Maharashtra Politics: बागी विधायकों ने शिवसेना छोड़ी तो सदस्‍यता भी जाएगी? दल-बदल कानून की बारीकियां समझ‍िए

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Maharashtra Politics: बागी विधायकों ने शिवसेना छोड़ी तो सदस्‍यता भी जाएगी? दल-बदल कानून की बारीकियां समझ‍िए

नई दिल्‍ली/मुंबई: महाराष्‍ट्र की राजनीति में रातोंरात तूफान आ गया है। मंगलवार सुबह खबर आई कि शिवसेना के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे से संपर्क नहीं हो पा रहा। कुछ ही देर बाद पता चला कि शिंदे के नेतृत्‍व में शिवसेना के दो दर्जन से ज्‍यादा विधायक गुजरात के सूरत में मौजूद हैं। राज्‍य की महाविकास अघाड़ी सरकार पर बड़ा संकट आ गया है। दावा है कि शिंदे के साथ शिवसेना के ही करीब 25 विधायक हैं। एनसीपी और कांग्रेस के अलावा छोटे दलों और कुछ निर्दलीय विधायक भी सूरत पहुंचे बताए गए हैं। इधर बीजेपी ने भी गोटियां सेट करनी शुरू कर दी हैं। पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस सुबह मुंबई से दिल्ली के लिए रवाना हुए। अब सवाल यह है कि क्‍या ये विधायक पाला बदलेंगे और बीजेपी के खेमे में जाएंगे? अगर ऐसा होता है तो शिवसेना विधानसभा स्‍पीकर के पास जाकर इन विधायकों को दल-बदल कानून के तहत ‘अयोग्‍य’ करार देने की मांग कर सकती है। आइए समझते हैं कि दल-बदल कानून क्‍या है और किन परिस्थितियों में लागू होता है।

दल-बदल कानून क्‍या है?
1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों के इधर-उधर जाने से कई राज्‍यों की सरकारें गिर गईं। ऐसा बार-बार होने से रोकने के लिए दल-बदल कानून लाया गया। संसद ने 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची में इसे जगह दी। दल-बदल कानून के जरिए उन विधायकों/सांसदों को सजा दी जाती है जो एक पार्टी छोड़कर दूसरे में जाते हैं। इसमें सांसदों/विधायकों के समूह को दल-बदल की सजा के दायरे में आए बिना दूसरे दल में शामिल होने (विलय) की इजाजत है। यह कानून उन राजनीतिक दलों को सजा देने में अक्षम है जो विधायकों/सांसदों को पार्टी बदलने के लिए उकसाते हैं या मंजूर करते हैं।

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दल-बदल कब होता है? कौन तय करता है?
कानून के तहत तीन स्थितियां हैं। इनमें से किसी भी स्थिति में कानून का उल्‍लंघन सदस्‍य को भारी पड़ सकता है। विधायिका के पीठासीन अधिकारी (स्‍पीकर, चेयरमैन) ऐसे मामलों में फैसला करते हैं। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, इनके फैसलों को उच्‍च अदालतों में चुनौती दी जा सकती है।

  1. एक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाला ‘स्‍वेच्‍छा से’ उस पार्टी की सदस्‍यता छोड़ दे या विधायिका में पार्टी की इच्‍छा के खिलाफ वोट करे। सदन के भीतर और बाहर जनप्रतिनिधि का आचरण इस बात को तय करने में मदद करता है कि स्‍वेच्‍छा से सदस्‍यता छोड़ी गई है या नहीं।
  2. निर्दलीय चुने गए सांसद/विधायक अगर बाद में किसी पार्टी की सदस्‍यता ले लें।
  3. नामित जनप्रतिनिधियों से संबंधित। कानून के अनुसार, अगर वे नियुक्ति के छह महीनों के भीतर किसी दल में शामिल हो सकते हैं, उसके बाद नहीं।

एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय करने की अनुमति है। शर्त इतनी है कि उस दल के न्यनूतम दो तिहाई जनप्रतिनिधि विलय के पक्ष में हों। ऐसी स्थिति में जनप्रतिनिधियों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा और न ही राजनीतिक दल पर।

दल-बदल के मामलों पर फैसले की कोई समयसीमा नहीं है। ऐसे कई वाकये हैं कि जहां विधानसभा का कार्यकाल खत्‍म हो गया मगर स्‍पीकर फैसला नहीं कर पाए। कई बार ऐसा भी हुआ कि फैसला लंबित रहा और संबंधित विधायक मंत्री बना दिए गए। सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में व्‍यवस्‍था दी थी कि आ‍दर्श स्थिति में स्‍पीकर्स को तीन महीने के भीतर दल-बदल याचिका पर फैसला कर लेना चाहिए।

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ऐसे विधायकों पर क्‍या ऐक्‍शन होता है?
अगर स्‍पीकर/चेयरमैन जनप्रतिनिधि को अयोग्‍य करार दें तो वह उस सत्र के दौरान चुनाव नहीं लड़ सकता। अगले सत्र में वह उम्‍मीदवार हो सकता है। ‘अयोग्‍य’ करार दिए गए किसी भी सदस्‍य को कार्यकाल पूरा होने तक मंत्री नहीं बनाया जा सकता।

कितना प्रभावी है यह कानून?
गोवा, मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान, तमिलनाडु, महाराष्‍ट्र… हाल के दिनों में हमने देखा है कि पार्टियां अपने विधायकों को पाला बदलने से रोकने के लिए रिजॉर्ट में कैद कर देती हैं। दल-बदल कानून का फायदा भी राजनीतिक बदल उठाते रहे हैं। 2019 में गोवा में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायकों ने अपनी विधायक पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया था। उसी साल, राजस्‍थान में छह बसपा विधायकों ने अपनी पार्टी का कांग्रेस के साथ विलय कर दिया। सिक्किम में भी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के 15 में से 10 MLA बीजेपी में आ गए थे।

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महाराष्‍ट्र में क्‍यों आया सियासी भूचाल?
महाराष्‍ट्र की यह सियासी उठापठक एमएलसी चुनाव के नतीजे आने के बाद शुरू हुई। चुनाव में बीजेपी द्वारा पांच सीटें कल जीतने के साथ ही यह सब शुरू हुआ। क्रॉस वोटिंग हुई। बीजेपी नेताओं के मुताबिक शिवसेना के 56 में से उन्हें 52 वोट मिले, एनसीपी के 53 की जगह वोट मिले 57 और कांग्रेस के 44 में से पक्ष में वोट आए 41। वहीं, 106 क्षमता वाली बीजेपी को कुल वोट मिले 133। हाल ही के राज्यसभा चुनाव में भी बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के बाद एमएलसी चुनाव में भी कल इस स्थिति के बाद घटनाक्रम तेजी से बढ़ा। मंत्री एकनाथ शिंदे कई विधायकों के साथ आधी रात के बाद गुजरात के सूरत पहुंच गए। कई विधायकों के सुबह वहां पहुंचने की खबरें थीं। बीजेपी के कई नेता इन विधायकों के संपर्क में हैं।

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