Maharashtra Politics: तिजोरी वाले अजित पवार सबके मददगार, कैसे उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के घाव को कुरेद दिया?
मुंबई: तीन महीने पहले की बात है। ‘दादा’ बार-बार नॉट रीचेबल हो जा रहे थे। दादा यानी अजित पवार। 18 अप्रैल को चचेरी बहन सुप्रिया सुले से पत्रकारों ने सवाल पूछा कि क्या अजित दादा बीजेपी के साथ जाएंगे? सुप्रिया का जवाब था- मेरे पास गॉसिप के लिए वक्त नहीं है। एक जनप्रतिनिधि के रूप में मेरे पास बहुत सारे काम हैं। मेहनत करने वाला नेता हो तो अजित दादा को हर कोई चाहेगा। इस बयान को ढाई महीने भी नहीं बीते होंगे और दादा ने शरद पवार के खिलाफ बगावत कर दी। दादा अब एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की सरकार का हिस्सा हैं। ओहदा मिला है वित्त मंत्री का। यानी तिजोरी की चाबी अजित पवार के पास ही है। अब उद्धव ठाकरे ने अजित दादा से मुलाकात की है। महाराष्ट्र में चल रही सियासी हलचल के बीच इसके क्या मायने हैं? क्या उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के पुराने घाव को कुरेदने की कोशिश की है। आइए जानते हैं।
उद्धव ने कैसे शिंदे को पहुंचाई चोट?
आखिर अजित पवार से मिलकर उद्धव ठाकरे ने कैसे एकनाथ शिंदे को चोट पहुंचाई है, यह समझने के लिए पहले उद्धव का बयान बताते हैं। उद्धव ने कहा, ‘मैंने अजित पवार के साथ काम किया है और मुझे पूरा भरोसा है कि महाराष्ट्र के लोगों को मदद मिलेगी, क्योंकि खजाने की चाबियां उनके पास हैं। फिलहाल तो सत्ता की लूट-खसोट चल रही है, उसके मुकाबले राज्य के मुद्दे अहम हैं।’ तो क्या उद्धव ठाकरे का अजित पवार से मिलना एकनाथ शिंदे के जख्म पर नमक की तरह है? इसका जवाब जानना मुश्किल नहीं हैं। दरअसल जब उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार में अजित पवार वित्त मंत्री थे तो उन पर शिंदे खेमे के विधायक फंड आवंटन में भेदभाव का आरोप लगाते थे। तमाम विधायकों के उद्धव से नाता तोड़ने की एक बड़ी वजह यह भी थी। अघाड़ी सरकार में शरद पवार और एनसीपी के नेताओं की बात ज्यादा सुनी जाती थी। जब एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के दर्जनों विधायक गए तो उनका यह दर्द बाहर आया था।
क्या दादा अब शिंदे के विधायकों की मांग पूरी करेंगे?
समय का चक्र एक बार फिर घूमा है। वित्त मंत्री का पद अजित पवार के पास वापस आ गया है। ऐसे में जब शिंदे गुट के विधायक उनसे फंड की मांग करेंगे तो क्या उनकी बात को तवज्जो दी जाएगी? शिंदे के विधायकों की मांग मानी जाएगी या नहीं? महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में भी अब ज्यादा वक्त नहीं है। ऐसे में उद्धव ठाकरे ने अजित ठाकरे से मुलाकात कर कहीं न कहीं शिंदे खेमे को चिढ़ाने का भी प्रयास किया है। जो अजित पवार उद्धव के वित्त मंत्री रहते हुए शिंदे के समर्थक विधायकों की बात को अनसुना कर देते थे, क्या वह फंड के मामले में आसानी से डिमांड पूरी कर देंगे? हालांकि यह भी सच है कि एकनाथ शिंदे अब मुख्यमंत्री हैं और उनके गुट के विधायकों की मांग खारिज करना इतना आसान भी नहीं होगा।
दादा के खिलाफ दिल्ली में लामबंदी नाकाम
