MP में मौत का तांडव की ऐसी कहानियां कि हर किसी की आंखें छलक उठीं with video | Such stories of death in jabalpur hospital that everyone’s eyes lit up | Patrika News

187
MP में मौत का तांडव की ऐसी कहानियां कि हर किसी की आंखें छलक उठीं with video | Such stories of death in jabalpur hospital that everyone’s eyes lit up | Patrika News

MP में मौत का तांडव की ऐसी कहानियां कि हर किसी की आंखें छलक उठीं with video | Such stories of death in jabalpur hospital that everyone’s eyes lit up | Patrika News

दरअसल जिले के उदयपुर बरेला निवासी देवलाल बरकडे़ 24 जुलाई को एक्सीडेंट होने के बाद अस्पताल की पहली मंजिल के वार्ड नम्बर 4 में भर्ती थे। वे तो बचा लिए गए और दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर दिए गए, लेकिन बेटी का पता नहीं चल रहा था। वे हर किसी से 22 वर्षीय संगीता के बारे में पूछते रहे कि अनहोनी तो नहीं हो गई। रात में खबर आई कि वह भी खाक हो गई। इससे टूटे देवलाल ने बताया कि मेरी बेटी संगीता मेरे साथ थी। दोपहर में अचानक आग भड़क उठी। हर तरफ धुआं-धुआं हो गया। अस्पताल के कर्मचारी अपनी-अपनी जान बचाने में जुटे थे। सब यहां-वहां भाग रहे थे। मौत मेरे सामने तांडव कर रही थी। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हुआ है।

चश्मदीद की जुबानी: बिजली आई तो धमाके की आवाज सुनी
सास हल्की बाई दस दिन से भर्ती थी। ससुर लुकई भी साथ थे। अचानक बिजली चली गई। थोड़ी देर बाद बिजली आई, तो धमाके की आवाज सुनाई दी। समझ नहीं आया कि क्या हुआ ओर चंद पलों में पूरा माजरा बदल गया। मरीज और उनके परिजन चीखने लगे। अफरा-तफरी मच गई। धुएं के कारण दम घुट रहा था। कई लोग बेहोश हो गए थे। जैसे तैसे सास हल्की को लेकर ससुर और मैं बाहर निकले।
(जैसा शहपुरा भिटौनी निवासी कृष्णा बाई ने बताया)

सख्ती से नियम पालन नहीं
अस्पतालों के लिए तय सुरक्षा मानकों का पालन होना चाहिए। लगातार जांच होनी चाहिए। नियमों का पालन नहीं होने से ऐसी दुखद घटनाएं होती हैं। विदेश में निरीक्षण कर अस्पताल संचालन की जो अनुमति देता है, ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी उसी अधिकारी की होती है। अपने यहां इस संबंध में सख्ती नहीं बरती जाती।
– जस्टिस पीपी नावलेकर, पूर्व लोकायुक्त मप्र

प्लास्टर चढ़वाने आए थे, जिंदगी हार गए
पैर में फ्रैक्चर के कारण दुर्गेश सिंह इसी अस्पताल में भर्ती थे। प्लास्टर चढ़ाया गया था। सोमवार को डिस्चार्ज होने वाले थे। बडे़ भाई मंगल सिंह ने बताया कि एक परिचित के यहां गमी में दुर्गेश ने उन्हें भेज दिया। कहा कि लौट आएं तो फिर घर चलेंगे। भाई को अकेला अस्पताल में छोड़कर चले गए थे। कुछ देर में लौटकर उसे डिस्चार्ज कराता, लेकिन अस्पताल से निकलने के कुछ देर बाद ही पता चला कि आग लग गई है। मंगल कह रहे थे कि यदि वह तब अस्पताल में होते तो शायद भाई को बचा लेते।

बेटी को देख दिनभर की थकान हो जाती थी दूर
अस्पताल में कार्यरत अधारताल न्यू कंचनपुर निवासी वीर सिंह का विवाह डेढ़ साल पूर्व वर्षा से हुआ था। बहनों ने बताया कि चार माह पूर्व ही वीर सिंह पिता बने थे। घर पहुंचते ही वे बेटी को गोद में उठाते, तो दिनभर की थकान दूर हो जाती थी। पत्नी वर्षा को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस पति को उसने हसीं-खुशी ड्यूटी पर भेजा था, अब वह कभी नहीं लौटेगा। इधर, मां सरिता ठाकुर का भी रो-रोकर बुरा हाल था। उनके घर में पूरे क्षेत्र के लोग जमा थे।

