एक मौत जो सवाल नही सुलह दे गयी, मुसलामानों ने लगाए राम-नाम सत्य के नारे हिन्दुओं ने उसे शमशान में दफनाया

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किताबों में पढ़ा था कि हर धर्म से बड़ा इंसान है. लेकिन असल ज़िन्दगी में कभी ये बात सच होती नही दिखी. पर लगता है कि कलयुग के इस कल में कुछ अच्छा होने को है. एक शख्स है जो दुनिया से जा चुका है मगर उसने इंसानियत को ज़िंदा कर दिया है. मुसलमानों के लिए वह रिज़वान था. हिंदुओं के लिए चमन. लेकिन डॉक्टरों के लिए वह सिर्फ 24 साल का मानसिक तौर पर अस्वस्थ शख्स था. बुधवार की शाम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में काठगर इलाके में अनोखे किस्म का अंतिम संस्कार देखने को मिला. यहां बेमिसाल शवयात्रा निकाली गई, जिसमें राम नाम सत्य के साथ अल्ला हू अकबर के नारे लगाए गए. पहले अर्थी उठाई गई बाद में मृतक रिज़वान उर्फ चमन को दफ्न किया गया. शवयात्रा निकाले जाने के लिए दोनों ही समुदाय के लोग उपस्थित थे. पुलिस भी इस दौरान मौके पर थी, ताकि किसी प्रकार की अप्रिय घटना न हो.

शवयात्रा जब निकाली जा रही थी, तब सैकड़ों लोग अपने घरों से बाहर आ गए थे. वे शवयात्रा से जुड़े इस अजब नजारे को देखकर चकित थे. चूंकि एक शख्स की अर्थी दो धर्म के लोग उठा रहे थे. राम नाम सत्य के साथ अल्ला हू अकबर के नारे लगाते उसे श्मशान घाट तक ले गए.

मुरादाबाद के डीएसपी एस.के गुप्ता ने इस घटना की जानकारी देते हुए बताया, “दास सराय में रहने वाले राम किशन सैनी के परिवार ने दावा किया कि रिज़वान उर्फ चमन उनका बेटा था. वह 2009 से लापता था. 2014 में वह उन्हें दास सराय से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर मिला था. इसी बीच असालतपुरा में रहने वाले सुभान अली के परिवार ने भी कहा कि वे भी बीते पांच सालों से उस मानसिक तौर पर अस्वस्थ शख्स की देखभाल कर रहे थे. बाद में उन्होंने ही उसका नाम रिज़वान रखा था.”

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गांव में इसी मसले पर तब पंचायत की एक बैठक भी हुई थी. उसमें फैसला हुआ था कि दोनों परिवार रिज़वान उर्फ चमन का ख्याल रखेंगे. महीने के वह 15-15 दिन दोनों परिवारों के पास बारी-बारी से रहेगा. रोचक बात है कि अंतिम संस्कार को लेकर पहले दोनों समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए थे. हिंदू परिवार जब मृतक के अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहा था, तभी इसकी खबर सुभान परिवार को मिली. उन्होंने दावा किया कि शख्स को मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार दफ्नाया जाएगा, जिस पर दोनों समुदाय आमने-सामने आ गए. पुलिस को इसके बाद हस्तक्षेप करना पड़ा और दोनों समुदायों ने मिल-जुल कर अंतिम संस्कार का फैसला किया.