मुलायम सिंह बर्थडे: दंगल के अखाड़े से बने सियासत के महारथी, प्रधानमंत्री नहीं बन पाए लेकिन सम्मान उससे ज्यादा मिला | mulayam singh birthday story the master of politics made from dangal | Patrika News

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मुलायम सिंह बर्थडे: दंगल के अखाड़े से बने सियासत के महारथी, प्रधानमंत्री नहीं बन पाए लेकिन सम्मान उससे ज्यादा मिला | mulayam singh birthday story the master of politics made from dangal | Patrika News

मुलायम सिंह बर्थडे: दंगल के अखाड़े से बने सियासत के महारथी, प्रधानमंत्री नहीं बन पाए लेकिन सम्मान उससे ज्यादा मिला | mulayam singh birthday story the master of politics made from dangal | News 4 Social

मुलायम पहलवान थे। उनके बारे में एक क्षेत्र में एक कहावत प्रचलित है कि जवानी के दिनों में मुलायम सिंह का हाथ अगर सामने वाले पहलवान के कमर तक पहुंच जाता था तो अच्छे-अच्छे पहलवान की हालत ख़राब हो जाती थी। मुलायम के पकड़ को छुड़ा पाना उसकी बस की बात नहीं होती थी।

चाहे वो कितना ही लंबे चौड़े कद काठी का क्यों न हो। कहानी की शुरुआत भी यहीं से होती है। एक किसान फेमिली का लड़का जिसके पूरे खानदान से कोई राजनीति में नहीं था। वही एक दिन यूपी के सबसे बड़े कुर्सी यानी मुख्यमंत्री बनता है।

मुलायम का ‘चर्खा दावं’ आज भी सैफई में बहुत फेमस है। उनके गांव के लोग उस दावं अभी तक भूले नहीं हैं। इस दावं में मुलायम विरोधी पहलवान को बिना हाथ लगाए ही उसको चारों खाने चित यानी पटक देते थे।

उनके छोटे भाई राम गोपाल यादव ने एक प्राइवेट न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि जब उनकी कुश्ती का लास्ट मोमेंट्स होता था तो दोनों हथेलियों से हम अपनी आँखों को बंद कर लेते थे।

आंखें तभी खुलती थीं जब भीड़ से आवाज आती थी, ‘हो गई, हो गई’ यही शब्द यह तय कर देता था की नेताजी की जीत हो चुकी है। समय का फेर बदला और नेताजी पहलवान से शिक्षक बन गए, शिक्षक बनने के बाद मुलायम ने पहलवानी करनी छोड़ दी। लेकिन दंगल और पहलवानी के वो इतने शौकीन थे कि वो जब तक जिंदा रहे तब तक सैफई में दंगल कराते रहे।

यूपी के पॉलिटिक्स पर पकड़ रखने वाले कुछ पॉलिटिकल एक्सपर्टस इस बात का दावा करते हैं कि कुश्ती की वजह से ही मुलायम को पॉलिटिक्स में एंट्री मिली थी। यह फैक्ट इसलिए और मजबूत होता है क्योंकि उनके खानदान से कोई पॉलिटिक्स से नहीं जुड़ा हुआ था।

नाथू सिंह ने कराई थी पॉलिटिक्स में एंट्री, सबसे कम उम्र में बने थे विधायक पहलवानी से क्षेत्र में नाम कमाने वाले मुलायम के टैलेंट को प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता नाथू सिंह ने पहचाना। 1967 के चुनाव में मुलायम को जसवंतनगर सीट से उन्होंने टिकट दिलाया था। उस समय मुलायम की उम्र सिर्फ 28 साल थी।

वो यूपी के सबसे कम उम्र के विधायक बने थे। विधायक बनने के बाद उन्होंने मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की। साल 1977 यानी ठीक 10 साल बाद यूपी में रामनरेश यादव के लीडरशिप में जनता पार्टी की सरकार बनी। इस सरकार में मुलायम को सहकारिता मंत्री बनाया गया। जब वो मंत्री बने तब उनकी उम्र सिर्फ 38 साल की थी।

सीएम की दौड़ में देशी पहलवान ने इंग्लैंड में जन्में अजीत सिंह को पछाड़ा पश्चिमी यूपी के दिग्गज नेता चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना पॉलिटिकल वारिस और अजीत सिंह को कानूनी वारिस कहते थे।

इसी बीच चौधरी साहब बीमार हो गए। चौधरी साहब के बीमार की खबर सुनकर अजीत अपने घर आए। उनके घर वापसी के बाद पार्टी के समर्थकों ने उनके ऊपर दबाव डालना शुरू कर दिया था की वो पार्टी के प्रेसीडेंट बन जाएं।

