Maharashtra Politics: क्या शरद पवार के इशारे पर अजित पवार ने किया ‘महा’खेला? इन वजहों से उठ रहे सवाल
मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति का ‘खेला’ अभी खत्म नहीं हुआ है बल्कि यह तो रोज-रोज दिलचस्प होता जा रहा है। वजह हैं शरद पवार और उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी। एनसीपी में बगावत 2 जुलाई को ही हो गई थी। लेकिन पिछले चार दिन से जिस तरह अजित पवार गुट का शरद पवार के यहां आना-जाना लगा है उससे सियासी गलियारों में कयास लग रहे हैं कि शायद पवार साहब की पिक्चर अभी बाकी है।
सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि ‘शरदराव में एक किसान वाली क्वॉलिटी भी है। जिस तरह किसान को मौसम का अंदाजा होता है, शरद पवार ने उसका इस्तेमाल राजनीति में खूब किया है।’
ऐसे में अटकलें लग रही हैं कि कहीं शरद पवार ने खुद ही तो भतीजे अजित और दूसरे नेताओं को बीजेपी का समर्थन करने की मौन सहमति तो नहीं दी थी? या फिर शरद पवार को ही अपना गुरु बताने वाले अजित, छगन भुजबल और बाकी नेताओं ने मौसम का रुख देखते हुए बीजेपी का साथ कर लिया? क्या वाकई शरद पवार को पहले से कुछ भनक नहीं थी या फिर पर्दे के पीछे की बात कुछ और ही है। इन सवालों के पीछे कई वजहें शामिल हैं, आइए जानते हैं-
चार दिन में चाचा-भतीजे की तीसरी मुलाकात
सोमवार को अजित पवार ने पिछले चार दिन में तीसरी बार शरद पवार से मुलाकात की। 2 जुलाई के बाद पहली बार वह शुक्रवार शाम को शरद पवार के आवास सिल्वर ओक पहुंचे थे। अजित पवार ने वजह बताई कि वह अपनी चाची (प्रतिभा पवार) से मिलने गए थे। उनके हाथ की सर्जरी हुई थी। अजित पवार उनके काफी करीबी भी बताए जाते हैं। इसके बाद रविवार दोपहर अजित पवार अचानक अपने मंत्रियों के साथ वाईबी चव्हाण सेंटर पहुंचे। सूत्रों के मुताबिक, वहां शरद पवार पहले से एक मीटिंग में व्यस्त थे। अजित गुट वहां पहुंचा और पवार के पैर छूकर माफी मांगी। साथ ही एनसीपी की एकजुटता के लिए साथ आने की अपील की।
इस दौरान शरद पवार चुपचाप सबकी बात सुनते रहे लेकिन खुद कुछ नहीं कहा। सोमवार को भी अजित गुट वाईबी चव्हाण सेंटर में शरद पवार से मिलने पहुंच गया। इस बार उनके साथ समर्थक विधायक भी मौजूद थे। शरद पवार से दोबारा साथ आने की अपील की गई लेकिन उन्होंने चुप्पी साधे रखी। इसके बाद सियासी हलकों में चर्चा और बढ़ने लगी। शाम होते-होते एनसीपी (शरद गुट) की तरफ से स्पष्ट किया गया कि पवार साहब बीजेपी के साथ कभी नहीं जाएंगे। साथ ही वह 18 जुलाई की विपक्ष दल की बैठक में शामिल होंगे।
रोटी पलटने वाला बयान, इस्तीफे का ऐलान और फिर वापसी
27 अप्रैल को शरद पवार ने मुंबई में एनसीपी के युवा मंथन कार्यक्रम के दौरान कहा कि अब रोटी पलटने का सही वक्त आ गया है। सभी ने इसके अलग-अलग मायने निकालने शुरू कर दिए। इसके कुछ दिन बाद ही (2 मई) शरद पवार ने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। साथ ही बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। तीन दिन बाद 5 मई को शरद पवार ने इस्तीफे का फैसला वापस ले लिया। इस तरह उन्होंने भतीजे अजित पवार की बगावत का रास्ता खोल दिया।
जो मंत्री बने उनके खिलाफ दर्ज थे करप्शन के केस
अजित पवार के साथ गए एनसीपी के लगभग सभी बड़े नेता शिंदे-फडणवीस सरकार में मंत्री हो गए। इनमें से अधिकतर के खिलाफ करप्शन का केस चल रहा है। अजित पवार, छगन भुजबल, हसन मुश्रीफ और धनंजय मुंडे के खिलाफ अलग-अलग घोटाले की जांच चल रही है।
2019 में भी ‘चाणक्य’ ने चली थी चाल?