नर्स महिमा जाटव नरसिंहपुर की रहने वाली थी। वह अहिंसा चौक के पास किराए से रहती थी। अस्पताल में जब आग लगी, तो महिमा ने कुछ मरीजों को बचाने का प्रयास किया, लेकिन धुएं के कारण उसका दम घुटा और वह गिर गई। इसके बाद आग ने उसे चपेट में ले लिया। परिजन ने बताया कि महिमा को नहीं पता था कि सेवा करते-करते वह अपनी जिंदगी ही दांव पर लगा देगी।

सोचा था सेहत बेहतर हो जाएगी: घमापुर खटीक मोहल्ला निवासी तन्मय विश्वकर्मा को सुबह से कमजोरी लग रही थी। उसने सोचा कि यदि ड्रिप लगवा लेगा, तो शायद स्वास्थ्य बेहतर हो जाएगा। तन्मय अस्पताल पहुंचा और ड्रिप लगवाई। वह अकेला था, लेकिन वह भी आग की चपेट में आ गया। खुद को बचा नहीं सका और आग की लपटों में घिरने के कारण उसकी भी मौत हो गई। जानकारी लगते ही चाचा संतोष अस्पताल पहुंचे। अफरा-तफरी के बीच जानकारी ली, तो पता चला कि तन्मय उन्हें छोड़कर इस दुनिया से जा चुका है।

…और भांजे को मौत ने निगल लिया
भांजे अमर और रिश्तेदार अनुसुइया के शवों को जैसे ही राजेश यादव ने देखा, तो वह बदहवास हो गया। राजेश के मुताबिक उनके रिश्तेदार मानिकपुर (बांदा) निवासी जियालाल की पत्नी दीपा भर्ती थीं। मैं भांजे चित्रकूट निवासी अमर यादव और अनुसुइया के साथ दीपा को देखने आया था। अफरा-तफरी के बीच दीपा आवाज लगाने लगी, तो मैंने दीपा को उठाया और बाहर की तरफ दौड़ा। साथ में जियालाल था। अमर और अनुसुइया अंदर ही रह गए थे। आग बुझी, तो अनहोनी का पता चला।

हाईकोर्ट ने पूछा था- अनफिट भवनों में कैसे चल रहे अस्पताल:याचिका में उठाया गया था फायर सेफ्टी का मुद्दा…
इससे पहले मप्र हाईकोर्ट ने विगत 30 जून को जनहित याचिका पर राज्य सरकार से पूछा था कि मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी जबलपुर ने नियम विरुद्ध तरीके से कई अनफिट भवनों में अस्पताल संचालन के लिए पंजीयन कैसे प्रदान किया? कोर्ट ने सरकार को आखिरी अवसर प्रदान किया था। लेकिन अब तक राज्य सरकार का जवाब नहीं आया है।

लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन मध्यप्रदेश के अध्यक्ष विशाल बघेल ने याचिका में कोर्ट को बताया था कि जबलपुर के कुछ निजी अस्पतालों के पास मप्र नगर विकास एवं आवास विभाग से बिल्डिंग कंपलीशन सर्टिफिकेट नहीं मिला था। इन्हें फायर एनओसी भी नहीं मिली थी।

इसके बावजूद जबलपुर सीएमएचओ ने मनमाने ढंग से इन अस्पतालों का पंजीयन कर दिया। फायर सेफ्टी के बिना अस्पताल संचालन की अनुमति देने से मरीजों, परिजन के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। सीएमएचओ द्वारा अवैध रूप से अस्पताल संचालन की अनुमति दी जाती है और जब शिकायतें आती हैं तो मामले को दबाने के लिए अवैध पंजीयन निरस्त कर दिया जाता है। आग्रह किया गया कि सीएमएचओ, उनकी नर्सिंग होम निरीक्षण टीम और नर्सिंग होम शाखा प्रभारी के खिलाफ जांच कर उचित कार्रवाई की जाए।

जिम्मेदारी तय कर हो कार्रवाई
जब हम हेलमेट नहीं लगाते, तो पुलिसकर्मी चालान काट देते हैं। लेकिन, इन अस्पतालों पर नियमों की अवहेलना के लिए कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जाती, यह बड़ा प्रश्न है। डिजास्टर मैनेजमेंट का फंड कहां जाता है? इतनी हृदयविदारक घटना के अस्पताल के साथ ही इन जिम्मेदार अफसरों की भी बराबर की गलती है। जिम्मेदारी तय कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
– पंकज दुबे, अधिवक्ता मप्र हाईकोर्ट



उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News