दरअसल शिंदे गुट नहीं चाहता था कि वित्त विभाग किसी सूरत में अजित पवार को मिले। संजय राउत के दावे पर यकीन करें तो अजित पवार को वित्त मंत्री का पद मिलने से रोकने के लिए शिंदे गुट दिल्ली गया था। राउत यह भी कहते हैं कि दिल्ली में शिंदे खेमे की बात किसी ने नहीं सुनी। उल्टे शिंदे गुट से साफ तौर पर कहा गया कि अगर आप साथ रहना चाहते हैं तो रहिए नहीं तो जाने के लिए स्वतंत्र हैं। राउत के मुताबिक एक और प्रस्ताव शिंदे गुट के सामने रखा गया था। इसमें कहा गया कि अगर आप चाहते हैं कि वित्त मंत्रालय अजित पवार को न सौंपा जाए तो इसे रख लीजिए लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी अजित पवार को दे दीजिए। राउत का दावा है कि इसके बाद शिंदे गुट के विधायक मायूस होकर चुपचाप दिल्ली से लौट आए और अजित पवार के वित्त मंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया।
अजित पवार अपने खेमे को ज्यादा ताकत देना चाहेंगे
अजित पवार ने जब 2019 में पहली बार शरद पवार से बगावत की थी उस वक्त उनके पास गिने-चुने विधायक ही थे। लेकिन अब अजित पवार के पास 31 विधायकों की ताकत है। दावा तो 43 विधायकों तक का भी है। ऐसे में अजित अगर इन विधायकों को अपने साथ बरकरार रखना चाहते हैं तो उन्हें ताकत देना जरूरी होगा। इसके साथ ही दादा अपने चाचा शरद पवार खेमे के दूसरे विधायकों को भी पाले में लाने की कोशिश करेंगे। अब तक सत्ता में आधी-आधी हिस्सेदारी थी। लेकिन तीसरे यानी अजित पवार खेमे के आने से शिंदे गुट परेशान है। सूत्रों के मुताबिक शिंदे गुट के विधायकों ने सीएम पर दबाव भी डाला कि किसी तरह वित्त मंत्री का पद उधर न जाए। आखिरकार मुख्यमंत्री शिंदे ने ‘ऊपर से आदेश है’ बताकर विधायकों को चुप करा दिया।
दो मराठा क्षत्रपों में संतुलन साधना BJP के लिए चुनौती
बीजेपी के मिशन-2024 में महाराष्ट्र अहम है। यहां लोकसभा की 48 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने गठबंधन में लड़ते हुए 41 सीटें (23 बीजेपी+ 18 शिवसेना) जीत ली थीं। लेकिन इस बार चुनौतियां बिल्कुल अलग हैं। एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों मराठा नेता हैं। बीजेपी को संतुलन बनाते हुए चुनावी मैदान में उतरना होगा। बीजेपी ने महाराष्ट्र की दो बड़ी क्षेत्रीय ताकतों शिवसेना और एनसीपी में बड़ी सेंध तो लगा दी है लेकिन चुनाव में चेहरे की भी अहमियत होती है। यह भी छिपा नहीं है कि शरद पवार मराठवाड़ा ही नहीं पूरे महाराष्ट्र में एनसीपी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। दूसरी ओर एकनाथ शिंदे के अलग होने के बाद हुए कई सर्वे बता रहे हैं कि उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति बढ़ी है, जिसका उन्हें लाभ मिल सकता है। ऐसे में बीजेपी को दोनों मराठा क्षत्रपों को एकजुट रखते हुए फूंक-फूंककर कदम बढ़ाना होगा।
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उद्धव ने कैसे शिंदे को पहुंचाई चोट?
आखिर अजित पवार से मिलकर उद्धव ठाकरे ने कैसे एकनाथ शिंदे को चोट पहुंचाई है, यह समझने के लिए पहले उद्धव का बयान बताते हैं। उद्धव ने कहा, ‘मैंने अजित पवार के साथ काम किया है और मुझे पूरा भरोसा है कि महाराष्ट्र के लोगों को मदद मिलेगी, क्योंकि खजाने की चाबियां उनके पास हैं। फिलहाल तो सत्ता की लूट-खसोट चल रही है, उसके मुकाबले राज्य के मुद्दे अहम हैं।’ तो क्या उद्धव ठाकरे का अजित पवार से मिलना एकनाथ शिंदे के जख्म पर नमक की तरह है? इसका जवाब जानना मुश्किल नहीं हैं। दरअसल जब उद्धव ठाकरे की महाविकास अघाड़ी सरकार में अजित पवार वित्त मंत्री थे तो उन पर शिंदे खेमे के विधायक फंड आवंटन में भेदभाव का आरोप लगाते थे। तमाम विधायकों के उद्धव से नाता तोड़ने की एक बड़ी वजह यह भी थी। अघाड़ी सरकार में शरद पवार और एनसीपी के नेताओं की बात ज्यादा सुनी जाती थी। जब एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के दर्जनों विधायक गए तो उनका यह दर्द बाहर आया था।
क्या दादा अब शिंदे के विधायकों की मांग पूरी करेंगे?