इससे पहले भी महाराष्ट्र में ऐसी ही तस्वीर सामने आ चुकी है जब नवंबर 2019 की सुबह-सुबह अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम की शपथ लेकर सबको चौंकाया था। हालांकि यह सरकार महज तीन दिन ही चल पाई और अजित पवार को वापस चाचा के पास आना पड़ा। इसे भी महाचाणक्य की चाल के तौर पर देखा गया था।
बीजेपी के साथ जाना चाहते हैं अधिकतर विधायक!
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शपथ लेने वाले 9 नेताओं समेत 10 एनसीपी नेता दो महीने से शरद पवार से मुलाकात कर रहे थे। उन्हें बता रहे थे कि अधिकतर विधायक बीजेपी और शिंदे सेना के साथ जुड़ना चाहते हैं। वहीं कुछ सर्वे इस ओर भी इशारा कर रहे थे कि कांग्रेस और उद्धव के साथ जाने पर लोकसभा चुनाव में पवार की एनसीपी को घाटा हो सकता है। दूसरी ओर, बीजेपी के साथ जाने में 2024 में केंद्र का दरवाजा भी खुल सकता है।
साये की तरह चलने वाले नेताओं ने कैसे कर दी बगावत?
एनसीपी की बगावत के बाद एक बात जो राजनीतिक पंडितों के भी गले नहीं उतर रही वह यह प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल और दिलीप वलसे पाटिल जैसे शरद पवार के विश्वासपात्र कैसे उनका साथ छोड़ सकते हैं। साये की तरह चलने वाले ये नेता एक झटके में शरद पवार के साथ धोखा कैसे कर सकते हैं?
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सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं कि ‘शरदराव में एक किसान वाली क्वॉलिटी भी है। जिस तरह किसान को मौसम का अंदाजा होता है, शरद पवार ने उसका इस्तेमाल राजनीति में खूब किया है।’
ऐसे में अटकलें लग रही हैं कि कहीं शरद पवार ने खुद ही तो भतीजे अजित और दूसरे नेताओं को बीजेपी का समर्थन करने की मौन सहमति तो नहीं दी थी? या फिर शरद पवार को ही अपना गुरु बताने वाले अजित, छगन भुजबल और बाकी नेताओं ने मौसम का रुख देखते हुए बीजेपी का साथ कर लिया? क्या वाकई शरद पवार को पहले से कुछ भनक नहीं थी या फिर पर्दे के पीछे की बात कुछ और ही है। इन सवालों के पीछे कई वजहें शामिल हैं, आइए जानते हैं-
चार दिन में चाचा-भतीजे की तीसरी मुलाकात
सोमवार को अजित पवार ने पिछले चार दिन में तीसरी बार शरद पवार से मुलाकात की। 2 जुलाई के बाद पहली बार वह शुक्रवार शाम को शरद पवार के आवास सिल्वर ओक पहुंचे थे। अजित पवार ने वजह बताई कि वह अपनी चाची (प्रतिभा पवार) से मिलने गए थे। उनके हाथ की सर्जरी हुई थी। अजित पवार उनके काफी करीबी भी बताए जाते हैं। इसके बाद रविवार दोपहर अजित पवार अचानक अपने मंत्रियों के साथ वाईबी चव्हाण सेंटर पहुंचे। सूत्रों के मुताबिक, वहां शरद पवार पहले से एक मीटिंग में व्यस्त थे। अजित गुट वहां पहुंचा और पवार के पैर छूकर माफी मांगी। साथ ही एनसीपी की एकजुटता के लिए साथ आने की अपील की।
