Movie Review… एंटरटेनमेंट की सही डोज नहीं देती ‘डॉक्टर जी’ | Movie Review Doctor G | Patrika News
आर्यन शर्मा @ जयपुर. आयुष्मान खुराना एक बार फिर लीक से हटकर फिल्म के साथ हाजिर हैं। ‘डॉक्टर जी’ में वे ‘गाइनेकोलॉजिस्ट’ बने हैं, लेकिन इस बार ‘आयुष्मान टच’ जरा फीका पड़ गया है। बेशक, कॉन्सेप्ट अलग है, लेकिन ‘डॉक्टर जी’ एंटरटेनमेंट की वह डोज नहीं दे पाती, जिससे दर्शकों की ‘तबीयत’ खिल जाए। समाज ने पढ़ाई से लेकर प्रोफेशन तक स्त्री-पुरुष के बीच एक लकीर खींच दी है, फिल्म में इन्हीं पूर्वाग्रहों को तोड़ने का प्रयास है। हालांकि ‘डॉक्टर जी’ में पूरा संदेश सतही स्तर का है। दरअसल, ‘डॉक्टर जी’ वास्तव में दर्शकों की ‘नब्ज’ को सही तरह से भांप नहीं पाई, जिससे मनोरंजन के लिहाज से सॉलिड प्रिस्क्रिप्शन नहीं दे सकी।
कहानी में एमबीबीएस कर चुके भोपाल के उदय गुप्ता का सपना ऑर्थोपेडिक डॉक्टर बनने का है, लेकिन पीजी एंट्रेंस में रैंक कम आने की वजह से उसे मजबूरी में गाइनेकोलॉजी में दाखिला लेना पड़ता है। हालांकि उसकी ऑर्थो को लेकर चाहत कम नहीं हुई है। यही वजह है कि वह गाइनेकोलॉजी से निकलने के रास्ते के लिए हाथ-पैर मार रहा है। वह मेडिकल कॉलेज में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में एकमात्र मेल ‘स्टूडेंट’ है। चूंकि वह सीरियस नहीं है, ऐसे में यहां उसके लिए चुनौतियों का अंबार लग जाता है…।
स्टोरी में पैनापन नहीं है। स्क्रीनप्ले में बिखराव है। निर्देशन में सिनेमाई चमक का अभाव है। इस कारण यह फिल्म टीवी सीरियल जैसी ‘अनुभूति’ देती है। ह्यूमर और इमोशंस के बैलेंस में भी झोल है। गीत-संगीत कमजोर कड़ी है। बैकग्राउंड स्कोर ठीक है। एडिटिंग की गुंजाइश है। करीब दो घंटे के रन टाइम के बावजूद फिल्म बोरिंग-सी महसूस होने लगती है। कुछ कॉमेडी दृश्य और संवाद माहौल में थोड़े खुशियों के रंग भरते हैं। एक दृश्य में फिल्म का नायक अपनी झिझक को लेकर कहता है, ‘मैंने अपने मोहल्ले में लड़कों को क्रिकेट खेलते हुए देखा है और लड़कियों को बैडमिंटन’। यही संवाद बयां कर देता है कि समाज ने स्त्री और पुरुष को किस तरह बांट रखा है। ‘डॉक्टर जी’ में कुछ समानांतर कहानियां चलती रहती हैं, इसलिए कभी-कभी ऐसा लगता है कि सब कुछ गड़बड़ा गया है। यह एक से अधिक संदेश देती है और यही बात दर्शकों को फिल्म से थोड़ा दूर ले जाती है। सिनेमैटोग्राफी बढि़या है। फ्रेम दर फ्रेम फिल्म को अच्छे तरीके से प्रजेंट किया गया है।
आयुष्मान खुराना की एक्टिंग नेचुरल है, वह इस तरह के किरदार में आसानी से ढल जाते हैं, लेकिन अब यह दोहराव जैसा हो गया है। रकुल प्रीत सिंह को कम ‘मैदान’ मिला है, जिसमें उनकी परफॉर्मेंस ईमानदार और दिलकश है। शेफाली शाह ने एक्टिंग का गोल्डन रन जारी रखा है। वह लगातार खुद को बेहतरीन अभिनेत्री साबित कर रही हैं। शीबा चड्ढा की अपीयरेंस हमेशा स्क्रीन को रोशन करती है। उनका ‘उदय’ की मां का किरदार मजेदार है और वह अपनी अदायगी से दर्शकों के चेहरे पर हंसी लाती हैं। चाहे वह फूड ब्लॉगिंग में हो या ऑनलाइन डेटिंग में, सब कुछ कोमल क्षणों से ओत-प्रोत है। सपोर्टिंग कास्ट में आयशा कादुस्कर, इंद्रनील सेन गुप्ता, प्रियम साहा और अन्य कलाकारों का काम ठीक है। बहरहाल, फिल्म सोशल-कॉमेडी की वह ‘मेडिसिन’ नहीं देती, जिसकी उम्मीद आप ‘डॉक्टर जी’ से कर रहे हैं।