दिल्ली सरकार का कड़ा फैसला, मैक्स हॉस्पिटल का लाइसेन्स रद्द

1116

 

दिल्ली के उच्च अस्पतालोन में शुमार मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। अस्पताल ने गलत तरीके से एक नवजात बच्चे को मृत घोषित कर दिया था। अस्पताल की इस गलती के लिए उसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। शालीमार बाग में स्थित मैक्स अस्पताल में अब नए रोगियों को नहीं ले जाया जा सकेगा। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा। “नवजात मृत्यु के मामले में लापरवाही अस्वीकार्य थी

बुधवार कोमैक्स अस्पताल ने एक नवजात लड़के को उसकी जुड़वां बहन का एक हफ्ते तक इलाज करने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया और दोनों बच्चों की बॉडी माँ-बाप को एक प्लास्टिक बैग में दे दी। जब दोनों जुड़वाँ बच्चों को दफनाने के लिए ले जाया जा रह था तो पन्नी के अंदर कुछ खलबली हुई जिसने परिवार को चौंका दिया था। इसके बाद जब जब रैपिंग खोली गयी तो देखा कि लड़का सांस ले रहे थे।

max2 -

फिर तुरंत ही बच्चे को एक अन्य अस्पताल ले जाया गया और लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया। इस चौंकाने वाली गलती की जांच के लिए दिल्ली सरकार के तीन सदस्यीय पैनल ने अस्पताल से पूछताछ की। इसके जांच में उन्हे पता चला कि नवजात शिशुओं का इलाज करते समय मैक्स हॉस्पिटल ने नियमों का पालन नहीं किया और दोषी पाया।

पैनल ने बताया कि अस्पताल ईसीजी ट्रेसिंग को समझने में विफल रहा है जिससे  यह जांच हो सकती थी कि बच्चा जीवित था या नहीं। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम ट्रेसिंग या ईसीजी ट्रेसिंग दिल की धड़कन का पता लगाने में मदद करती है।

श्री जैन ने कहा कि अस्पताल उन मरीजों का उपचार जारी रख सकता हैजो वर्तमान में भर्ती हैं, लेकिन किसी नए रोगी को भर्ती नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अस्पताल के मरीज दूसरे अस्पतालों में इलाज के लिए जा सकते हैं।

श्री जैन ने कहा कि पिछले महीने ही उन्होंने मैक्स अस्पताल शालीमार बाग को एक नोटिस जारी किया था। नोटिस में कानून द्वारा अनिवार्य गरीब मरीजों के इलाज में समस्याओं पर सवाल किया गया था।

इस घटना के बाद मैक्स हॉस्पिटल को कड़े गुस्से और विरोध का सामना करना पड़रहा है। मामला सामने आते ही उसने सबसे पहले जुड़वां बच्चों के प्रभारी दोनों डॉक्टरों- एपी मेहता और विशाल गुप्ता को बर्खास्त कर दिया था।

इस प्राइवेट अस्पताल ने माता-पिता से कहा था कि दूसरे बच्चे(एक लड़की) को महत्वपूर्ण चिकित्सा देखभाल की जरूरत होती है और उन्हें इनक्यूबेटर में रखा जाना है। एक रिश्तेदार ने बताया कि “शुरू में अस्पताल ने उनसे कहा तीन दिनों के लिए 1 लाख रुपये का खर्च आएगा और उसके बाद प्रत्येक दिन 50,000 रुपये खर्च होंगेऔर बच्चे को तीन महीने तक रखा जाना ज़रूरी है।

लेकिन जब माता-पिता ने इन खर्चों पर चर्चा करना चाहीतो उन्हें ये बता दिया गया कि शिशु की मृत्यु हो गई है।