इस दौरान शरद पवार चुपचाप सबकी बात सुनते रहे लेकिन खुद कुछ नहीं कहा। सोमवार को भी अजित गुट वाईबी चव्हाण सेंटर में शरद पवार से मिलने पहुंच गया। इस बार उनके साथ समर्थक विधायक भी मौजूद थे। शरद पवार से दोबारा साथ आने की अपील की गई लेकिन उन्होंने चुप्पी साधे रखी। इसके बाद सियासी हलकों में चर्चा और बढ़ने लगी। शाम होते-होते एनसीपी (शरद गुट) की तरफ से स्पष्ट किया गया कि पवार साहब बीजेपी के साथ कभी नहीं जाएंगे। साथ ही वह 18 जुलाई की विपक्ष दल की बैठक में शामिल होंगे।
रोटी पलटने वाला बयान, इस्तीफे का ऐलान और फिर वापसी
27 अप्रैल को शरद पवार ने मुंबई में एनसीपी के युवा मंथन कार्यक्रम के दौरान कहा कि अब रोटी पलटने का सही वक्त आ गया है। सभी ने इसके अलग-अलग मायने निकालने शुरू कर दिए। इसके कुछ दिन बाद ही (2 मई) शरद पवार ने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया। साथ ही बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। तीन दिन बाद 5 मई को शरद पवार ने इस्तीफे का फैसला वापस ले लिया। इस तरह उन्होंने भतीजे अजित पवार की बगावत का रास्ता खोल दिया।
जो मंत्री बने उनके खिलाफ दर्ज थे करप्शन के केस
अजित पवार के साथ गए एनसीपी के लगभग सभी बड़े नेता शिंदे-फडणवीस सरकार में मंत्री हो गए। इनमें से अधिकतर के खिलाफ करप्शन का केस चल रहा है। अजित पवार, छगन भुजबल, हसन मुश्रीफ और धनंजय मुंडे के खिलाफ अलग-अलग घोटाले की जांच चल रही है।
2019 में भी ‘चाणक्य’ ने चली थी चाल?
इससे पहले भी महाराष्ट्र में ऐसी ही तस्वीर सामने आ चुकी है जब नवंबर 2019 की सुबह-सुबह अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम की शपथ लेकर सबको चौंकाया था। हालांकि यह सरकार महज तीन दिन ही चल पाई और अजित पवार को वापस चाचा के पास आना पड़ा। इसे भी महाचाणक्य की चाल के तौर पर देखा गया था।
बीजेपी के साथ जाना चाहते हैं अधिकतर विधायक!
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शपथ लेने वाले 9 नेताओं समेत 10 एनसीपी नेता दो महीने से शरद पवार से मुलाकात कर रहे थे। उन्हें बता रहे थे कि अधिकतर विधायक बीजेपी और शिंदे सेना के साथ जुड़ना चाहते हैं। वहीं कुछ सर्वे इस ओर भी इशारा कर रहे थे कि कांग्रेस और उद्धव के साथ जाने पर लोकसभा चुनाव में पवार की एनसीपी को घाटा हो सकता है। दूसरी ओर, बीजेपी के साथ जाने में 2024 में केंद्र का दरवाजा भी खुल सकता है।
साये की तरह चलने वाले नेताओं ने कैसे कर दी बगावत?
एनसीपी की बगावत के बाद एक बात जो राजनीतिक पंडितों के भी गले नहीं उतर रही वह यह प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल और दिलीप वलसे पाटिल जैसे शरद पवार के विश्वासपात्र कैसे उनका साथ छोड़ सकते हैं। साये की तरह चलने वाले ये नेता एक झटके में शरद पवार के साथ धोखा कैसे कर सकते हैं?
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