समय का चक्र एक बार फिर घूमा है। वित्त मंत्री का पद अजित पवार के पास वापस आ गया है। ऐसे में जब शिंदे गुट के विधायक उनसे फंड की मांग करेंगे तो क्या उनकी बात को तवज्जो दी जाएगी? शिंदे के विधायकों की मांग मानी जाएगी या नहीं? महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में भी अब ज्यादा वक्त नहीं है। ऐसे में उद्धव ठाकरे ने अजित ठाकरे से मुलाकात कर कहीं न कहीं शिंदे खेमे को चिढ़ाने का भी प्रयास किया है। जो अजित पवार उद्धव के वित्त मंत्री रहते हुए शिंदे के समर्थक विधायकों की बात को अनसुना कर देते थे, क्या वह फंड के मामले में आसानी से डिमांड पूरी कर देंगे? हालांकि यह भी सच है कि एकनाथ शिंदे अब मुख्यमंत्री हैं और उनके गुट के विधायकों की मांग खारिज करना इतना आसान भी नहीं होगा।
दादा के खिलाफ दिल्ली में लामबंदी नाकाम
दरअसल शिंदे गुट नहीं चाहता था कि वित्त विभाग किसी सूरत में अजित पवार को मिले। संजय राउत के दावे पर यकीन करें तो अजित पवार को वित्त मंत्री का पद मिलने से रोकने के लिए शिंदे गुट दिल्ली गया था। राउत यह भी कहते हैं कि दिल्ली में शिंदे खेमे की बात किसी ने नहीं सुनी। उल्टे शिंदे गुट से साफ तौर पर कहा गया कि अगर आप साथ रहना चाहते हैं तो रहिए नहीं तो जाने के लिए स्वतंत्र हैं। राउत के मुताबिक एक और प्रस्ताव शिंदे गुट के सामने रखा गया था। इसमें कहा गया कि अगर आप चाहते हैं कि वित्त मंत्रालय अजित पवार को न सौंपा जाए तो इसे रख लीजिए लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी अजित पवार को दे दीजिए। राउत का दावा है कि इसके बाद शिंदे गुट के विधायक मायूस होकर चुपचाप दिल्ली से लौट आए और अजित पवार के वित्त मंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया।
अजित पवार अपने खेमे को ज्यादा ताकत देना चाहेंगे
अजित पवार ने जब 2019 में पहली बार शरद पवार से बगावत की थी उस वक्त उनके पास गिने-चुने विधायक ही थे। लेकिन अब अजित पवार के पास 31 विधायकों की ताकत है। दावा तो 43 विधायकों तक का भी है। ऐसे में अजित अगर इन विधायकों को अपने साथ बरकरार रखना चाहते हैं तो उन्हें ताकत देना जरूरी होगा। इसके साथ ही दादा अपने चाचा शरद पवार खेमे के दूसरे विधायकों को भी पाले में लाने की कोशिश करेंगे। अब तक सत्ता में आधी-आधी हिस्सेदारी थी। लेकिन तीसरे यानी अजित पवार खेमे के आने से शिंदे गुट परेशान है। सूत्रों के मुताबिक शिंदे गुट के विधायकों ने सीएम पर दबाव भी डाला कि किसी तरह वित्त मंत्री का पद उधर न जाए। आखिरकार मुख्यमंत्री शिंदे ने ‘ऊपर से आदेश है’ बताकर विधायकों को चुप करा दिया।
दो मराठा क्षत्रपों में संतुलन साधना BJP के लिए चुनौती
बीजेपी के मिशन-2024 में महाराष्ट्र अहम है। यहां लोकसभा की 48 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने गठबंधन में लड़ते हुए 41 सीटें (23 बीजेपी+ 18 शिवसेना) जीत ली थीं। लेकिन इस बार चुनौतियां बिल्कुल अलग हैं। एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों मराठा नेता हैं। बीजेपी को संतुलन बनाते हुए चुनावी मैदान में उतरना होगा। बीजेपी ने महाराष्ट्र की दो बड़ी क्षेत्रीय ताकतों शिवसेना और एनसीपी में बड़ी सेंध तो लगा दी है लेकिन चुनाव में चेहरे की भी अहमियत होती है। यह भी छिपा नहीं है कि शरद पवार मराठवाड़ा ही नहीं पूरे महाराष्ट्र में एनसीपी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। दूसरी ओर एकनाथ शिंदे के अलग होने के बाद हुए कई सर्वे बता रहे हैं कि उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति बढ़ी है, जिसका उन्हें लाभ मिल सकता है। ऐसे में बीजेपी को दोनों मराठा क्षत्रपों को एकजुट रखते हुए फूंक-फूंककर कदम बढ़ाना होगा।
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