क्या UPCOCA कानून सचमुच मुस्लिम विरोधी है?

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योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश में संगठित अपराध पर नकेल कसने के लिए यूपीकोका के रूप में सख्त एक कानून लाने का फैसला किया है. प्रस्तावित कानून के तहत जबरन वसूली, अंडरवर्ल्ड, जमीनों पर कब्जा, अपहरण, वेश्यावृत्ति, फिरौती, धमकी और तस्करी जैसे अपराधों को शामिल किया गया है.

अगर ये कानून लागू हो जाता हाई तो महाराष्ट्र के बाद उत्तर प्रदेश दूसरा ऐसा प्रदेश बन जाएगा जहां इतना सख्त कानून लागू होने जा रहा है. आपको बता दें कि य्प्गी आदित्यनाथ से  पहले बसपा सुप्रीमो मायवाती ऐसा कानून लाने की कोशिश कर चुकी हैं, लेकिन कई जगहों से विरोध का सामना करने के बाद उन्हें बैकफुट पर जाना पड़ गया था. अब योगी सरकार द्वारा लाए जा रहे कानून का भी विरोध किया रहा है. प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी समेत दूसरे दलों ने भी योगी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं. वहीं मुस्लिमों की पैरोकारी करने वाले कई संगठन भी इसकी मुखालफत में खड़े नजर आ रहे हैं. कहा जा रहा है कि एक खास समुदाय पर निशाना साधने के लिए इस कड़े कानून अमल में लाने का कदम उठाया गया.

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क्या कहता है क़ानून?

यूपीकोका (उत्तरप्रदेश कंट्रोल ऑफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) के तहत संगठित रूप में होने वाले अपराधों को निशाना बनाया जाएगा. इस कानून के तहत गिरफ़्तार हुए व्यक्ति को 6 महीने से पहले ज़मानत नहीं मिल पायगी. बाकी क़ानूनों के तहत 15 दिन की पुलिस रिमांड मिलती है लेकिन इस कानून के आरोपी की पुलिस रिमांड 30 दिन के लिए ली जा सकेगी. इसके अलावा अपराधी को पांच साल की सजा और अधिकतम फांसी की सजा का भी प्रावधान होगा.

उ.प्र. में कानून का राज कायम करने के नारे के साथ सत्ता में आई योगी सरकार यूपीकोका को अपराध के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बता रही है. लेकिन विरोधी दल तथा संस्थाएं इसे मुस्लिमों को निशाना बनाने वाला बता रहे हैं. दरअसल, 2007 में मायावती के नेतृत्व वाली बसपा सरकार के आने के बाद भी  ऐसा ही एक कानून लाया गया. इसी दौरान आजमगढ़ जैसे दूसरे कुछ इलाकों में आतंकवाद से जुड़े संदिग्धों की गिरफ्तारियां भी की गयी थी. इन गिरफ्तारियों का नतीजा ये रहा कि मायावती सरकार के इस क़ानून का कड़ा विरोध किया गया. उस वक्त भी समाजवादी पार्टी विपक्ष में थी और उन्होंने मायावती सरकार के क़दम का पुरजोर विरोध किया गया. आरोप लगे कि आतंकवाद के नाम पर बेकसूर मुस्लिम नौजवानों की गिरफ्तारियां की जा रही हैं. नतीजतन, मायावती को क़ानून वापस करना पड़ गया.

मौजूदा कानून को लेकर भी इस तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं. आतंकवाद के नाम पर बेकसूर मुस्लिमों को कानून के शिकंजे से बचाने का काम करने वाले रिहाई मंच ने योगी सरकार के प्रस्तावित कानून को सांप्रदायिक राजनीतिक का पर्याय बताया और कहा है कि इसका इस्तेमाल मुस्लिमों के खिलाफ किया जाएगा.

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इस वजह से मायावती को बैकफुट पर आना पड़ा

मायावती सरकार ने जब ये कानून वापस लिया तब विक्रम सिंह यूपी के पुलिस महानिदेशक थे. उन्होंने बताया कि उस वक्त इस कानून का दुरुपयोग देखा गया, जिसके बाद उसे वापस लेने का निर्णय लिया गया.

पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह की क्या है राय

पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने योगी सरकार द्वारा लाए जा रहे यूपीकोका पर कहा कि अपराध खत्म करने के लिए पहले से ही कानून मौजूद है. ऐसे में यूपीकोका लाने की आवश्यता नहीं थी, क्योंकि इसका गलत इस्तेमाल होने की आशंका है. उनका मानना है कि आतंक और राष्ट्रविरोधी अपराधों के लिए ऐसे कानून लाए जा सकते हैं, बाकी ज़मीन विवाद या रंगदारी जैसे अपराध पर मौजूदा कानून से ही लगाम लगाई जा सकती है.

हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि मौजूदा कानून के तहत सीनियर पुलिस ऑफिसर की संस्तुति के बाद ही केस दर्ज किए जा सकेंगे, जो इसे सही मायनों में प्रभावी रूप से लागू कराने में अहम साबित होगा.

इस तरह से काम करेगा ये क़ानून

प्रस्तावित कानून के मसौदे से क़ानून के दुरुयोग की आशंका जाहिर होती है. नए क़ानून में इस बात के लिए भी नियम बनाए गए हैं कि उसका गलत इस्तेमाल न हो सके. केस दर्ज होने और जांच के लिए नियम बनाए गए हैं, जिसके तहत राज्य स्तर पर ऐसे मामलों की मॉनिटरिंग खुद गृह सचिव करेंगे और मंडल के स्तर पर आईजी रैंक के अधिकारी की संस्तुति के बाद ही मामला दर्ज किया जाएगा. जिला स्तर पर अगर कोई संगठित अपराध करने वाला अपराधी है तो उसकी रिपोर्ट कमिश्नर, जिलाधिकारी देंगे जिसके बाद फ़ैसला किया जाएगा कि आरोपी के ख़िलाफ़ यूपीकोका कानून लगे.