पैडमैन तो बहुत सुन लिया, आज आपको रियल लाइफ पैड वोमन से मिलवाते हैं

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अरूणाचलम मुरूगनाथन की ज़िन्दगी पर बनी पैडमैन रिलीज़ हो चुकी है और अच्छी कमायी कर रही है. फिल्म केर ज़रिये आप ये तो जान ही गए हैं कि मुरूगनाथन ने ग्रामीण महिलाओं की परेशानी दूर करने के लिए उनकी खातिर सस्ते सैनेटरी नैपकीन बनाने की मशीन तैयार की. इसके अलावा भी उनका संघर्ष काफी लंबा रहा है.

लेकिन आज हम आपको पैडमैन से इतर एक ‘पैडवुमन’ के बारे में बताने वाले हैं. हम बात कर रहे हैं सुहानी मोहन की.  सुहानी ने लाखों की नौकरी छोड़कर महिलाओं की परेशानियों से दो-चार होने की ठानी. जानते हैं कैसे एक इन्वेस्टमेंट बैंकर आज ‘पैडवुमन’ बनकर सफलता की नयी इबारत लिख रही है.

स्टार्टअप से किया स्टार्ट

सुहानी मोहन सरल डिजाइंस नाम के स्टार्टअप की उप-संस्थापक हैं. मुंबई स्थ‍ित यह स्टार्टअप ना सिर्फ देश के सैकड़ों गांवों में बल्कि बांग्लादेश और यूनाइटेड अरब अमीरात जैसे देशों में सक्रिय है. सुहानी ने सरल डिजाइंस की शुरुआत अपने को-फाउंडर आईआईटी मद्रास ग्रेजुएट मशीन डिजाइनर कार्तिक मेहता के साथ मिलकर की. 2015 में बहुत ही छोटे स्तर पर शुरू हुआ ये स्टार्टअप आज ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है.

इंदिरा नूई से पैडवुमन बन गयी

सुहानी ने बताया कि उनकी मां न्यूक्ल‍ियर साइंटिस्ट हैं. वह बचपन से ही सुहानी को ‘इंदिरा नूई’ की तरह बनने के लिए प्रेरित करती थीं. सुहानी के मुताबिक उन्होंने 2011 में आईआईटी मुंबई से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने डॉएचे बैंक में इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर नौकरी की. वह बैंक की सीएसआर गतिविधियों में हिस्सा लेती थीं. इसी दौरान वह ग्रामीण महिलाओं की परेशानी से रूबरू हुईं.

सुहानी ने बताया, ”मैंने देखा कि महिलाएं पीरियड के दौरान सफाई को लेकर जागरूक नहीं हैं. गांवों में हालत इतनी बदतर थी कि महिलाएं सैनिट्री नैपकीन नहीं इस्तेमाल करती थीं. वे लोग कपड़े का इस्तेमाल करते थे और सफाई न होने की वजह से कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझती थीं.”

परखने के बाद राज़ी हुए माता-पिता

ग्रामीण महिलाओं की मुश्किलों को समझने के बाद सुहानी ने उनके लिए कुछ करने की ठानी. जब उन्होंने अपने माता-पिता को बताया तो वो इस आइडिया से खुश नहीं थे. उन्हें सुहानी का ये बिजनेस आइडिया पसंद नहीं आया. सुहानी जको अपने माता-पिता को मनाने में 2 महीनों से भी ज़्यादा का समय लग गया. लेकिन अपनी रज़ामंदी देने से पहले उनके माता-पिता ने उनके आइडिया को अपने स्तर पर जांचा-परखा, कई सवाल पूछे और फिर अंततः मान गए.

Suhani mohan -

अपने सपने को ही करियर बना लिया

सुहानी ने बताया कि अपने एंटरप्रेन्योर बनने के सपने को उन्होंने ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं से जोड़ते हुए सस्ते सैनेटरी नैपकिन बनाने की योजना पर काम शुरू किया. उनका इरादा न सिर्फ सस्ते पैड बनाने पर था, बल्कि बाज़ार में मौजूद महंगे सैनिटरी नैपकीन के मुकाबले इन्हें क्वालिटी के स्तर पर खड़ा करना भी था.

सुहानी ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने नौकरी छोड़ी और वह टाटा जागृति यात्रा पर गई. इस दौरान 15 दिनों तक देशभर में घूमीं. उन्होंने सैनिटरी नैपकीन बनाने वाली कंपनियों और कई एंटरप्रेन्योर से भी मुलाकात की. इस सफर में वह अरूणाचलम मुरूगनाथन की फैक्ट्री में भी गई थीं. काफी रिसर्च करने के बाद उन्होंने अपने इस सपने को मूर्त रूप दिया और इस तरह सरल डिज़ाइंस का सफर शुरू हुआ.

दोस्तों ने दिखायी दिलचस्पी

कार्तिक महता के साथ उन्होंने महज़ 2 लाख रुपये के खर्च से सरल डिज़ाइंस स्टार्टअप की शुरुआत की. कार्तिक को सुहानी का आइडिया पसंद आया और उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर इसके लिए मशीन तैयार की. आज सुहानी मोहन और कार्तिक मेहता अपने स्टार्टअप की बदौलत न सिर्फ अपने एंटरप्रेन्योर बनने का सपना पूरा कर रहे हैं, बल्क‍ि अपने सपने के ज़रिये सैकड़ों ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बदलने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं.