ज़िन्दगी में कई ऐसे मौके आते हैं जब हमें मर जाना सबसे आसान लगता है. जब हम खुद को परेशानियों से इतना घिरा हुआ पाते हैं कि बचना नामुमकिन हो जाता है. लेकिन इन सबके बावजूद, मौक़ा मिलते ही हम उन परिस्थितियों से भागकर कहीं दूर निकल आते हैं. तब आज़ादी का और अपने ज़िंदा रहने की ज़रुरत का एहसास होता है.
गार्थ डेविस द्वारा निर्देशित ऑस्ट्रेलियन फिल्म “लॉयन” आपको ज़िंदा रहने और लड़ने की इसी ललक के एक और क़दम क़रीब ले आती है.
‘लॉयन’ बुरहानपुर के पास स्थित खंडवा के एक छोटे बच्चे सरू (सनी पवार) की कहानी है. सरू के परिवार में उसका बड़ा भाई गुड्डू (अभिषेक भराते), छोटी बहन शकीला और माँ (प्रियंका बोस) है. बेहद गरीब होने के कारण सरू का बड़ा भाई और माँ दोनों ही काम करते हैं. एक दिन माँ के काम पर जाने के बाद जब सरू का बड़ा भाई गुड्डू काम पर जाने लगता है तो वो भी साथ चलने की ज़िद करता है. कई बार मना करने के बाद आखिरकार गुड्डू उसे साथ ले जाता है. उसके बाद हालत कुछ ऐसे बनते हैं कि सरू खो जाता है और अपने गाँव से 1600 किलोमीटर दूर बंगाल पहुँच जाता है. हिन्दी भाषी होने के कारण सरू को बंगाल में बहुत परेशानी होती है. कुछ दिनों तक घर का रास्ता ढूँढने के बाद वो कूड़ा बीनकर पेट भरने लगता है.
एक दिन एक पढ़े-लिखे लड़के की नज़र सरू पर पड़ती है और वो उसे पुलिस थाने ले जाता है. पुलिस सरू की गुमशूदगी का इश्तेहार छपवाकर उसे अनाथाश्रम में भरती कर देती है. वहाँ से सरू को एक ऑस्ट्रेलियन जोड़ा गोद ले लेता है. सरू को गोद लेने के कुछ दिन बाद ही वो लोग एक और लड़के को गोद लेते हैं जिसकी मानसिक स्थिति स्थिर नही है. धीरे-धीरे सरू इन लोगों को अपना लेता है और एक नयी पहचान के साथ जीता है. वो अपना बीता हुआ कल भूल जाता है. पर एक दिन अचानक एक भारतीय दोस्त के घर दावत में उसे कुछ पुराना याद आता है. इसके बाद उसे एहसास होता है कि वो इन लोगो के बीच से नहीं है. उसका घर कहीं और है. और फिर वो अपनी असली माँ और भाई को ढूँढने की जद्दोजहद शुरू करता है. क्या भारत से हज़ारों किलोमीटर दूर देश में बैठकर सरू अपने परिवार को ढूंढ पाएगा? क्या उसकी ये पहल ठीक है? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब आपको फिल्म देखकर मिलेगा.
फिल्म की कहानी सरू ब्रिएर्ली द्वारा लिखी गयी नॉन-फिक्शनल बुक ‘अ लॉन्ग वे होम’ पर आधारित है. फिल्म के स्क्रीनराइटर लूक डेविस ने बहुत ही काबिले तारीफ़ काम किया है. उन्होंने कहानी के मर्म को ज़िंदा रखते हुए हर ज़रूरी सीन को समेटने की कोशिश की है.
फिल्म में भारतीय कलाकारों की भरपूर मौजूदगी इसे दिल के करीब करती है. नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी, दीप्ती नवल और तsunnypawaar
न्मिष्ठा चैटर्जी जैसे सितारों ने अहम किरदार निभाये हैं. देव पटेल फिल्म के सेकंड हाफ में नज़र आये मगर एक पल के लिए भी डगमगाए नही. यहाँ खासतौर पर नन्हे से सनी पवार की बात करना चाहूंगी. उस बच्चे की ऊर्जा और अभिनय क्षमता देखकर अच्छे-अच्छे कलाकार पानी भरे. इतने दिग्गज सितारों के सामने भी आपकी नज़र सिर्फ उस नन्हे से बच्चे पर टिकी रहेगी.
अंत में सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि इंसान का ज़मीर और 6th सेंस हमेशा जगा रहता है लेकिन हम ही उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं. अगर हम एक पल के लिए ठन्डे दिमाग से अपने दिल की सुने तो कई मुश्किलों से बच सकते हैं.