Make in India Fact Check: मेक इन इंडिया जोक इन इंडिया है… केसीआर का जवाब पढ़ लीजिए
कोरोना काल के बाद दुनिया की कंपनियां चाइना प्लस वन (China+1) पॉलिसी लेकर चल रही हैं। यह मैन्युफैक्चरिंग में भारत की बढ़ती ताकत का ही नतीजा है कि अब माइनस चाइना (Minus China) की भी बात उठने लगी है। चीन को दुनिया की फैक्ट्री माना जाता है। लेकिन कोरोना काल में चीन की इकॉनमी बुरी तरह प्रभावित हुई है। इससे दुनियाभर की कंपनियों की सप्लाई चेन पर भी बुरा असर पड़ा है। चीन और अमेरिका के बीच खासकर ताइवान को लेकर तनाव चल रहा है। पश्चिम के देश चीन पर भरोसा नहीं करते हैं। इसलिए वहां की कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता पूरी तरह खत्म करना चाहती हैं। ऐसे में भारत उनके लिए पसंदीदा विकल्प बनकर उभरा है। ऐसे में मेक इन इंडिया की अहमियत और बढ़ गई है।
एफडीआई दोगुना हुआ
पीएम मोदी ने 25 सितंबर 2014 को मेक इन इंडिया प्रोग्राम लॉन्च किया था। मेक इन इंडिया ने 27 सेक्टरों में शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं। इसका नतीजा है कि अब कई चीजें देश में ही बनने लगी हैं। डिफेंस सेक्टर की बात करें तो टाटा और एयरबस ने भारत में मिलिट्री एयरक्राफ्ट बनाने के लिए डील की है। इसके अलावा सेना के लिए बड़ी मात्रा में साजोसामान अब देश में ही बनाया जा रहा है। पिछले साल भारत समेत पूरी दुनिया को सेमीकंडक्टर की कमी का सामना करना पड़ा था। अब वेदांत एक विदेशी कंपनी के साथ मिलकर गुजरात में सेमीकंडक्टर बनाने के लिए प्लांट लगा रही है। इसी तरह एपल ने भी भारत में अपने आईफोन बनाने शुरू कर दिए हैं। एफडीआई आकर्षित करने के लिए सरकार ने एक उदार और पारदर्शी नीति बनाई जिससे अधिकांश सेक्टर ऑटोमैटिक रूट के तहत एफडीआई के लिए खुल गए।
देश में फाइनेंशियल ईयर 2014-15 में 45.15 अरब डॉलर का एफडीआई आया था था जो वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 अरब डॉलर के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। यह एफडीआई 100 से अधिक देशों से आया। विदेशी निवेशकों ने भारत में 31 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में 57 सेक्टर्स में निवेश किया। जल्दी ही भारत में एफडीआई का आंकड़ा 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। देश में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए 2020-21 में पीएलआई स्कीम लॉन्च की थी। इस योजना के तहत कंपनियों को प्रॉडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव दिया जाता है। सरकार ने देश में सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले, डिजाइन ईकोसिस्टम विकसित करने के लिए 10 अरब डॉलर की एक इनसेंटिव स्कीम लॉन्च की है।
किन उद्योगों को हुआ फायदा
मेक इन इंडिया की उपलब्धि को खिलौना उद्योग से बेहतर समझा जा सकता है। भारत में खिलौना उद्योग ऐतिहासिक रूप से आयात पर निर्भर रहा है। कच्चे माल, प्रोद्योगिकी, डिजाइन क्षमता आदि की कमी के कारण खिलौनों और उसके कंपोनंट का भारी मात्रा में आयात हुआ। फाइनेंशियल ईयर 2018-19 के दौरान 2,960 करोड़ रुपये के खिलौनों का आयात हुआ। इनमें ज्यादातर असुरक्षित, घटिया, नकली और सस्ते किस्म के थे। सरकार ने इस दिशा में काम करना शुरू किया और 2021-22 के दौरान खिलौनों के आयात में 70 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई।
इससे घरेलू बाजार में खिलौनों की क्वालिटी में भी उल्लेखनीय सुधार आया। फाइनेंशियल ईयर 2021-22 के दौरान 2601.5 करोड़ रुपये के खिलौनों का निर्यात किया गया। वित्त वर्ष 2018-19 के यह आंकड़ा 1,612 करोड़ रुपये था। ऑटो सेक्टर की बात करें तो दुनियाभर की कई कंपनियों ने भारत में अपना प्लांट लगाए हैं। एयरबस और बोइंग भी भारत में फुल एसेंबली यूनिट लगाने की तैयारी में हैं। अगले एक दशक में भारतीय एयरलाइन कंपनियां 2000 से अधिक विमानों का ऑर्डर दे सकती हैं। केमिकल्स और पेट्रोकेमिकल्स सेक्टर में एफडीआई 10 फीसदी बढ़ा है।
मोबाइल सेक्टर
एविएशन सेक्टर में एफडीआई में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सेक्टर में भी एफडीआई में भारी उछाल आई है। माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां आज भारत में दुनियाभर के लिए प्रोग्राम बना रही हैं। चमड़ा उद्योग में एफडीआई इक्विटी में इजाफा हुआ है। भारत दुनिया में फुटवियर बनाने के मामले में दूसरे नंबर पर है। साथ ही वह लेदर एक्सपोर्ट्स के मामले में भी दूसरे नंबर पर है। देश में 200 से अधिक मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थापित हुई हैं। देश से मोबाइल फोन के निर्यात में 250 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।