दोनों नेताओं में पॉलिटिकल एम्बिशन पैदा हो रहीं थी इसी वजह से मुलायम और अजीत सिंह के बीच कम्पटीशन बढ़ गया था। लेकिन अंतिम दांव मुलायम ने चला और वो यूपी के मुख्यमंत्री बने।

पहली बार सीएम बने तो बोले, ‘लोहिया के गरीब के बेटे को सीएम बनाने का सपना पूरा हो गया’ मुलायम सिंह यादव को 5 दिसंबर, 1989 के दिन लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। जब मुलायम ने पहली बार सीएम पद की शपथ ली तो उन्होंने रुंधे हुए गले से कहा था कि लोहिया का गरीब के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का सपना आज सच हो गया है।

मुलायम जब मुख्यमंत्री बने तब यूपी में दो घटनाएं साथ-साथ चल रही थीं। पहला, रामजन्म भूमि की आवाज जोरों-शोरों से उठ रही थी। दूसरा, बीजेपी की ताकत बढ़ रही थी। मुलायम ने बीजेपी की इस ताकत को बहुत मजबूती से सामना किया।

अयोध्या में कानून व्यवस्था बिगड़ी तो गोली चलाने का आदेश दिया, बीजेपी ने नाम दिया ‘मुल्ला मुलायम’ बाबरी मस्जिद पर मुलायम ने एक बयान दिया कि मस्जिद पर परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा। मुलायम के इस बयान ने मुस्लिमों को उनके काफी करीब ला दिया। मुसलमानों के मन में उनके नेताजी यानी मुलायम के लिए सम्मान बढ़ गया।

2 नवंबर 1990 को कारसेवक मस्जिद की ओर बढ़ने लगे तभी मुलायम ने पुलिस को लाठी चार्ज करने का आदेश दिया। हालात जब लाठीचार्ज से नहीं सुधरे तब उन्होंने गोली चलाने का आदेश दिया।

इस घटना में एक दर्जन से ज्यादा कारसेवक मारे गए। इसके बाद बीजेपी काफी लंबे समय तक मुलायम को ‘मुल्ला मुलायम’ के नाम से बुलाती रही। मुलायम ने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी यानी सपा की नींव रखी। उन्होंने बीजेपी को काउंटर करने उसके बढ़ते ग्राफ को रोकने के लिए ही समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी। उन्होंने साइकिल से चुनाव प्रचार किया फिर इसी को पार्टी का सिंबल बनाया।

इसके बाद ही दिल्ली के अशोक होटल में मुलायम की भेंट बसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ हुई। यहीं पर दोनों दलों ने गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला किया। 1993 में फिर से यूपी में विधानसभा चुनाव हुए। रिजल्ट आया, बहुमत सपा-बसपा गठबंधन के तरफ गया। सपा को 260 में से 109 और बसपा को 163 में से 67 सीटें मिली थीं। बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद माहौल बीजेपी के पक्ष में था इसके बावजूद बीजेपी को सिर्फ 177 सीटों से संतोष करना पड़ा था।

मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस और बीएसपी के समर्थन से यूपी में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मुलायम को चार घंटे करना पड़ा था वेट, बाहर निकले तो गिरने वाली थी सरकार

सपा-बसपा के गठबंधन को बीजेपी हमेशा से ही बेमेल का गठबंधन कहती रही है। हुआ भी बिल्कुल वैसा ही जैसा बीजेपी कह रही थी। दोनों दलों का साथ बहुत दिनों तक नहीं चल पाया। इसकी वजह थी बसपा ने सपा के सामने ढेर सारी डिमांड रख दी थीं।

यूपी के चीफ सेक्रेटरी रहे टीएस आर सुब्रमण्यम अपनी किताब ‘जरनीज थ्रू बाबूडम एंड नेतालैंड’ में लिखते हैं कि एक बार कांशीराम लखनऊ आए और सर्किट हाउस में रुके थे। मुलायम सर्किट हाउस पहुंचे वो कांशीराम से मिलने के लिए पहले से ही टाइम ले रखा था।

मुलायम जब वहां पहुंचे उस टाइम कांशीराम अपने पॉलिटिकल फ्रेंड्स के साथ के साथ राजनितिक बातचीत कर रहे थे। कांशीराम के स्टाफ ने मुलायम से कहा कि वो बगल वाले कमरे में बैठ कर कांशीराम के काम से फ्री होने का वेट करें।

कांशीराम ने पुरे 2 घंटे तक मीटिंग की। मीटिंग खत्म होने के बाद जब सभी बाहर निकलने लगे तब मुलायम को लगा की अब उन्हें बुलाया जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। एक घंटे बाद मुलायम ने एक बार फिर से पूछा कि उनको कब बुलाया जाएगा ? अंदर क्या हो रहा है? जवाब मिला कि कांशीराम दाढ़ी बना रहे हैं और इसके बाद वो नहाएंगे।

वेट करते 3 घंटे हो चुके थे। मुलायम कमरे में चहल कदमी करते हुए टाइम काट रहे थे। इसी बीच कांशीराम थोड़ा रेस्ट भी कर लिए। पुरे 4 घंटे बाद वो मुलायम से मिलने के लिए बाहर वाले कमरे में आए।

मीटिंग खत्म होने के बाद मुलायम तमतमाए हुए बाहर आए, उनका चेहरा लाल था। पहलवान से नेता बने मुलायम के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींची हुईं साफ दिख रही थीं। वो अपने एम्बेसडर कर तक अकेले गए, कांशीराम ने मुलायम को उनके गाड़ी तक छोड़ना भी उचित नहीं समझा।

उसी दिन शाम को कांशीराम ने बीजेपी के सीनियर लीडर लालजी टंडन से मुलाकात किया और कुछ दिनों बाद बसपा ने मौजूदा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम और मायावती की कभी नहीं बनी

2 जून को मायावती लखनऊ आईं, तो मुलायम के समर्थकों ने स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती पर हमला कर दिया और उन्हें अपमानित करने की कोशिश की। इसके बाद से दोनों में ऐसी दूरियां बनीं की फिर उसको पाटा नहीं जा सका।

इस घटना को गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है। इसके बाद बीजेपी और बसपा ने मिलकर सरकार बनाई। साल:2003, तारीख:29 नवंबर। मुलायम ने दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सीएम के दूसरे फेज में अमर सिंह मुलायम के करीब आए और उनमें अच्छी दोस्ती हो गई।

अच्छी दोस्ती का ही नतीजा था कि मुलायम ने अमर सिंह को राज्य सभा का टिकट देकर उनको संसद पहुंचा दिया। उन्होंने अमर सिंह को बाद में पार्टी का नेशनल जनरल सेक्रेटरी भी बनाया। सपा में अमर सिंह की ताकत दिन-ब-दिन बढ़ रही थी। इसका रिजल्ट यह निकला कि बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम से दूरी बना ली।

एक चैनल को दिए इंटरव्यू में बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा था कि मैं मुलायम सिंह का बहुत सम्मान करता था। एक बार मैंने चरण सिंह से मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने की सिफारिश की थी।

चौधरी साहब ने मेरी सलाह पर हंसते हुए बोले कि इतने छोटे कद के आदमी को कौन अपना नेता मानेगा? तब मैंने उनसे कहा था कि नेपोलियन और लाल बहादुर शास्त्री भी तो छोटे कद के ही थे। जब वो अच्छे नेता बन सकते हैं तो फिर मुलायम क्यों नहीं। उस वक्त चौधरी साहब ने मेरे बातों पर गौर करते हुए अपनी सहमति दी थी।

1996 में केंद्र में यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव डिफेंस मिनिस्टर बने। प्रधानमंत्री पद से देवगौड़ा के इस्तीफे के बाद मुलायम प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। दि प्रिंट के चीफ एडिटर और पत्रकार शेखर गुप्ता ने इंडियन एक्सप्रेस के 22 सितंबर, 2012 के एडिशन में ‘मुलायम इज द मोस्ट पॉलिटिकल आर्टिकल’ में लिखा कि लीडर के लिए हुए इंटरनल वोटिंग में मुलायम सिंह यादव ने जीके मूपनार को 120-20 के अंतर से हरा दिया था।

लेकिन उनके ही जाती के दो विरोधी लालू और शरद ने उनकी राह में कांटे बोए। इसमें चंद्रबाबू नायडू ने भी उनका साथ दिया। जिसकी वजह से मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।

उस समय अगर उन्हें वो पद मिल गया होता होता तो वो इंद्र कुमार गुजराल से कहीं अधिक समय तक गठबंधन को बचाए रखने में कामयाब होते। 2008 में कांग्रेस को बचाया, 2019 में मोदी को दिया प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद

साल 2008 में भी जब एटॉमिक एग्रीमेंट के मुद्दे पर लेफ्ट ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम ने उनका साथ नहीं दिया। उल्टा सरकार को सपोर्ट करने का फैसला किया जिसकी वजह से मनमोहन सिंह की सरकार बच गई।

