MTH Hospital : ऐसे तो फिर हो गया हासिल लक्ष्य | MTH Hospital: so how will get the goal to be achieved | Patrika News

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MTH Hospital : ऐसे तो फिर हो गया हासिल लक्ष्य | MTH Hospital: so how will get the goal to be achieved | Patrika News

दरअसल, केंद्रीय लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मातृ-शिशु मृत्यु दर में गिरावट लाने के लिए लक्ष्य योजना शुरू की है। इसमें इंदौर के पीसी सेठी, बाणगंगा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सहित एक दर्जन छोटे-बड़े अस्पताल शामिल हैं। मेडिकल कॉलेज के माध्यम से संचालित एमटीएच हॉस्पिटल भी लक्ष्य के तहत अपनी सेवाओं में
सुधार की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। 300 बेड के इस हॉस्पिटल के प्रसव कक्ष, मेटरनिटी वार्ड, गायनिक वार्ड, एसएनसीयू की चिकित्सा व्यवस्थाओं में गुणात्मक सुधार लाने की कवायद की जा रही है। ऑपरेशन थियेटर, लेबर रूम, एसएनसीयू को अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरण से लैस किया गया है। विशेष चिकित्सक, मेडिकल ऑफिसर,स्वास्थ्य अधिकारियों सहित नर्सिंग स्टाफ का सर्कल बनाया गया है, जो चिकित्सा सुविधाओं की मॉनिटरिंग कर रहा है, लेकिन यहां मौजूद गेप लक्ष्य तक पहुंचने की राह में रोड़ा रहेगा। यह गेप मरीजों के लिए भी परेशानी है और उन्हें बेहतर उपचार नहीं मिल पा रहा है।

चार बजे बाद नहीं कटती भर्ती पर्ची इंदौर ही नहीं, आसपास के जिलों के मरीज बड़ी संख्या में एमवायएच में रैफर किए जाते हैं। अस्पताल प्रबंधन ने यहां के मेटरनिटी वार्ड को एमटीएच में शिफ्ट कर इसे संभाग का सबसे बड़ा प्रसूति हॉस्पिटल बनाया है, लेकिन यहां मरीजों के सामने काफी परेशानियां हैं। बताया जाता है कि चार बजे बाद स्टाफ मनमर्जी पर उतर आता है। ज्मिेदारों की लापरवाही और सतत मॉनिटरिंग नहीं होने का फायदा स्टाफ उठा रहा है। चार बजे बाद यदि मरीज आता है तो भर्ती पर्ची तक नहीं कटती। मरीज के परिजन परेशान होते रहते हैं।

आधा दिन होते टेस्ट अव्यवस्थाओं की हद तो यहां तक है कि यदि कोई मरीज गंभीर स्थिति में आ जाए तो भर्ती होने में परेशानियों का सामना तो करना ही पड़ता है, जांच आदि से भी उसे दो-चार होना पड़ता है। बताया जाता है कि दोपहर बाद लैब टेक्निशियन से लेकर अन्य स्टाफ गायब हो जाता है। ऐसी स्थिति में मरीजों के परिजन को जांच के लिए एमवाय हॉस्पिटल या फिर निजी लैब जाना पड़ता है। साथ ही साफ-सफाई भी बराबर नहीं होती हैं।

निजी प्रैक्टिस पर ध्यान बताया जा रहा है कि यहां पर पर्याप्त डॉक्टर्स व स्टाफ है, लेकिन प्रभारी से लेकर डॉक्टर्स छुट्टी पर चल रहे हैं। इतना ही नहीं, यहां पदस्थ डॉक्टर्स निजी प्रैक्टिस पर अधिक ध्यान देते हैं। इसी वजह से ओपीडी के समय पर हॉस्पिटल में मौजूद नहीं रहते। समय पर हॉस्पिटल नहीं आते। ज्मिेदारों की शह पर ही अंधेर नगरी चौपट राजा वाली कहावत यहां चरितार्थ हो रही है। इस संबंध में एमवायएच अधीक्षक डॉ. पीएस ठाकुर से चर्चा करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने कोई जबाव नहीं दिया।

लक्ष्य में बाजी मारने पर यह होगा फायदा लक्ष्य कार्यक्रम के तहत प्रसूति कक्ष और ऑपरेशन थियेटर में गुणवत्तापरक सुधार किया जाता है, जिसका आकलन एनक्यूएएस (राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक)के जरिये किया जाएगा। एनक्यूएएस पर 70 प्रतिशत अंक पाने वाली प्रत्येक सुविधा को लक्ष्य प्रमाणित सुविधा का प्रमाणपत्र दिया जाएगा। एनक्यूएएस अंकों के अनुसार लक्ष्य प्रमाणित सुविधाओं का वर्गीकरण किया जाएगा, जिसमें 90 प्रतिशत, 80 प्रतिशत और 70 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल करने वाली सुविधाओं को इसी के अनुसार प्लेटिनम, स्वर्ण और रजत बैज प्रदान किए जाएंगे। इसके बाद सरकार अतिरिक्त फंड अस्पताल के विकास के लिए देती है, जिससे मरीजों को और बेहतर सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है।



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