मायावती की बड़े सियासी एजंडे पर है नजर ।

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मायावती की बड़े सियासी एजंडे पर है नजर ।

दलित एजेंडे को लेकर राज्यसभा में बसपा प्रमुख मायावती के आक्रामक तेवर पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थको से गायब हो रहे उत्साह को वापस लाने की कोशिश का एक हिस्सा है। उनकी नजर वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव पर है। एक के बाद एक चुनाव हार रही बसपा को राजनीतिक संजीवनी की जरूरत है। वह चाहती है कि अगर आने वाले दिनों में किसी महागठबंधन की संभावना बने तो उनकी पार्टी गठबंधन की कड़ी बने। उन्होंने अपने दांव से गेंद विपक्षी दलों के पाले में डाल दी है।

दलों में आपसी होड़
राज्यसभा में मायावती को सभी दलों का साथ भी मिला है लेकिन विपक्ष के सामने असल चुनौती इस एक जुटता को बरकरार रखने की होगी। कांग्रेस दलितों पर अत्याचार, गोरक्षा के नाम पर हत्याएं आदि मुद्दों पर पीछे रहने के बजाय खुद नेतृत्वकारी भूमिका चाहती है। उत्तर प्रदेश की सियासत को ध्यान में रखकर सपा भी बसपा को मुद्दे का पूरा श्रेय नहीं लेने देगी ।

मायावती ने सदन में सहारनपुर काण्ड का मुद्दा उठाया लेकिन बाद में उन्होंने राज्यसभा को सभापति को पत्र लिखकर अपना एजेंडा साफ़ कर दिया। उन्होंने पत्र में स्वयं को गरीब, दलित, आदिवासी, पिछड़ों व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यको को हितैषी बताते हुए कहा कि इन वर्गो के लिए उन्होंने पूरी जिंदगी समर्पित की है। अगर इन वर्गो के हित की बात वह सदन में नहीं उठा पाई तो उनका सदन में रहने का कोई अधिकार नहीं है । मायावती ने सत्तापक्ष आरोप लगाया कि उसके दलित विरोधी रुख की वजह से उन्होंने 2003 में भाजपा की मिलीजुली सरकार से इस्तीफा दे दिया था।

माया की छटपटाहट
पार्टी के कई बड़े कार्यकर्ता मायावती का साथ छोड़ कर भाग चुके है। स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं के पार्टी से जाने के बाद पिछड़े वर्ग व मुसलमानो के बीच उनका आधार कमजोर हुआ । यूपी में उनकी पार्टी प्रमुख विपक्ष जा दर्जा भी हासिल नहीं कर पाई है, जिससे मायावती पूरी तरह छटपटा गई है ।