बात साल 2019 की है। संसद में विदाई भाषण चल रहा था। एक-एक करके सभी सदस्य धन्यवाद भाषण दे रहे थे। बारी जब मुलायम के बोलने की आई तो मुलायम ने कहा कि वो चाहते हैं की नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनें।

अटल की सरकार गिराई फिर सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया बात 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के गिराने के बाद मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस को सपोर्ट का वादा किया था। उनके सपोर्ट करने के दावे पर ही सोनिया ने सरकार को 272 लोगों के समर्थन की घोषणा कर दिया।

लेकिन फिर बाद में मुलायम मुकर गए इससे सोनिया की बहुत फजीहत हुई। पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘माई कंट्री, माई लाइफ’’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है कि 22 अप्रैल की देर रात मेरे पास जॉर्ज फर्नांडीस का फोन आया। उन्होंने मुझसे कहा, लालजी मेरे पास आपके लिए अच्छी न्यूज है। सोनिया सरकार नहीं बना पाएंगी।

उन्होंने कहा कि अपोजिशन का एक महत्वपूर्ण नेता आपसे मिलना चाहता है। लेकिन ये बैठक न तो आपके घर पर हो सकती है और न मेरे घर पर। ये बैठक जया जेटली के सुजान सिंह पार्क वाले घर में होगी। जया आपको अपनी कार में लेने आएंगीं।

आडवाणी आगे लिखते हैं, “जब मैं जया जेटली के घर पहुंचा तो वहां फर्नांडीस और मुलायम सिंह यादव पहले से ही मौजूद थे। फर्नांडीस ने मुलायम की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘हमारे दोस्त का वादा है कि उनकी पार्टी के 20 सदस्य किसी भी हालत में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बातों का समर्थन करेंगे।

मुलायम ने फर्नांडीस की कही बात दोहराते हुए कहा कि आपको भी मुझसे एक वादा करना होगा कि आप दोबारा सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करेंगे। मैं चाहता हूं कि चुनाव दोबारा हों। मैं इसके लिए तुरंत राजी हो गया।

मुलायम ने 2 शादियां की थीं, दूसरी पत्नी का नाम बहुत दिनों तक छुपाए रखा
पर्सनल लाइफ की बात करें तो मुलायम सिंह यादव की 2 शादी हुई थी। पहली शादी 1957 में मालती देवी से हुई थी। 2003 में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद उन्होंने साधना गुप्ता से दूसरी शादी की। इस रिश्ते को मुलायम ने बहुत दिनों छुपा कर रखा था।

आम पब्लिक को इसका तब पता चला जब आय से अधिक संपत्ति के मामले में मुलायम ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट जमा कर बताया की उनकी एक और पत्नी साधना गुप्ता हैं। मुलायम और साधना के बेटे प्रतीक यादव हैं। प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव इस समय बीजेपी की नेता हैं।

परिवारवाद के लगे आरोप, 2017 में अखिलेश को ही पार्टी से निकाल दिया मुलायम पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप भी लगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा को 5 सीटों पर जीत मिली और इन पांचों सीटों पर सिर्फ यादव परिवार के लोग ही जीते थे।

मुलायम ने 2012 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में अखिलेश को हार मिली और योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने। 2017 के चुनाव से ठीक पहले ही यादव परिवार में मनमुटाव हो गया। अखिलेश यादव और शिवपाल के बीच की नाराजगी सबके सामने आ गयी। और इसको बीजेपी ने जमकर भुनाया। अखिलेश यादव को मुलायम ने पार्टी से ही निकाल दिया कुछ दिन बाद अखिलेश ने नेताजी को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया।

मुलायम ने चुनाव प्रचार में भाग भी नहीं लिया। हार का जिम्मेदार अखिलेश को मानते हुए कहा कि अखिलेश ने मुझे अपमानित किया है। मुलायम ने यह भी कहा कि बेटा अगर बाप के प्रति वफादार नहीं है तो वो किसी का भी नहीं हो सकता। मुलायम की इच्छा के खिलाफ अखिलेश ने मायावती के साथ मिल कर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा।

एक साल पहले तक इस गठबंधन के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। रिजल्ट आया और गठबंधन की जबरदस्त हार हुई। चुनाव बीतते ही यह गठबंधन भी टूट गया। 10 अक्टूबर को गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। उनके निधन से सपा ने अपना गार्जियन, राजनीति ने एक जमीनी नेता और समाज ने एक लोहियावादी विचारधारा के समाजवादी नेता को खो दिया।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर संदीप यादव कहते हैं कि भारतीय राजनीति और सामाजिक व्यवस्था में उनके योगदान को यद् देश हमेशा याद रखेगा।



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