्तान चला गया था। पाकिस्तान के टीवी चैनल घोषणा कर रहे थे कि भिंडरावाले हमारे पास है और 30 जून को हम उसे टीवी पर दिखाएंगे।’

सुभाष किरपेकर के मुताबिक, 3 जून को जब वे भिंडरावाले से मिले तो AISSF के जनरल सेक्रेटरी हरविंदर सिंह संधू से भी मिले थे। उसने सुभाष से कहा था, ‘पाकिस्तान से मदद लेने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि दिल्ली (सरकार) पाकिस्तान और सिखों, दोनों के साथ एक जैसा बर्ताव करती है।’

इन खबरों के चलते इस अफवाह को और ताकत मिली कि भिंडरावाले पाकिस्तान में है।

जनरल बरार के मुताबिक,’मेरे पास सूचना और प्रसारण मंत्री एच के एल भगत और विदेश सचिव एमके रस्गोत्रा के फोन आए कि आप तो कह रहे हैं कि भिंडरावाले की मौत हो गई है, लेकिन पाकिस्तान कह रहा है कि वो उनके यहां है।’

बरार आगे कहते हैं, ‘मैंने उन्हें बताया कि भिंडरावाले के शव की पहचान हो गई है। उसे उसके परिवार को सौंप दिया गया था। अंतिम संस्कार से पहले समर्थकों ने आकर उसके पैर छुए हैं।’

हालांकि 30 जून का बेसब्री से इंतजार था। बरार अपनी किताब ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार द ट्रू स्टोरी’ में लिखते हैं, ‘मैंने भी कौतूहल में उस रात अपना टीवी ऑन किया क्योंकि इस तरह की अफवाहें थीं कि भिंडरावाले की शक्ल से मिलते-जुलते किसी आदमी की प्लास्टिक सर्जरी करके पाकिस्तानी टीवी पर दिखाया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।’

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद स्वर्ण मंदिर परिसर में (बाएं से दाएं) मेजर जनरल कुलदीप बरार, जनरल कृष्णस्वामी सुंदरजी और थल सेनाध्यक्ष जनरल ए एस वैद्य। ऑपरेशन लीड करने वाले तीन प्रमुख ऑफिसर्स में से दो सिख थे- स्वर्ण मंदिर में घुसने वाली फौज के कमांडर बरार और लेफ्टिनेंट जनरल रंजीत सिंह दयाल। इन दोनों ने जनरल सुंदर जी के साथ मिलकर पूरा प्लान बनाया था।

6 साल पहले पड़ी थी ऑपरेशन ब्लू स्टार की नींव

दरअसल, जरनैल सिंह भिंडरावाले सिखों के कट्टर धार्मिक समूह दमदमी टकसाल का प्रमुख था। 13 अप्रैल 1978 को बैसाखी के दिन निरंकारी समुदाय का समागम हुआ। इस जुलूस के विरोध में भिंडरावाले ने दरबार साहिब के पास परंपरागत सिखों की सभा बुलाई और जोरदार भाषण दिया। इसके बाद अखंड कीर्तनी जत्था और दमदमी टकसाल के लोगों का एक जुलूस निरंकारियों की तरफ बढ़ा। झड़प में 13 सिख और 2 निरंकारी मारे गए।

24 अप्रैल 1980 को निरंकारी पंथ प्रमुख गुरबचन सिंह की दिल्ली में उनके घर पर हत्या कर दी गई। अगले ही साल पंजाब केसरी के संस्थापक और संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हुई। इन हत्याओं का आरोप भिंडरावाले और उसके नए पॉलिटिकल फ्रंट ‘दल खालसा’ पर था। 1982 में भिंडरावाले ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से सटे गुरु नानक निवास को अपना ठिकाना बना लिया। मंदिर के ठीक सामने अकाल तख्त है। यहीं से भिंडरावाले सिखों के लिए कट्टर उपदेश और आदेश जारी करने लगा था।

केंद्र की कांग्रेस सरकार ने 82 से 84 तक कई बार भिंडरावाले को पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रही। अप्रैल 1983 में DIG एएस अटवाल की स्वर्ण मंदिर के कैंपस में सरेआम हत्या हुई थी। जिसके बाद स्थिति बिगड़ती देख, अक्टूबर 1983 में पंजाब की विधानसभा भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। दिसंबर 1983 में भिंडरावाले अकाल तख्त में जा घुसा।

27 मई 1984 को शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने भी भिंडरावाले को समझाने की कोशिश की थी, लेकिन जब कोशिशें नाकाम हुईं, तो मिलिट्री ऑपरेशन का ही रास्ता बचा।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस पूरे ऑपरेशन में 300 से 400 लोगों की मौत हुई, जबकि 90 सैनिक शहीद हुए। हालांकि चश्मदीद और मामले को करीब से देखने वाले लोगों की मानें तो करीब 1000 लोग मारे गए और 250 जवान शहीद हुए थे।

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